13 January 2021 05:41 PM
-राम पुनियानी
भारत का संविधान हम सब को अपने धर्म में आस्था रखने, उसका आचरण करने का हक देता है। यदि कोई नागरिक किसी भी धर्म का पालन करना नहीं चाहता तो यह अधिकार भी उसे है। इन दिनों देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है। कोरोना महामारी का तांडव जारी है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगातार गिरावट आ रही है। देश की माली हालत खराब है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारों की फौज बड़ी होती जा रही है और किसानों का देशव्यापी आंदोलन चल रहा है। इन विषम परिस्थितियों में भी कुछ राज्य सरकारों की चिंता का सबसे बड़ा विषय है, अंतधार्मिक विवाह और धर्म परिवर्तन। ये सरकारें इन विषयों पर कानून बनाने में जुटी हुई हैं। धर्म परिवर्तन लंबे समय से हमारे देश में विवाद और बहस का मुद्दा रहा है। अब उसे अंतधार्मिक विवाहों से जोड़ दिया गया है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि ऐसे विवाहों का एकमात्र लक्ष्य धर्म परिवर्तन होता है। बीजेपी शासित प्रदेशों, विशेषकर उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन करने या करवाने वालों को सजा देने के लिए कानून बन गया है। हिंदू धर्म के स्व-नियुक्त ठेकेदारों को ‘धर्मरक्षा’ के लिए ऐसे दंपत्तियों को परेशान करने का लाइसेंस मिल गया है, जिन्होंने धर्म की दीवारों को पार कर विवाह किए हैं।
धर्म परिवर्तन मुख्यतः हिंदू धर्म को छोड़कर किसी और धर्म को अपनाना-पर बवाल खड़ा कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने धर्म परिवर्तन करवाने वाली संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए एक आरडनेंस जारी किया है, जिसके अंतर्गत ऐसी संस्थाओं का पंजीयन रद्द हो जाएगा और उन्हें अन्य गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अध्यादेश के अनुसार, धर्म परिवर्तन करने या करवाने वालों को स्थानीय प्रशासन को दो महीने पहले नोटिस देना होगा। प्रशासन को यह तय करने का अधिकार होगा कि धर्म परिवर्तन कानूनी है या गैर-कानूनी। कहने की जरूरत नहीं कि यह साबित करने की जिम्मेदारी धर्म परिवर्तन करने और करवाने वालों की होगी कि वे कानून के विरुद्ध कोई काम नहीं कर रहे हैं। इस अध्यादेश में एससी-एसटी और महिलाओं का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। कई अन्य राज्य भी ‘लव जिहाद’ और धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं।
ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जिनमें विवाहित दंपत्तियों और उनके रिश्तेदारों को धर्म परिवर्तन और ‘लव जिहाद’ के नाम पर परेशान किया जा रहा है। जो कानून बनाए जा रहे हैं उनमें से अधिकांश हमारे संविधान के मूल प्रावधानों के खिलाफ हैं। देश के स्वाधीनता आंदोलन के दौरान आर्य समाज ने ‘शुद्धि आंदोलन’ शुरू किया था, जिसका उद्देश्य था अन्य धर्म अपना चुके हिंदुओं को उनके पुराने धर्म में वापस लाना। इसी तरह तबलीगी जमात उस समय तंजीम अभियान चला रही थी, जिसका उद्देश्य लोगों को मुसलमान बनने के लिए प्रेरित करना था। बीसवीं सदी का सबसे बड़ा सामूहिक धर्म परिवर्तन भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में हुआ था। यह घटना हमें धर्म परिवर्तन के असली कारणों से परिचित करवाती हैं। अंबेडकर दलित थे। वे विदेश से अनेक डिग्रियां लेकर भारत लौटे, परंतु फिर भी उन्हें अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। वे अछूत ही बने रहे। उन्होंने सामाजिक न्याय और दलितों को गरिमापूर्ण जीवन का हक दिलवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जातिगत ऊंच-नीच के चलते हिंदू कभी एक राष्ट्र नहीं हो सकते। उन्हें यह समझ में आ गया कि हिंदू धर्म, ब्राह्मणवादी मूल्यों से संचालित और नियंत्रित है। यही कारण है कि उन्होंने कहा कि ‘‘मैंने एक हिंदू के रूप में जन्म लिया है, परंतु मैं एक हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।’’ उनके विशद अध्ययन ने उन्हें बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने तीन लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। विधि प्राध्यापक समीना दलवाई ने अपने एक लेख में इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि आज जो कानून बन चुके हैं उनके अंतर्गत अंबेडकर को धर्म को धर्म परिवर्तन करवाने के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता। हमारे संविधान के निर्माता व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पैरोकार थे और इसमें अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन के अलावा ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न करने की स्वतंत्रता भी शामिल है। यद्यपि अधिकांश लोग जिस धर्म में जन्म लेते हैं, उसी में जीवन भर बने रहते हैं। परंतु अतीत में बड़ी संख्या में लोगों ने अपने धर्म बदले हैं। हमारे देश में इस्लाम, ईसाई, धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म का प्रसार धर्म परिवर्तन से ही तो हुआ है। बौद्ध धर्म को तो हिंदू धर्म के असहिष्णु तबके के हमले का शिकार भी होना पड़ा। यह तबका समानता के उस मूल्य के विरुद्ध था, जिसे बौद्ध धर्म प्रतिपादित करता है। जन्म आधारित असमानता, हिंदू धर्म के कुछ पंथों को अविभाज्य हिस्सा है और इसे धर्मग्रंथों की स्वीकृति प्राप्त है। इस तरह का ऊंच-नीच कुछ अन्य धर्मों में भी कुछ हद तक है।
आज धर्म परिवर्तन की राह में अनेक रोडे खड़े किए जा रहे हैं। परंतु इतिहास गवाह है कि भारत में बड़े पैमाने पर आमजनों ने इस्लाम और ईसाई धर्म अंगीकार किया। भारत में मुख्यतः दो कारणों से धर्म परिवर्तन हुए। पहला था, जाति-आधारित दमन। स्वामी विवेकानंद लिखते हैं, ‘‘भारत पर मुसलमानों की विजय, गरीबों और पददलितों के लिए मुक्ति बन कर आई। यही कारण है कि हमारे देश के एक बटा पांच लोग मुसलमान बन गए। यह सब तलवार के बल पर नहीं हुआ।
यह सोचना मूर्खता की पराकाष्ठा होगी कि यह सब तलवार की नोंक पर हुआ। यह जमींदारों और पुरोहितों की चंगुल से मुक्ति के लिए हुआ। इसी का नतीजा यह है कि बंगाल के किसानों में हिंदुओं से अधिक मुसलमान हैं, क्योंकि यहां बहुत से जमींदार थे। (सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद, खंड 31979 प्रोलिटेरियट! विन इक्वल राइट्स अद्धैत आश्रम, कलकत्ता, 1984 पृष्ठ 16 से उद्दृत)।
कई मामलों में सामाजिक मेलजोल और आध्यात्मिक सत्य की खोज के चलते भी धर्म परिवर्तन हुए। कुछ मामलों में विजेता राजाओं ने विजितों पर धर्म परिवर्तन करने की शर्त भी लाद दी। भारत में बड़ी संख्या में लोगों ने सूफी संतों से प्रभावित होकर इस्लाम अपनाया। इसका दिलचस्प उदाहरण है एक सूफी संत से प्रभावित होकर दिलीप कुमार का ए.आर. रहमान बन जाना। एक अन्य कारक थी ईसाई मिशनरियां। उन्होंने दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए काम किया। सन 1999 में पास्टर स्टेंस की धर्म परिवर्तन करवाने के झूठे आरोप में हत्या कर दी गई और 2008 में देश में कई स्थानों पर, जिनमें ओडिशा का कंधमाल शामिल है, ईसाई विरोधी हिंसा भड़काई गई। परंतु हमें यह भी समझना चाहिए कि सदियों बाद भी भारत में ईसाई कुल आबादी का 2.3 प्रतिशत ही हैं (जनगणना 2011) ज्ञातव्य है कि भारत में पहले चर्च की स्थापना सेंट थाॅमस ने 52 ईस्वी में की थी। राजनैतिक उद्देश्यों से अन्य धर्मों के मानने वालों के हिंदू धर्म में ‘पुनर्परिवर्तन‘ के अभियान भी चलते रहे हैं। आगरा में फुटपाथ पर रहने वालों को बीपीएल और राशन कार्ड का लालच देकर कहा गया था कि वे एक पूजा में आएं और घोषणा करें कि वे अब हिंदू हैं। गर्म पानी के झरनों में आदिवासियों को नहला कर उनकी ‘घर वापसी‘ के प्रयास भी होते रहे हैं। यह इन लोगों को एक बार जातिगत पदक्रम का भाग बनाने की राजनैतिक चाल है। (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मेनी अवार्ड से सम्मानित हैं) (लेख का अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
RELATED ARTICLES
20 January 2021 08:56 PM
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
'भारत अपडेट' शुरू करने के पीछे एक टीस भी है। वो यह कि मैनस्ट्रीम मीडिया वो नहीं दिखाती, जो उन्हें दिखाना चाहिए। चीखना-चिल्लाना भला कौनसी पत्रकारिता का नाम है ? तेज़ बोलकर समस्या का निवारण कैसे हो सकता है भला? यह तो खुद अपने आप में एक समस्या ही है। टीवी से मुद्दे ग़ायब होते जा रहे हैं, हां टीआरपी जरूर हासिल की जा रही है। दर्शक इनमें उलझ कर रह जाता है। इसे पत्रकारिता तो नहीं कहा जा सकता। हम तो कतई इसे पत्रकारिता नहीं कहेंगे।
हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
एडिटर, भारत अपडेट
bharatupdate20@gmail.com
+919829165513
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Bharat Update| Designed by amoadvisor.com