15 August 2020 11:34 AM
-बाबूलाल नागा
एक तरफ जहां खेती-किसानी से जुड़े तीन अध्यादेशों को केंद्र सरकार किसानों के हित में बता रही है, वहीं दूसरी तरफ किसान संगठन इसे लेकर कई मसलों पर विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा पारित इन 3 अध्यादेशों के विरोध में देशभर के किसान व किसान संगठन लामबंद हो रहे हैं। पिछले दिनों 9 अगस्त को देश के पंजाब, हरियाणा मध्यप्रदेश और राजस्थान सहित अन्य राज्यों में इन अध्यादेशों के विरोध में प्रदर्शन हुए। इससे पहले भी किसान संगठन अपनी नाराजगी जताते हुए 20 जुलाई को ट्रैक्टरों के साथ सड़कों पर उतर चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने कोरोना काल (5जुलाई 2020) में तीन किसान विरोधी अध्यादेश-कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020, मूल्य आश्वासन पर (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020, आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 लाई हैं। इन अध्यादेशों व सरकार की बदलती कृषि नीतियों को लेकर देश भर का किसान गुस्से में है। संगठनों का कहना है कि इन अध्यादेशों का असली नाम जमाखोरी चालू करो कानून, मंडी खत्म करो कानून और खेती कंपनियों को सौंपा कानून होना चाहिए क्योंकि इन अध्यादेशों का यही असली मकसद है।
किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है। इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है। यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी। बस फर्क इतना होगा कि मंडी में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी। केंद्र सरकार के इन तीनों अध्यादेशों में बहुत से लूपहोल्स हैं जिससे किसानों को नुकसान होगा, जबकि कॉरपोरेट जगत और बिचैलिये फायदे में रहेंगे।
फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है। लेकिन इसका असली मकसद कृषि उपज विपणन समितियों के एकाधिकार को खत्म करना और सभी को कृषि प्रोडक्ट खरीदने-बेचने की इजाजत देना है। मंडी व्यवस्था खत्म होने से व्यापारियों की मनमानी और बढ़ जाएगी। वो औने-पौने दाम पर किसानों की फसल खरीदेंगे, क्योंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होगा। इससे फसल के दाम घट जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा।
इसी तरह “मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अध्यादेश, 2020 पर किसानों (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते को 5 जून, 2020 को लागू किया गया था। सरकार के अनुसार कृषि उत्पादों की बिक्री और खरीद के संदर्भ में किसानों के संरक्षण और सशक्तीकरण काम करता है। लेकिन अध्यादेश के प्रावधान सभी राज्य एपीएमसी कानूनों को खत्म कर देंगे।” जब कांट्रेक्ट फार्मिंग की जाएगी तो बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने मुनाफों की नजर से ही किसानों से खेती करवाई जाएगी। कंट्रेक्ट फार्मिंग के अंदर शर्त यह है कि खेती के लिए बीज और दवाइयां कंट्रेक्टर देगा। कांट्रेक्टर अपनी शर्तों में ऐसी ही शर्तें रखेंगे जैसे कि वे एक निश्चित साइज, निश्चित रंग, निश्चित गुणवत्ता वाले उत्पादों को ही खरीदेंगे। इसके अलावा, अगर मौसम की खराबी या किसी अन्य कारण से फसल की गुणवत्ता में परिवर्तन आता है तो सारा का सारा नुकसान किसानों को भरना होगा। इस स्थिति में कांट्रेक्टर ने जो पैसा बीज और दवा पर लगाया है वह सारा का सारा खर्च किसानों से वसूला जाएगा।
स्वराज इंडिया से जुड़े योगेंद्र यादव कहते हैं कि एपीएमसी की कमियों के कारण किसानों का शोषण होता है। उसे दूर किया जा सकता था। लेकिन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए खरीद का अधिकार निजी हाथों में दिया जा रहा है। जिसमें किसान अपनी उपज बेचने का अधिकार खो देगा। ठेका खेती कानून में कहने को किसान खेत का मालिक होगा लेकिन खेती करने और उत्पाद बेचने का अधिकार कंपनी का होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा खेती किसानी की बुनियादी व्यवस्था बदलने की साजिश की जा रही है।
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25 February 2021 05:20 PM
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