21 November 2020 09:02 PM
-बाबूलाल नागा
बीकानेर जिले की नोखा तहसील के सारूंडा गांव की 28 वर्षीय चुका देवी के पति की मौत हो चुकी है। ससुरालवालों ने उनके साथ मारपीट की और घर से बेघर कर दिया। चुका देवी ने न्याय की उम्मीद लिए अपने ऊपर हो रही यातनाओं की शिकायत राज्य महिला आयोग में की। उन्होंने 20 अगस्त 2020 को आयोग में एक शिकायती पत्र भेजा। करीब ढाई महीने बाद भी उनके मामले में आयोग की ओर से कोई राहत नहीं मिल पाई है। कारण महिलाओं को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य महिला आयोग में उनकी फरियाद सुनने वाला कोई है ही नहीं। चुका देवी ने अपना पत्र अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग को लिखा पर आयोग में तो पिछले दो वर्ष से न तो कोई अध्यक्ष है और न ही कोई सदस्य।
सवाल अकेली चुका देवी से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि उन जैसी कई महिलाओं से जुड़ा है जिन्हें महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं होने से न्याय नसीब नहीं हो पा रहा।
अक्टूबर 2018 में सूबे की जनता ने नई सरकार चुनी, लेकिन अभी तक राज्य महिला आयोग का दुबारा गठन नहीं किया गया है। प्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते सभी पद खाली चल रहे हैं। पिछले दो साल से अशोक गहलोत अपनी सरकार को सुरक्षित करने में लगे रहे और प्रदेश की आधी आबादी न्याय की उम्मीद लिए सरकार की बाट जोहती रहीं। वसुंधरा राजे सरकार में आयोग की पिछली अध्यक्ष सुमन शर्मा रहीं, जिनका कार्यकाल 19 अक्टूबर 2018 को समाप्त हो गया था।
अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं होने से आयोग में लंबित प्रकरणों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में दुष्कर्म के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में हैं। महिलाओं के प्रति अपराधों की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल 8 महीनों में दर्ज 22 हजार में से करीब 8 हजार प्रकरणों की जांच लंबित चल रही है। पुलिस के आंकड़े कहते हैं कि साल 2020 के शुरुआती 8 महीनों में महिलाओं संबंधी अपराध के राज्य में 22 हजार से ज्यादा मुकदमें दर्ज हुए हैं। इस वर्ष के पिछले 8 महीनों में महिला उत्पीड़न और अत्याचार के करीब 8500 मुकदमें दर्ज हुए हैं जबकि दुष्कर्म के करीब 3500 मुकदमें और छेड़छाड़ तथा जबरदस्ती करने के करीब 5800 मुकदमें दर्ज हुए हैं। राजस्थान राज्य महिला आयोग की वेबसाइट में अपलोड वार्षिक रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कहते हैं कि 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक आयोग को विभिन्न प्रकृति की शिकायतें व्यक्तिगत व जनसुनवाई में एवं डाक द्वारा प्राप्त हुई जिनमें दहेज क्रूरता, दहेज हत्या, भरण-पोषण, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, यौन उत्पीड़न व घरेलू हिंसा की शिकायतें कुल 3466 प्राप्त र्हुइं जिनमें से 1621 मामले निपटा दिए गए वहीं 1845 अभी प्रक्रियाधीन है। वहीं महिला आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, कोई भी महिला ऑनलाइन, 24 घंटे हेल्पलाइन और लिखित में शिकायत कर सकती है। अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद से राज्य महिला आयोग का गठन हुआ ही नहीं है, इसलिए आयोग की अधिकारिक वेबसाइट पर आखिरी रिपोर्ट साल 2019 की है।
इसी साल मई माह में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने राजस्थान के महिला आयोगों में खाली पड़े पद को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा था। एनसीडब्ल्यू ने बताया था कि राजस्थान के महिला आयोग में 2018 से प्रमुखों एवं सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने पत्र में कहा था कि राज्य महिला आयोग महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की शिकायतों को निपटाने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन अब तक न तो नए प्रमुखों की और न ही आयोग के सदस्यों का चयन किया गया है। यह देखना चिंताजनक है कि राज्य महिला आयोग का नए सिरे से गठन नहीं हुआ है। महिला आयोग के पदों को भरने की मांग राजस्थान के महिला जनसंगठनों की ओर से भी लगातार की जा रही है।
बहरहाल, प्रदेश में लगातार महिला उत्पीड़न के आंकड़े बढ़ रहे हैं। इसके बाद भी ये हैरानी की बात है कि इतने लंबे समय से राजस्थान में महिला आयोग का नए सिरे से गठन नहीं किया गया है। आखिर सरकार के मुखिया सत्ता की आपसी खींचतान के चलते इन नियुक्तियों को भरने में कब तक देरी करते रहेंगे?
RELATED ARTICLES
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
'भारत अपडेट' शुरू करने के पीछे एक टीस भी है। वो यह कि मैनस्ट्रीम मीडिया वो नहीं दिखाती, जो उन्हें दिखाना चाहिए। चीखना-चिल्लाना भला कौनसी पत्रकारिता का नाम है ? तेज़ बोलकर समस्या का निवारण कैसे हो सकता है भला? यह तो खुद अपने आप में एक समस्या ही है। टीवी से मुद्दे ग़ायब होते जा रहे हैं, हां टीआरपी जरूर हासिल की जा रही है। दर्शक इनमें उलझ कर रह जाता है। इसे पत्रकारिता तो नहीं कहा जा सकता। हम तो कतई इसे पत्रकारिता नहीं कहेंगे।
हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
एडिटर, भारत अपडेट
bharatupdate20@gmail.com
+919829165513
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Bharat Update| Designed by amoadvisor.com