21 June 2020 09:18 PM
-डाॅ. राकेश राणा
चोर चोरी से जाए पर हेराफेरी से ना जाए! यह चरित्र का मामला होता है। मूलतः हर व्यक्ति की कुछ स्वभावगत दिक्कतें होती हैं, ठीक वैसे ही हर देश का भी अपना स्वभाव है, चरित्र है। वर्चस्व और विस्तार तथा स्वार्थ और क्रूरता कूट-कूट कर भरी है चीन में। 1989 में अपने छात्र-नौजवानों को चौराहे पर लील देना, क्रूरतम तरीकों से नृशंस हत्याएं कर देना सारी दुनिया ने देखा। आज नहीं हमेशा से अपने समाज और अपने बारे में सूचनाओं पर नियंत्रण चीन की नीति से भी ज्यादा नियत बनी हुई है। हमेशा की तरह चीन ने कोरोना संक्रमण महामारी के दौरान भी यही किया। महामारी से जुड़ी सूचनाओं पर नियंत्रण करके चीन ने केवल बेकसूर चीनीयों के जीवन को खतरे में डाला बल्कि संक्रमण को महामारी में बदलने का पूरा समय दिया। उसी का परिणाम आज पूरी दुनिया में फैला कोरोना संक्रमण है।
चीन की चालाकियां देखिए, अपने देश में संक्रमण को रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाया। नियंत्रण से लेकर, टैक्नोलॉजी के नाजायज प्रयोग तक किए, अपने लोगों के साथ क्रूरतम ढंग से बर्ताव किए और संक्रमण को वुहान के आस-पास ही थाम दिया। फिर निकला दुनिया में अपना परचम लहराने। चीन चिकित्सा सुविधाओं से लैस होकर भारत, अमेरिका जैसे बड़े राष्ट्रों में और यूरोप के तमाम छोटे-बड़े मुल्कों में कोरोना टेस्टिंग किट और जरूरी उपकरणों की सप्लाई जोरों से कर रहा है। इटली के राष्ट्रपति ने तो मेडिकल सहायता के लिए पूरी दुनिया में चीन की खुली प्रशंसा की। इतना ही नहीं यहां तक कहा पश्चिमी देश तो इस संकटकाल में स्वयं ही अव्यवस्था का शिकार हो चले है। यूरोपियन संघ नाम की कोई हरकत कहीं नजर नहीं आई है।
चीन ने संकट में सहायता के साथ स्पेन, फ्रांस, इटली, ईरान, इराक, बेल्जियम और फिलीपींस तक अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। भले चीनी अर्थव्यवस्था दबाव में हो पर वैश्विक नेतृत्व कर चीन कूटनीतिक बढ़त बनाने में सफल रहा है। दुनिया को यह जताने में कामयाब रहा कि स्वयं संक्रमण का दंश झेलकर भी चीन मानवता के हित में सबके साथ खड़ा है। चीन का यह कदम उन आरोपों की धार को कुंद करने में भी काम आएगा, जो उसे दुनिया में इस संक्रमित महामारी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे है। इसका कसूरवार कौन है आने वाला समय साफ कर देगा।
बेशक चीन बहुत ही श्रूड किस्म का निहायत स्वार्थी मुल्क है। यह सब पूरे विश्व ने अच्छी तरह से जानते-बूझते हुए भी उसे निरंतर मजबूत होने दिया। साफ-साफ कहा जाए तो उसे मजबूत किया गया। दुनिया के छोटे-बड़े तमाम देश उसके सम्मुख सदा से नतमस्तक दिखे है। भारत के प्रति कभी उसने एक पड़ोसी वाली सोच नहीं रखी। हमेशा भारत पर गलत निगाह रखी। कुछ न कुछ हड़पने-हथियाने की नियत रखी। विस्तार उसकी रग-रग में बसता है। तिब्बत मसले से लेकर लद्दाख तक और पूर्वोत्तर सीमा पर जब चाहे रौब गांठना उसकी आदत में शुमार हो चुका है, किससे छिपा है। हम अखबार तक में छापने की हिम्मत नहीं दिखाते। पाकिस्तान तो पियादा है बहाना है। भारत को डिस्टर्ब रखना चीन के जीन में है। भारत की उत्तरी सीमा पर जहां भी कुछ भी होता है हमेशा वाया पाकिस्तान होता दिखता है। असल में वह सब चीनी चाल का हिस्सा होता है। सिर गरीब के पड़ता है, ये दुनिया का दस्तूर है। सो हम भी चीन को कुछ कह नहीं पाते कुम्हार को छोड़ गधे के कान ऐंठते रहते हैं।
चीन अपने आस-पास में दो बड़े मुल्कों सोवियत संघ रूस और भारत को लेकर बराबर रणनीतिक दृष्टिकोण रखता आया है। वह किसी पड़ोसी भाव में नहीं जीता है गलतफहमी में न रहे। रूस ताकतवर है इसलिए उसके प्रति चीन की रणनीतिक सक्रियता उतनी तीव्र और खुली नहीं रहती है। भारत को वह कुछ समझता नहीं है। सिवाय इसके कि भारत अमेरिका से घष्ठिता कर रहा है सिर में दर्द कर सकता है। चीन को हम पर यह छोटा सा शक भारत को बड़ा नुकसान देने वाला साबित हो सकता है। इसीलिए चीन भारत के तमाम पड़ोसी देशों को तरजीह देता है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि उन सब हमारे करीबी और पड़ोसी मुल्कों में हम से ज्यादा चीन की दखलंदाजी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कूटनीतिक लहजे में समझा जाए तो हमारे पड़ोसी हमसे ज्यादा चीन के हो चले है। हमारे चारों तरफ चीन ने अपनी चैकिया स्थापित कर ली है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश यहां तक कि मालदीव जैसे छोटे से देश में भी उसने अपना अड्डा बनाकर हमकों एक तरह से अपनी बगल में लपेट लेनी की पूरी पोजीशन ले रखी है।
अफसोस इस बात का है पूरी दुनिया में कहीं भी चीन के खिलाफ कोई चूं नहीं करता है। भारत ये सब हरकतें सामने घटती देखता है और गाली पाकिस्तान को देकर आत्ममुग्ध हो लेता है। जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर आखें बंद कर लेता है और आसान शिकार बन जाता है। हमारे मीडिया में कहीं कोई रपट चीन को चिन्हित करती नहीं दिखती है। हमारी ही क्या बिसात है साब पूरी दुनिया चीन के सामने पानी भरती आई है। इसीलिए वह इतना मजबूत हो गया है। चीन आज पूरी दुनिया के लिए बडे़ खतरे के रूप में उभरा है। उसे मजबूत बनाने वाला तो दुनिया का सबसे मजबूत राष्ट्र खुद अमेरिका ही है। जिसने रूस के खिलाफ एक ऐसे साम्यवादी राष्ट्र को ताकतवर बना दिया है जो खुद आज उसी के लिए चुनौती बन चुका है।
वुहान वायरस की उड़ान इसके संकेत दे रही है। लंबे समय से सीसीपी का चाइना की सत्ता पर बने रहना, दुनिया को गलत नहीं लगता है। छुट-भैये देशों में गैर-लोकतांत्रिक सरकारों के नाम पर अमेरिका और यूरोपियन राष्ट्र मिलकर ऑपरेशन चलाते हैं, हम भी तालियां बजाते हैं। उन छोटे मुल्कों की पूरी सभ्यताएं खत्म कर दी गई। पूरी दुनिया धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधे बैठी रही। खुद चीन के लोग वहां के कम्युनिस्ट शासन की क्रुरता और शोषण के शिकार है। मानवाधिकार जैसी किसी स्थिति की वहां कोई मौजूदगीं नहीं दिखती है। कोई उनके हक में बोलता तक नहीं है। दुनिया कहती है चीन का अपना आंतरिक मामला है। जनाब ये आंतरिक प्रभाव धीरे-धीरे वाहय होने लगे हैं। जब पूरी दुनिया चीन के दबावों और उसकी विचारधारा के चक्रवर्ती मंशूबों की शिकार बनेगी। चीन तैयार है चौकस रहिए। कोरोना का करतब दिखाकर उसने शुरुआत कर दी है। दुनिया का महाशक्तिशाली देश अमेरिका ऐसे समय में लड़खड़ाता दिख रहा है। तब चीन बड़ी तेजी से खुद को कोरोना महामारी के संकट से निपटने में दुनिया का मददगार बनकर वैश्विक नेतृत्व वाली भूमिका में अपनी टैक्नोलॉजी, चिकित्सा उपकरणों और हर संभव मेडिकल सहायता के साथ खड़ा होकर साफ संदेश दे रहा है कि रिमोट-कंट्रोल हमारे पास हैं।
विश्व व्यवस्था के दूतों की भूमिका निभाने वाली वैश्विक संस्थाएं “संयुक्त राष्ट्र संघ” और “विश्व स्वास्थ्य संगठन” सरीखे जमूरों का हाल सबके सामने दिख रहा है। ये सब के सब चीन की भाषा बोल रहे हैं। संकेत साफ है मुंह खाएं आंख लजाएं! दुनिया के शक्ति केंद्र जल्द कहीं शिफ्ट हो रहे है। कोरोना संक्रमण के बाद विश्व में शक्ति संक्रमण का जो दौर शुरू होने वाला है, उसमें किसको कैसी और कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी यह 21वीं सदी के शुरुआती दशक जल्द ही तय कर देंगे। (लेखक युवा समाजशास्त्री हैं)
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