13 January 2021 05:29 PM
-डाॅ. नरेंद्र गुप्ता
केंद्र सरकार कोरोना बीमारी के लिए प्राइवेट कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे टीकों को अनुमति दे दे। ऐसी पूर्ण संभावना दिखाई दे रही है। इसके लिए 1 जनवरी को विषय विशेषज्ञों कि 10 घंटे आभासी वास्तविकता आधार पर बैठक हुई और ऐसा ज्ञात हुआ है कि समिति ने सीरम इंस्टीट्यूट के कोविशील्ड टीके को अपातकालीन सीमित उपयोग के लिए अनुमति देने की सिफारिश भारत के औषधि महानियंत्रक को कर दी है और अब इसकी स्वीकृति लगभग निश्चित है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोरोना रोग के विरुद्ध भारत में जितने भी टीकों को अनुमति दी गई है अथवा दी जाने वाली है, को प्राइवेट कंपनियों ने बनाया या बना रही है। सभी प्राइवेट कंपनी अपने उत्पाद से अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहती है और अपने उत्पाद के लिए अधिक से अधिक प्रचार कर रही है। जिस प्रकार का वातावरण बन गया है। इससे यह भनक लगती है कि इसके लिए अनेक कंपनियों ने प्रचार का बजट उत्पाद की लागत से भी ज्यादा रखा है। टीका बनाने की लागत से कहीं अधिक पैसा उसके लिए स्वीकृति प्राप्त करने में लगाया गया है जिससे बाद में उससे अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सके। टीके के कारण फाइजर कंपनी तो पहले से ही विश्व के प्रथम 500 धनाढ्य कंपनियों में है पर अब उसकी सहभागी बायो एन टेक कपंनी भी इसमें सम्मलित हो गई है।
अब एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न यह कि अधिकतर सभी डॉक्टर यह कह रहे हैं कि टीके को बाजार में भी उपलब्ध होना चाहिए और जिसे लगवाना है वह मूल्य चुका कर इसको लगवा ले। भारत के स्वास्थ्य सचिव भी अधिकारिक रूप से यह कह चुके हैं कि सरकार ने सभी को टीका लगाने की बात कभी नहीं कही और वह लगभग 30 करोड़ व्यक्तियों को ही टीके लगाने की योजना बना रही है। इसका यह आधार कि पहले उनके द्वारा छांटे गए 30 करोड़ को तो लगे तो उचित है पर बाकी को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए और पैसे हो तो लगवा लो। अगर ऐसा है तो यह सरासर अनुचित है क्योंकि कोरोना एक संक्रामक रोग है और जब तक सभी को टीके नहीं लगेंगे तो संक्रमण नहीं रुकेगा। जब अमेरिका और इंगलैंड जैसे देश जहां अधिकतर व्यक्ति टीके की कीमत चुकाने की स्थिति में है, में भी सरकार द्वारा सभी को निःशुल्क टीका दिया जा रहा है तो फिर भारत में ऐसा क्यों?
सरकार एक तरफ तो विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण प्रारंभ करने का दावा कर रही है वहीं दूसरी ओर तीन चौथाई नागरिकों को उनके भरोसे ही छोड़ रही है। इससे बड़ी त्रासदी देश के लिए नहीं हो सकती क्योंकि उस देश में लगभग 80 प्रतिशत की स्थिति नहीं कि वे ऐसा कर सके और इससे गरीब और अमीर की खाई और अधिक बढ़ेगी। इस आधे-अधूरे टीकाकरण से कोई लाभ भी नहीं होने वाला। केवल वाह वाही लूटने के और वह भी देश के नागरिकों की बहुत मोटी राशि को व्यय करके। आवश्यकता यह है कि सरकार एक ऐसा कानून पारित करें कि किसी भी सूरत में कोरोना का टीका बाजार में पैसे देकर उपलब्ध नहीं होगा। केवल इसे सरकार द्वारा सभी को क्रमानुसार निःशुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा। जैसे कि अन्य देश कर रहे हैं। पश्चिम के राष्ट्र इसलिए वहां शीघ्र से शीघ्र से सभी को निःशुल्क टीका दे रहे हैं क्योंकि वहां वास्तव में आपात स्थिति है, संक्रमण और मृत्यु की संख्या में कमी नहीं ही रही है। वहां यह खतरा अथवा समय नहीं व्यर्थ किया जा सकता कि नागरिक खरीद कर टीका लगवाए। इसके विपरित भारत में संक्रमण और मृत्यु निरंतर कम होती जा रही है और आपात स्थिति निरंतर घटती जा रही है। इसलिए एक सीमित संख्या को निःशुल्क टीका लगाने के बाद शेष को उनके भरोसे छोड़ दिया जाए। इसमें यह भी समझ के परे है कि जिस टीके को आपात परिस्थितियों के प्रयोग की अनुमति मिली हो, को सीमित नागरिकों को निःशुल्क और शेष को क्रय करना हो।
निजी डॉक्टर टीका को बाजार में उपलबध कराने का प्रबल समर्थन इसलिए कर रहे क्योंकि उनको इसमें मोटी कमाई नजर आ रही है और वे यह अवसर किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते है। टीके बनाने वाली कंपनियां भी अधिक मुनाफा बाजार में बेच कर ही कर सकती है चाहे उसके लिए डॉक्टरों को कमिशन देना पड़े जैसा दवाइयों में होता है। निश्चित ही लोगों की सेहत को लाभ के लिए किस तरह भुनाया जाए का यह टीकाकरण अभियान एक सटीक उदाहरण होने वाला है। (लेखक जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े हैं)
RELATED ARTICLES
20 January 2021 08:56 PM
05 June 2020 06:37 PM
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
'भारत अपडेट' शुरू करने के पीछे एक टीस भी है। वो यह कि मैनस्ट्रीम मीडिया वो नहीं दिखाती, जो उन्हें दिखाना चाहिए। चीखना-चिल्लाना भला कौनसी पत्रकारिता का नाम है ? तेज़ बोलकर समस्या का निवारण कैसे हो सकता है भला? यह तो खुद अपने आप में एक समस्या ही है। टीवी से मुद्दे ग़ायब होते जा रहे हैं, हां टीआरपी जरूर हासिल की जा रही है। दर्शक इनमें उलझ कर रह जाता है। इसे पत्रकारिता तो नहीं कहा जा सकता। हम तो कतई इसे पत्रकारिता नहीं कहेंगे।
हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
एडिटर, भारत अपडेट
bharatupdate20@gmail.com
+919829165513
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Bharat Update| Designed by amoadvisor.com