10 October 2020 03:18 PM
-बाबूलाल नागा
उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस में 19 साल की और बलरामपुर में 22 साल की दो दलित युवतियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाएं अत्यंत घिनौनी और शर्मनाक हैं। दोनों की मामलों में पीड़िताओं को बेशर्म, बेखौफ एवं विकृत मानसिकता वाले लोगों का शिकार होना पड़ा। दोनों की घटनाओं में पहले दरिंदों ने पीड़िताओं के साथ गैगरेप किया फिर उनकी बुरी तरह से पिटाई की, जिससे उनकी मौत हो गई। हाथरस में जो कुछ घटा वह तो किसी भी सभ्य समाज और संवेदशील मनुष्य को विचलित कर देने वाला है। राजस्थान में भी बारां, बाड़मेर में ऐसी हैवानियत वाली बलात्कार की घटनाएं हुईं। इन घटनाओं के बाद पूरे देश भर में लोगों में आक्रोश है।
गैंगरेप की ये घटनाएं प्रशासन और समाज के लिए निश्चित रूप से चिंताजनक है। इन घटनाओं ने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसी घटनाएं न केवल पुरुषों की पाशविक प्रवत्ति को दर्शाती है वरन सभ्य समाज और विशेषतः महिला सशक्तीकरण की ऊंची दलीलें देने वालों के मुंह पर करारा तमाचा भी मारती है।
पिछले कुछ महीने के अखबार पलटें तो हर दिन-दो चार बलात्कार या सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं प्रमुखता से छपी मिल जाएंगी। कहीं मंदिर में मासूम से जबरन देह सुख लिया जा रहा है, कहीं अपनी वासना पूर्ति के लिए बच्चियां बरगलायी जा रही हैं। इस तरह की घटनाएं और भी हैं और ये दिन-ब-दिन भयावह होती जा रही है। महिलाओं और बच्चियों के विरुद्ध यौन अपराध में लगातार वृद्धि हो रही है। सड़क पर छुट्टा घूमते इन सांडों से औरतों और बच्चियों को बचाना मुश्किल होता जा रहा है। राह चलती अकेली बच्ची या महिला कब इन वहशी दरिंदों की हवस का शिकार हो जाए, कुछ कहा ही नहीं जा सकता। कानून व्यवस्था की बात करना तो अब केवल मन बहलाने भर की बातें रह गई हैं। क्योंकि हाथरस पीड़िता की मौत के बाद जिस तरह यूपी पुलिस का रवैया रहा वह तो और भी जगझोर देने वाला है।
किसी भी इंसान के साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करना उसका इंसानी अधिकार छीनने की तरह है। उस पर अगर किसी इंसान के शरीर के साथ जिस भी तरह उसका पूरा अधिकार होता है, किसी दूसरे इंसान द्वारा जबददस्ती करना कितनी दुखदायी होगा, सोचा जा सकता जा सकता है। इस पृथ्वी लोक में जीव जंतु, पशु पक्षियों में मनुष्य सबसे अधिक मानसिक रूप से सक्षम है लेकिन समाज में बढ़ती हिंसा को देखकर क्या हम बेझिझक कह सकते हैं कि मनुष्य पशु पक्षियों से ज्यादा समझदार है? शायद नहीं। क्योंकि जैसे-जैसे समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में मनुष्य का आतंक, गुंडागर्दी बलात्कार के रूप में लगातार बढ़ता जा रहा है। हत्यारा तो एक बार मारता है लेकिन बलात्कार पीड़िता मानसिक आधात और समाज के तानों से बार-बार मरती है। बलात्कार तो शरीर पर गहरी चोट है जो देर सवेर भर जाती है पर मन की कभी न भरने वाली चोट कौन देता है? कौन इस जख्म को लगातार कुरेद कर नासूर बनाने के लिए जिम्मेदार है।
सवाल यह भी है कि आखिर ये बलात्कारी आते कहां से है? कौन इन्हें उपजाता है। क्या वातावरण और समाज इन्हें जन्म दे रहा है। क्यों बढ़ती आपराधिक मनोवृत्ति के लिए राजनीतिक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण जिम्मेदार है। यह एक कड़वा सत्य है कि अपराधी भी उसी समाज के अंग है जिसे हम सभ्य समाज कहते हैं। सच तो यह है कि ‘‘स्त्री देह‘‘ के लिए उन्मादी इन बलात्कारियों का यह चरित्र हम सबने मिलकर तैयार किया है। दूसरी ओर हमारे देश के कर्णधार भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। वे उल्टा औरतों को ही नसीहत देने पर तुले रहते हैं। कोई औरतों के पहनावे की बात करता है तो कोई रात को अकेली घर से बाहर न निकलने की नसीहत देने पी तुल देता है। कहा जाता है कि महिलाएं भारतीय परंपराओं व मर्यादाओं के मुताबिक कपड़े पहनें, जिससे उत्तेजना पैदा हो जाती है और इसी वजह से समाज में विकृति आती है। इनकी अक्स को तरस आता है। औरतों को यह सीख देने वालों से कोई पूछे कि नौजवान लड़के और लड़कियों की आजादी पर हमला करने वालो पर लगाम क्यों नहीं कसते? उन्हें खुली और ताजी हवा में जीने का मौका क्यों नहीं देते? उनसे पूछे कि वे अपनी दारू नीति, मीडिया नीति, बाजार नीति और पूंजीवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियों को क्यों नहीं बदलते?
बहरहाल, बलात्कार पूरी तरह से सामाजिक अपराध है और समाज की ही भयावह समस्या है। ये मामला नहीं है। इससे पूर्व जितने भी ऐसे मामले हुए हैं वो किसी भी सम्य समाज के माथे पर कलंक के समान है। निसंदेह गैंग रेप के अपराधियों को उनके अपराध की कठोर से कठोर सजा अवश्य मिलनी चाहिए।
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20 January 2021 08:56 PM
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