20 January 2021 08:56 PM
भारत अपडेट, लखनऊ। रिहाई मंच ने यूपी में किसान नेताओं को नोटिस दिए जाने पर सख्त आपत्ति दर्ज करते हुए योगी आदित्यनाथ को नोटिस भेजने की बात कही है। मंच ने कहा कि लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत योगी आदित्यनाथ बतौर मुख्यमंत्री राज्य की जनता के संरक्षक हैं, इसलिए किसानों को नोटिस भेजवाकर उन्होंने राज्य और नागरिक के बीच संविधान द्वारा प्रदत्त अनुबंध को तोड़ा है। यह सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, तानाशाहीपूर्ण, दमनकारी और अलोकतांत्रिक व संविधान-विरोधी कदम है जिसका जवाब रिहाई मंच कानूनी तरीके से ही देगा।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि प्रदेश के कई जनपदों में किसानों और किसान नेताओं को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 और 149 के तहत नोटिस भिजवाए जा रहे हैं। इस प्रकार का नोटिस भेजकर सरकार आंदोलन का समर्थन करने वाले किसानों पर फर्जी मुकदमे लादकर आगामी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर होने वाली किसान परेड के कार्यक्रम में व्यवधान पैदा करना चाहती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुनवाई करते हुए खुद प्रस्तावित किसान परेड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और ऐसी परेड निकालना किसानों का लोकतांत्रिक अधिकार बताया था। किसानों को नोटिस भेजवा कर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने न सिर्फ असंवैधानिक कदम उठाया है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश की अवमानना भी की है।
मंच महासचिव ने कहा कि सीतापुर जिले के उप जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय से धारा 111 सीआरपीसी के अंतर्गत जारी एक नोटिस में शांतिभंग की आशंका जताते हुए दसदृदस लाख रुपए के निजी बंधपत्र और उतनी ही राशि की दो जमानतें दाखिल करने का नोटिस कुछ किसान नेताओं को भेजा गया है। हरदोई और लखनऊ जिले में भी दर्जनों किसानों को 107/116 का नोटिस दिए जाने की बात सामने आ रही है।
राजीव यादव ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में यह सभी कार्रवाइयां सरकार के इशारे पर किसान आंदोलन के दमन के लिए की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का दमन करने पर आमादा है। इसके पहले भी वाराणसी और अन्य जिलों में 8 से अधिक किसान नेताओं को गुंडा एक्ट का नोटिस दिया गया, कई अन्य को गैरकानूनी हिरासत में रखा गया। अब सरकार किसानों को आंदोलन से विरत रखने की नीयत से लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों का दमन कर रही है।
मंच ने नोटिसों को मनमाना बताते हुए कहा कि हत्या तक के मुकदमें में भी न्यायालय द्वारा पचास हजार की जमानत मांगी जाती है। शांतिभंग के नाम पर दस-दस लाख रुपए की जमानत और बंधपत्र मांगना अनुचित और अधिकारों का दुरुपयोग है, जिसे किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। इससे पहले भी सम्भल जिले के 6 किसानों को पचास लाख का नोटिस भेजा गया था। ये कार्रवाइयां नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हैं।
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25 February 2021 05:20 PM
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