03 May 2020 05:48 PM
-तारा सिंह सिद्धू
स्वतंत्रता के बाद यह पहला मौका है जब कोरोना जैसी महामारी की चपेट में पूरा देश आ गया है, हमारा राज्य राजस्थान भी इससे अछूता नहीं रहा बल्कि देश के सबसे प्रभावित राज्यों में चैथे स्थान पर है। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा इस बीमारी के फैलने से रोकने पीड़ितों के उपचार हेतु उठाए गए कदम कतई नाकाफी साबित हुए उल्टे संक्रमण को रोकने के प्रशासनिक उपाय के रूप में लगाए गए लाॅकडाउन व अन्य कदमों ने आम जनता की मुसीबतें बढ़ा दी हैं।
बिना किसी पूर्व तैयारी के और जनता के जानने समझने व अपने स्तर पर कोई व्यवस्था करने का मौका दिए बिना सख्ती से लागू किए गए लाॅकडाउन ने सब व्यवस्था ठप्प कर दी जिसका सबसे अधिक शिकार गरीब मेहनतकश हुए, जिसमें प्रवासी मजदूर बड़ी तादाद में है। इनमें सिर्फ छोटी बड़ी फैक्ट्रियों में काम करने वाले बल्कि रोजमर्रा की दिहाड़ी मजदूरी करने वाले ठेला रिक्शा चलाने वाले कचरा बीनने वाले, फुटपाथ पर सोने वाले इत्यादि लाखों में हैं जिनकी कोई समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई। सरकार के प्रयास भी सब को राहत नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
प्रवासी मजदूरों का दर्द समझने के लिए भी ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ के साथियों ने कई इलाकों में कॉलोनियों में जाकर वहां मजदूरों की हालत देखी और पाया कि एक-एक कमरे में 20 से लेकर 70 लोग तक रहने को मजबूर हैं और उनके रहने की जगहों पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे ज्यादा बिहार, बंगाल के मजदूर हैं जो घर वापसी चाहते हैं क्योंकि प्रशासन द्वारा की जा रही खाद्य सामग्री 2 दिन में खत्म हो जाती है और सभी मजदूरों के पास बचा हुआ पैसा भी खत्म हो गया है।
बिहार के रहने वाले हाशिम जो कि नाहरी का नाका में रहते हैं, ने बताया कि हमारे पास न पैसा बचा हैं, ना खाने को राशन। कई-कई दिन भूखे रहकर समय गुजारना पड़ रहा हैं। बच्चों को भी पानी पिला कर रखना पड़ता है। ऐसे में अगर कोई सड़क पर निकलकर खाना मांगने के लिए आता है तो पुलिस द्वारा डंडे भी खाने पड़े हैं। इस डर की वजह से हमारे सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है। हम वापस घर जाना चाहते हैं कृपया हमें हमारे परिवार तक पहुंचाएं। अगर मरना ही है तो क्यों ना परिवार के पास जाकर मरे।
अभी हाल ही में सीकर के अंदर प्रवासी मजदूरों को वहां के स्थानीय दबंगों ने पुलिस के साथ मिलकर जिन घरों में वे रहते थे वहां से उन्हें खदेड़ दिया, जब यह मजदूर नजदीकी पटरियों पर जाकर डेरा डालने लगे तो वहां से भी इन्हें मार-मार कर भगा दिया। इस दौरान बच्चों और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। यह भी दर्शाता है कि जो मजदूर हमें हमारे काम करने के लिए चाहिए होता है आज उसकी फिक्र किसी को नहीं है, न ही उन्हें जिनके यहां यह काम करते थे और न सरकार को। फैक्ट्री मालिकों ने भी मजदूरों के फोन तक उठाने बंद कर दिए।
फैक्ट्री मजदूरों की हालत और खराब है बिहार निवासी सद्दाम ने बताया कि जिस फैक्ट्री में वह काम करता था वहां का मालिक भी फोन नहीं उठा रहा है। काम बंद हो गया है खाने के लाले पड़े हैं। फोन उठाना तो दूर जो उसका बकाया भुगतान था वह भी नहीं कर रहा है। ऐसे हजारों मजदूर जयपुर की सड़कों पर है जिनके फैक्ट्री मालिकों ने उनसे मुंह मोड़ लिया है और इन मजदूरों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है। सरकार ने इस पर कई कानून बनाए हैं पर वह कानून किसी भी तरह से लागू नहीं हो रहे हैं।
बिहार के कटिहार जिले के रहने वाले लतीफ ने बताया कि अगर कभी कभार राशन आता भी है तो केवल स्थानीय लोगों को दिया जाता है जो यहां के पार्षदों में नेताओं के वोट बैंक हैं और पूरे जयपुर की स्थिति यही है कि जो यहां का वोटर नहीं है और लाखों की संख्या में बिहार, बंगाल, यूपी का मजदूर यहां है उसकी किसी को भी चिंता नहीं है। उन तक जो सरकारी राहत सामग्री पहुंच रही है वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सरकारी राहत सामग्री 5 किलो आटा उन्हें 1 महीने के लिए दिया गया है और घर में लोगों की संख्या 5 है।
राज्य सरकार भी अब हाथ खड़े करने लगी है। क्योंकि केंद्र से उन्हें कोई राहत पैकेज नहीं दिया जा रहा है जिसकी वजह से अभी स्थिति ओर विकट होती जा रही है। ऐसे में अनेकों संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर पीड़ित लोगों को राहत पहुंचाने में सामने आई। अनेक शिकवे शिकायतों और कमजोरियों के बाद भी इन संस्थाओं ने अपने अपने स्तर पर अपनी क्षमता अनुसार काम किया है और कर रही है।
जयपुर शहर में राहत कार्य में जुड़ी सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाओं में एक नाम ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ है जिसने अपनी क्षमताओं से परे जाकर सराहनीय कार्य किया है और 22 मार्च के बाद से हजारों भूखे परिवारों को पका हुआ भोजन, खाद्य सामग्री, पीने का पानी, बच्चों के लिए दूध बिस्किट, फल, दवाइयां, कैश हेल्प, मास्क आदि उपलब्ध कराएं।
‘समर्थ हेल्पलाइन‘ से जुड़े अग्रणी कार्यकर्ता सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई एमएल से हैं। इनमें से सीपीएम की सुमित्रा चोपड़ा पार्टी की जयपुर जिला सचिव है। राहुल चैधरी सीपीआई एमएल के जयपुर जिला सचिव हैं तथा निशा सिद्धू सीपीआई की राज्य नेता है। इनके अलावा इन संगठनों से जुड़े युवा साथी हैं जिनमें ईशा शर्मा, अमरजीत सिंह, सनी सुमित शर्मा, संजू, मीनाक्षी व अन्य कई युवा साथी हैं। इसके अलावा AIRSO, AISF, AISA,NFIW, AIDWA, AIPWA भी शामिल हैं। यह पूरी टीम एक केंद्र समर्थ हेल्पलाइन से जो 24 घंटे कार्यरत है जो राहत कार्य हेतु राशि व राहत सामग्री एकत्र करने के अलावा जरूरतमंदों की सूची बनाने, उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का काम करती है। इसके अलावा यह राज्य सरकार प्रशासनिक अधिकारियों से जनता की समस्याओं व मांगों को लेकर भी संपर्क बनाए रखे हुए हैं ताकि प्रशासनिक स्तर पर जो संभव हो सके किया जा सके।
समर्थ हेल्पलाइन का अस्तित्व में आना भी एक अत्यंत दुखद घटना के बाद हुआ जब समर्थ सिंह सिद्धू की 15 मार्च को एक दर्दनाक सड़क हादसे में अपने दोस्त रौनक ठाकुर के साथ मृत्यु हो गई और एक होनहार युवा कम्युनिस्ट जो समाज के प्रति समर्पित था और एक रंगकर्मी फोटोग्राफर व सामाजिक कार्यकर्ता भी था।
इन तीन वामपंथी आदरणीय कार्यकर्ताओं ने अपने प्रिय समर्थ सिंह सिद्धू की दर्दनाक मौत के दुःख को सीने में लिए हुए 23 मार्च को शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत दिवस पर समर्थ को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी याद में पीड़ित परिवारों की सहायतार्थ ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ शुरू करने का निर्णय लिया और उसमें समर्थ के फोन नंबर दिए ताकि उसके अपने मित्र भी जुड़ सकें तथा एक बैंक अकाउंट नंबर भी पंजाब एंड सिंध बैंक का दिया।
‘समर्थ हेल्पलाइन‘ न सिर्फ दिन-रात एक कर के जरूरतमंदों तक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए सराहनीय कार्य कर रही है बल्कि तीनों वामपंथी पार्टियों के तीन अग्रणीय नेताओं का एक साथ एक ध्येय के लिए दिन रात काम करना भी प्रेरणादायक है। इस हेल्पलाइन को ईटीवी न्यूज, न्यूज 18, आकाशवाणी ने भी दिखाया और उन्होंने ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ के इस कार्य को दुख को बनाया ताकत आदि से प्रशंसा की।
जयपुर शहर के प्रभावित क्षेत्रों में ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ ने हजारों लोगों तक पहुंचाई लाखों की राहत सामग्री
‘समर्थ हेल्पलाइन‘ को शुरुआत से सहयोग मिलना शुरू हुआ जिसमें 500 से लेकर 1000 तक की राशि व सामग्री मित्रों, दोस्तों, हमदर्द लोगों और दानदाताओं की तरफ से आनी शुरू हो गई। शुरुआती तौर पर नंदपुरी जयपुर के गुरुद्वारा साहिब ने 600 लोगों का खाना तैयार कर रोजाना देना शुरू किया जो कि 15 अप्रैल तक जारी रहा। कोरोना वायरस किसी अन्य गुरुद्वारे में पॉजिटिव पाए जाने के बाद इस लंगर पर प्रशासन ने पाबंदी नहीं लगा दी। इसके अलावा केसर कान्हा रेस्टोरेंट, आर्य समाज राजा पार्क, शाहीन बाग की कार्यकर्ता सबिहा जी, सोडाला से गिरीश कुमार शर्मा, राजकुमार बागड़ा, संजीव खुनेजा का भी सराहनीय सहयोग रहा।
इसके अलावा अन्य अनेक जगहों से खाना बनाकर देने की शुरुआत हुई। जिन लोगों का हमसे कोई संपर्क नहीं था उन लोगों ने भी अपने आप से परिवार के साथ मिलकर खाना बना कर दिया। कईयों ने यह भी पेशकश करी कि यदि आप हमारे यहां से पका हुआ खाना कलेक्ट कर सकते हो तो हम खाना बना कर दे सकते हैं। कार्यकर्ताओं के अभाव में इस तरह का भोजन संकलित करना व वितरित करना मुश्किल काम था।
‘समर्थ हेल्पलाइन‘ ने 1000 भूखे परिवारों को चिन्हित किया। प्राथमिकता उनको दी जिनके यहां कोई सुविधा नहीं है। दैनिक मजदूर फुटपाथ वाले, कचरा बीनने वाले व अन्य जिनके पास कोई साधन नहीं था तथा उन तक कोई पहुंचता नहीं था। प्रतिदिन 1000 लोगों का भोजन विभिन्न जगहों से एकत्रित करना और फिर उन्हें जरूरतमंदो तक पहुंचाना, 23 मार्च के बाद से निरंतर 17 अप्रैल तक जारी रखा।
प्रमुख क्षेत्र जहां भोजन वितरण किया जाता रहा उन्हें करतारपुरा नाला, नाहरी का नाका, टोरडी हरमाड़ा, त्रिवेणी नगर, प्रताप नगर, सांगानेर, सीतापुरा, मानसरोवर, खातीपुरा, जगतपुरा, पालड़ी मीणा, जवाहर नगर, आदर्श नगर, झोटवाड़ा, हथरोई, सुभाष चैक, महाराष्ट्र मंडल भवन चाणक्य मार्ग, ब्रह्मपुरी कागजीवाड़ा, जालूपुरा हैं इसके अलावा चैड़ा रास्ता, संजय कॉलोनी, आरपीए रोड, रामगंज, तोपखाना हजूरी, कोहिनूर सिनेमा इत्यादि क्षेत्र हैं।
नियमित पका हुआ भोजन वितरित करने के साथ जहां से टेलीफोन के जरिए सहायता मांगी गई वहां वहां सामग्री पहुंचाने का काम किया जाता रहा है। पका हुआ भोजन वितरण करने के अलावा ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ ने खाद्य सामग्री जिसमें आटा, दाल, चावल, तेल, दलिया, फल फ्रूट इसके अलावा पीने का पानी, साबुन, बिस्कुट, दूध, मेडिकल हेल्प मास्क, सैनिटाइजर, बच्चों के लिए बिस्कुट इत्यादि भी वितरित किए जाने का काम हाथ में लिया। इस काम को करने के लिए तीन गाड़ियों की परमिशन प्रशासन से शुरू में ही ले ली गई और गाड़ियों में खाने के अलावा अन्य सामग्री भी साथ रखी जाती रही ताकि जहां जिसे जिस चीज की आवश्यकता हो उसे दी जा सके।
जयपुर के पास किसान सभा से जुड़े किसान कार्यकर्ताओं ने 5 क्विंटल गेहूं दिया और उन्होंने यह भी कहा जितना चाहोगे इस क्षेत्र से गेहूं एकत्रित कराने का कहा लेकिन कृषि लाॅकडाउन के कारण आटा चक्कीयों के बंद होने से उसका त्याग करना पड़ा।
इसके अलावा ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ ने लोगों को यहां से आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट, लीगल हेल्प आवश्यकता पड़ने पर पुलिस व प्रशासन से सहायता प्रदान करने का काम भी किया।
सूखा राशन में 17 अप्रैल तक 2250 किलो चावल, 3000 किलो आटा, आधा लीटर खाने के तेल के 500, पैकेट 1265 दलिया व अन्य सामग्री वितरित किया। ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ को आम जन सहयोग से आर्थिक सहायता भी प्राप्त हुई है। पका हुआ भोजन व खाद्य सामग्री के अलावा देश की अन्य नामी-गिरामी संस्थाओं अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की तरफ से 700 राशन किट तथा जोमैटो की तरफ से 70 किट जो क्रमशः 500000 व 50000 की थी 17 अप्रैल के बाद प्राप्त हुई।
इसके अलावा नेशनल मुस्लिम वीमेन वेलफेयर सोसाइटी ने समर्थ की याद में जरूरतमंद महिलाओं को राहत सामग्री बांटी। वहीं एपीजे कलाम की याद में बनी संस्था ने समर्थ की याद में 22 अप्रैल को पेड़ लगाकर पर्यावरण को हरा भरा रखने समर्थ के आखिरी सपने धरा 2020 को बचाने की दिशा में कदम बढ़ाया।
समाज की विचारधारा में उसके सामाजिक कार्यों से सरोकार को स्मृति में बनाएं बनाई गई ‘समर्थ हेल्पलाइन‘ इन कार्यों को करने में समर्थ होगी यह देखकर संतोष होता है कि जहां यह साथी कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं वह सब आपकी सोच से भी आगे बढ़ रहे हैं। ( लेखक राष्ट्रीय किसान सभा के सचिव हैं) (समर्थ हेल्पलाइन से मदद के लिए संपर्क नंबर - 9414443607)
RELATED ARTICLES
25 February 2021 05:20 PM
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
'भारत अपडेट' शुरू करने के पीछे एक टीस भी है। वो यह कि मैनस्ट्रीम मीडिया वो नहीं दिखाती, जो उन्हें दिखाना चाहिए। चीखना-चिल्लाना भला कौनसी पत्रकारिता का नाम है ? तेज़ बोलकर समस्या का निवारण कैसे हो सकता है भला? यह तो खुद अपने आप में एक समस्या ही है। टीवी से मुद्दे ग़ायब होते जा रहे हैं, हां टीआरपी जरूर हासिल की जा रही है। दर्शक इनमें उलझ कर रह जाता है। इसे पत्रकारिता तो नहीं कहा जा सकता। हम तो कतई इसे पत्रकारिता नहीं कहेंगे।
हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
एडिटर, भारत अपडेट
bharatupdate20@gmail.com
+919829165513
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Bharat Update| Designed by amoadvisor.com