कहानी संघर्ष की
मैं पूर्वी बर्मन जब 12 साल की थी तब हमारे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मेरी दो बड़ी दीदी और दो छोटे भाई हैं। मेरा परिवार बड़ा था। उस समय मां और बाबा के पैसों से हमारा घर चलता था। उन पैसों से सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती थीं। पूरे दिन में एक बार ही भरपेट खाना मिलता था।
मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। मैं 4 क्लास तक पढ़ पाई। मेरी दोनों बहनें भी केवल इतना ही पढ़ पाईं। मेरे दोनों भाइयों को एमए और बीए तक पढ़ाया। पापा की सोच थी कि लड़कियां पढ़ कर क्या करेंगी इनको तो शादी करके ससुराल जाना है। मेरी पढ़ाई छुड़ा दी गई। उसके बाद मैं अपनी बड़ी दीदी के साथ बीडी बनाने का काम करने लगी। यह काम मुझे अच्छा नहीं लगता था। इसीलिए फुफरे भाई और भाभी के साथ जयपुर आई।
जयपुर आकर मैं 24 घंटे काम करने लगी। सबसे पहले जिस घर में काम किया। वह अच्छा नहीं था। बहुत ज्यादा काम कराते थे। इसलिए भैया भाभी ने दूसरे घर में लगा दिया। यहां पर काम ज्यादा नहीं करवाते थे। छोटा-मोटा काम कराते थे। मुझे बेटी की तरह प्यार करते थे क्योंकि उनकी बेटी नहीं थी। उनके दो बेटे थे। वह भी मेरे उम्र के थे। मेरे मालिक के दोनों बेटे स्कूल जाते थे। मैं उनकी किताब और न्यूज पेपर को बड़े लगन से पढ़ती थी। मेरी मालकिन ने मुझे पढ़ते हुए देखा और पूछा कि क्या तुम पढ़ना चाहती हो। अगर तुम पढ़ना चाहती हो तो मैं तुम्हें भी भैया लोगों के साथ उनके स्कूल में डाल दूंगी।
मालिक ने कहा डरो मत तुम्हारे पैसे भी नहीं काटेंगे। तुम्हारी पढ़ाई का सारा खर्चा भी उठाऊंगी। मैंने कहा नहीं मुझे स्कूल नहीं जाना। मैं उनसे बराबरी नहीं कर सकती थी। मैंने कहा कि आप मुझे कॉपी किताब ला दो मैं घर पर ही पढ़ाई कर लूंगी। मुझे कॉपी किताब मिली तो मैं रात में 2 बजे तक पढ़ती थी। मुझे बंगाली पहले से आती थी। उस समय मैं हिंदी को बंगाली से मिला कर पढ़ती थी। मैं जल्दी पढ़ना सीख गई। थोड़ी सी इंग्लिश भी सीख ली। मैं उस घर में काफी खुश रहने लगी। कुछ दिनों बाद मेरे भैया ने उस घर से निकाल कर दूसरे घर में काम पर लगा दिया।
एक दिन ऐसे ही भाई के घर गई। भाभी ने कहा कि तू आज क्यों आई। तुझे तो 4 दिन बाद आना था। मुझे लगा कि हम सब कहीं घूमने जा रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं था। मुझे पता चला कि मेरी शादी तय कर दी गई है। उस समय मैं काफी टूट सी गई थी। 4 दिन बाद मेरी सगाई हो गई। छह महीने बाद शादी। मैं इस शादी से खुश नहीं थी। यह शादी मजबूरन करनी पड़ी थी। मुझे मेरे भैया भाभी ने धमकाया था। कहा था कि तू इस शादी से मना कर देगी तो मैं तेरा सामान और तुझे घर से बाहर निकाल कर फेंक दूंगा। उनके अलावा मेरा जयपुर में कोई नहीं था। मैं जाती तो किसके पास जाती। शादी होने के एक साल बाद मैं अपने गांव ससुराल गई। कुछ सालों बाद मेरे दो बच्चे एक लड़का और एक लड़की हुए। 7 साल बाद मैं फिर से जयपुर आई। मेरे बच्चों के भविष्य के लिए और पति और बच्चों के साथ जयपुर में रहने लगी।
एक साल बाद मुझे राजस्थान महिला कामगार यूनियन के बारे में पता चला। मैं गीता और मीनोति के साथ मीटिंगों में जाने लगी। घर -घर जाकर महिलाओं को यूनियन के बारे में बताकर महिलाओं को यूनियन से जोड़ने लगी। मेरे पति को पसंद नहीं था कि मैं मीटिंग में जाऊं। वह मुझसे लड़ाई झगड़ा करता था। एक दिन बात इतनी बढ़ गई कि उसने मुझे सर पर मारा। मेरा सर फट गया। इतना कुछ होने के बाद भी मैंने मीटिंग में जाना नहीं छोड़ा। अब भी जाती हूं। मेरे पति ने हार मान ली है। मुझे सहयोग करता है। इससे मेरा इज्जत और सम्मान बढ़ा है।
यूनियन से जुडने के बाद हमें ताकत मिली। हमारे अंदर हिम्मत आई है। आज अपने अधिकारों के लिए किसी से भी लड़ सकती हूं। यूनियन से ही तो हम महिलाओं में इतनी हिम्मत आई। हम अपने हक मांगने लगे। इससे हमारी एक पहचान भी बनी है। जब तक हूं यूनियन का साथ नहीं छोडूंगी। हमेशा यूनियन के साथ रहूंगी।