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Thursday, April 18, 2024
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थार के शामलात संसाधनों पर मंडराता अस्तित्व का खतरा

-दिलीप बीदावत (बाड़मेर, राजस्थान)

स्टोरी- 1 घटना सितंबर 2016 की है। बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील के कोरणा गांव में विद्युत विभाग का सब ग्रीड स्टेशन बनाने के लिए तालाब के आगौर, गौचर की भूमि आवाप्त करने के लिए ग्राम पंचायत से अनाप्ति प्रमाण-पत्र मांगा। 2800 बीघा शामलात गौचर एवं तालाब आगौर है। छोटे-मोटे 18 तालाब हैं, जिनसे इंसान एवं मवेशी पानी पीते हैं। विद्युत विभाग द्वारा वर्ष 2015-2016 में 765 के.वी. का ग्रीड सब स्टेशन बनाने के लिए कोरणा गांव की कुल शामलात भूमि में से 400 बीघा जमीन अधिग्रहण के लिए चिंहित की गई। भूमि चिंहित करने से पूर्व ग्राम समुदाय व पंचायत से राय तक नहीं ली गई। ग्राम पंचायत से अधिगृहण हेतु अनापत्ति प्रमाण मांगा (एनओसी) गया।

कोरणा के पूर्व सरपंच गुमान सिंह ने बताया कि एनओसी के लिए पत्र आया तब हमें पता चला कि हमारे गांव की शामलात भूमि में से तालाब के आगौर की भूमि का अधिगृहण किया जाना है। ग्राम पंचायत ने एनओसी देने से इंकार किया। सरपंच ने जिला कलक्टर से वार्ता की तथा उनको बताया कि गांव के लोग एनओसी देने के लिए तैयार नहीं है। कलक्टर बाड़मेर ने ग्राम पंचायत स्तर पर रात्रि चैपाल कार्यक्रम रखा तथा गांव के लोगों को भूमि आवाप्त करने का निर्णय बताया। ग्राम पंचायत व गांव के लोगों ने रात्रि चैपाल में जिला कलक्टर को शामलात संसाधनों केे महत्व से अवगत कराते हुए अधिग्रहण निरस्त करने की मांग की।

गांव के लोगों ने बताया कि यहां जल स्रोतों से आस-पास के 20 गांवों केे 30 से 35 हजार लोग पेयजल के लिए निर्भर हैं। गांव के चारागाह पर 10 हजार पशु चराई पर निर्भर है। इन शामलात संसाधनों के कारण यहां की जैव विविधता संरक्षित व सुरक्षित है। प्रति वर्ष हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इनके कारण इस क्षेत्र का पारिस्थिक तंत्र बना हुआ। विद्युत सब ग्रीड स्टेशन बनने से यह सब नष्ट हो जाएगा। जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायत व गांव के लोगों की बात नहीं सुनी। राज्यस्तरीय उच्च अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों से मिले, लेकिन सहयोग नहीं मिला। अंत में गांव के लोगों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस दायर किया जहां से उन्हें राहत मिली।

एनजीटी ने पूरे मामले की जांच की तथा ग्राम पंचायत व गांव के लोगों द्वारा पेयजल, चारागाह, जैव विविधता, पर्यावरण एवं इक्को तंत्र के सभी तर्कों को सही माना। एनजीटी ने सरकार के शामलात भूमि अधिग्रहण पर रोक लगा दी एवं भविष्य में भी इसके अन्य प्रयोजन में उपयोग पर रोक लगाई।

स्टोरी-2 बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील में भारत सरकार द्वारा रिफाइनरी लगाने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। विकास के इस युद्ध में प्रकृति और जन-जीवन हाशिये पर है। रिफाइनरी के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया है। अधिग्रहित भूमि की सीमा पर कई गांव आते हैं, उनमें से एक गांव है, सांभरा। ब्रिटिश शासनकाल में पचपदरा में नमक उत्पादन पीक पर था और सांभरा इसका प्रमुख केंद्र था। आज भी उस जमाने के रेल्वे स्टेशन, अंग्रेज अफसरों केे गेस्टहाउस आदि केे अवशेष बचे हुए हैं।

यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन रहा है। पीने के पानी की किल्लत को ध्यान में रखते हुए स्थानीय समुदाय ने उचित स्थानों पर जल स्रोतों का निर्माण कर मीठे पानी के संग्रहण की व्यवस्था बनाई लेकिन रिफाइनरी के लिए आवाप्त की गई भूमि में सांभरा का कुम्हारिया तालाब शामिल है। सैटलमेंट के दौरान राजस्व रिकाॅर्ड में तालाब की भूमि दर्ज नहीं होने के कारण तालाब व आगौर रिफाइनरी की चारदीवारी में कैद हो गया। स्थानीय समुदाय ने प्रशासन से तालाब को बचाने की मांग की, लेकिन पूंजी की सत्ता के सामने लोगों की आवाज दब गई।

लोगों को भूमि आवाप्ति से बाहर सरला तालाब से उम्मीद बची हुई थी। लेकिन रिफाइनरी एवं सड़कों के निर्माण के लिए जिस कंपनी को टेंडर दिया था, उसने सरला तालाब के आगौर से मिट्टी खोद कर उसे नष्ट कर दिया। नाडे में पानी आवक के रास्ते में गहरे गड्ढे खोद दिए। समुदाय ने स्थानी प्रशासन से इसकी गुहार लगाई, तो प्रशासन ने नया तालाब बनवाने का आश्वासन देकर पल्ला झाड़ लिया लेकिन कंपनी केे खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई।

गांव की महिलाओं ने बताया कि हामरा श्मशान कुम्हारिया नाडा पाल के पीछे हैं, आने-जाने के रास्ते रोक दिए गए हैं। बरसात के दिनों में अवैध खान के गड्ढों में पानी भर जाने से जाने से बीमारियां और जान-माल को खतरा रहेगा। हम गरीब लोगों की गुहार ना अफसर सुनते हैं, ना ही नेता।

स्टोरी-3 जोधपुर जिले के बाप ब्लाॅक नेशनल हाइवे नंबर 11 पर स्थित गांव कानजी की सिढ़ के खसरा नंबर 240 में से 451 बीघा भूमि विद्युत ग्रीड स्टेशन बनाने के लिए आवाप्त कर ली गई। गांव के लोगों के भारी विरोध के बावजूद पाॅवर ग्रीड काॅर्पोरेशन इंडिया लि. द्वारा जोधपुर डिस्कोम के सहयोग से ग्रीड स्टेशन बनाने का कार्य चालू कर दिया।

गांव के लोगों का कहना है कि हमारी आजीविका पशुपालन पर टीकी है तथा गौचर भूमि आवाप्त करने से आजीविका संकट में पड़ जाएगी। उनकी माने तो खसरा नंबर 323 में अन्य सरकारी भूमि उपलब्ध होने केे बावजूद यह भूमि आवाप्त की गई है। इस क्षेत्र के ग्रामीण समुदाय का आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन है। गौचर पर उनकी अत्यधिक निर्भरता है। यह भूमि आवाप्त होने से उनके टिकाऊ रोजगार पर संकट आ जाएगा। उनकोे अपने पशु बेचकर मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ेगा। साथ ही यहां के पर्यावरण, जैव विविधता, इक्को तंत्र कोे भी नुकसान होगा।

स्थानीय समुदाय के विरोध के बावजूद जिला प्रशासन द्वारा गौचर भूमि का एक हिस्सा ग्रीड सब स्टेशन को आवंटित कर देने एवं लोगों की बात कोे अनसुनी कर देने बाद स्थानीय समुदाय ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई लंबित है।

स्टोरी-4 बीकानेर नगर नियोजक विभाग द्वारा मास्टर प्लान-2023 के अंतर्गत शहर से सटे राजस्व गांवों को नगर नियोजन की सीमा में शामिल करते हुए इन गांवों की ओरण, गौचर, पारंपरिक जलस्रोत एवं उनके आगौर की भूमि की किस्म परिवर्तन के लिए नागरिकों की आपत्तियां लेने के लिए जारी अधिसूचना के तहत सैकड़ों प्रबुद्धजन आगे आए तथा सामुदायिक भूमियों के किस्म परिवर्तन का विरोध दर्ज करा रहे हैं।

स्टोरी-5 बाड़मेर जिले के खारड़ी गांव के चारागाह में बने गड़ा नाडा से गांव के लोग सदियों सेे पानी पीते आ रहे थे। खनन माफियाओं की सड़क निर्माण के लिए अच्छी मिट्टी पर नजर पड़ी। देखते ही देखते नाडा खदान में बदल गया। यहां पत्थरिली चट्टानें और चारागाह का मैदान लोगों की आजीविका के साथ-साथ पारिस्थिक तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। खनन विभाग ने चट्टानों को तोड़कर पत्थर निकालने का लीज निजी कंपनी को दे दिया, तो नाडे से मिट्टी का अवैध खनन स्थानीय दबंगों ने चालू कर दिया। यह सारी मिट्टी ग्राम पंचायतों के विकास कार्यों के लिए खरीदी गई।

महात्मा गांधी नरेगा में ग्रेवल सड़क निर्माण के लिए उपयोग हुआ। आम लोगों केे विरोध के बावजूद खनन और राजस्व विभाग के लोकसेवक खनन माफिया के बचाव में खड़े दिखे। गांव की निगरानी पर अवैध खनन तो रुका, लेकिन प्रशासन ने खनन माफियाओं केे खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। इसी कारण से क्षेत्र के बहुत से नाडे, तालाब, चारागाह अवैध खनन के शिकार हुए हैं।

पांचों कहानियों में समुदाय के शामलात संसाधनों से जुड़ी ताजा घटनाएं हैं। थार के रेगिस्तान सहित समूचे देश में जहां भी जल स्रोत, ओरण, गोचर, चारागाह, वन, खलिहान जैसे शामलात संसाधन सदियों से समुदाय द्वारा सुरक्षित व संरक्षित हैं, विकास की असंतुलित हवश के शिकार हो रहे हैं। यह मात्र जमीन के टुकड़े नहीं हैं जिनको विकास के लिए बलि दे दी जाए। यह पृथ्वी के फेफड़े हैं। गांव और शहर दोनों के जीवन के आधार हैं लेकिन मौजूदा अंधविकास केे ज्ञाता शामलात संसाधनों के महत्व और प्राकृतिक मानवाधिकारों के पहचान की दृष्टि खो चुके हैं। कहीं शामलात सरकारी विकास की रफ्तार में कुचले जा रहे हैं, तो कहीं निजी कंपनियों, भू-खनन और वाटर माफियाओं द्वारा रौंदे जा रहे हैं। कानूनी प्रावधानों को लागू करने वाला सिस्टम पूरी तरह से पूंजी की ताकत के साथ खड़ा दिखता है।

लोगों की आवाज को दबाने के लिए स्थानीय दलालों की फोज लोगों को मुआवजे, रोजगार और विकास की चकाचौंध के सब्जबाग दिखा कर, तो कहीं डरा-धमका कर चुप कराने में लग जाती है। रसूखदार लोग अंधविकास की इस बहती गंगा में हाथ धोकर अपना हित साध रहे हैं। छुट भैये गंवई दंबग इन शामलात संसाधनों पर अतिक्रमण कर बैठ गए हैं। आम लोग ग्राम पंचायत व राजस्व विभाग से शामलात संसाधनों के समीज्ञान और निशानदेही के प्रस्ताव देते रहे हैं, लेकिन कार्यवाही नहीं हो रही है।

सवाल उठता है कि इन संसाधनों को कौन व कैसे बचाए ? माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा शामलात संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर दिए गए जजमेंट, राज्य सरकारों को दिए गए निर्देश के बावजूद शामलात संसाधनों की किस्म परिवर्तन कर अन्य प्रयोजन में उपयोग, अतिक्रमण, अवैध खनन जारी है। नेता, अफसर चांदी बटोरने में मश्गुल हैं। सतत् विकास लक्ष्य सूचकांक केवल दिखावे भर के लिए प्रचारित किए जा रहे हैं, विकास योजनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं है। ऐसे में गांव और शहर के लोगों को मिलकर शामलात संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए एकजुटता दिखाने का समय आ गया है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब रेगिस्तान के प्राकृतिक परिवेश को आधुनिक विकास के लंबे नाखूनों से नौच लिया जाएगा, जिसकी भरपाई आने वाली सात पीढ़ियां भी नहीं कर पाएंगी। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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