-डॉक्टर सैयद खालिद कैस
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है जिसे नागरिकों के मूल अधिकारों में भी शामिल किया गया। जिसके कारण पत्रकारिता के लिए किसी न्यूनतम योग्यता को निर्धारित नहीं किया गया। जिसका परिणाम यह हो रहा है देश भर ऐसे लाखों लोग पत्रकारिता कर रहे हैं जिनकी शिक्षा दीक्षा, योग्यता का आभाव देखा जा रहा है। नतीजतन पत्रकारिता की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। ऐसा नहीं है कि इस स्थिति से शासन तंत्र अनभिज्ञ हो। इसी बात की चिंता करते हुए भारतीय प्रेस परिषद के भूतपूर्व अध्यक्ष माननीय जस्टिस मार्कडेय काटजू ने अपने कार्यकाल में पत्रकारिता की न्यूनतम योग्यता तय करने के लिए एक समिति गठित की थी। लेकिन एक लंबे अंतराल बाद भी उक्त समिति की कोई रिपोर्ट नजर नहीं आई तो प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने भारतीय प्रेस परिषद में सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत कर उक्त समिति के संबंध में जानकारी चाही तो मिली जानकारी से यह साबित हो गया कि भारतीय प्रेस परिषद पत्रकारिता के गिरते स्तर के लिए खुद भी जिम्मेदार है।
गौरतलब हो कि प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा भारतीय प्रेस परिषद को सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत भेजे गए आवेदन पत्र का जवाब देते हुए संबंधित लोक सूचना अधिकारी ने लिखित रूप में बताया कि अनुरोधित जानकारी भारतीय प्रेस परिषद के रिफ्रेन्स अनुभाग के पास उपलब्ध नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा कि यह जानकारी पीसीआई के विधि अनुभाग के पास उपलब्ध हो सकती है।
प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के अनियमित आचरण का ही परिणाम है कि आजादी के 77 साल बाद भी जब एक चपरासी की न्यूनतम योग्यता निर्धारित है लेकिन पत्रकारिता की न्यूनतम योग्यता आज तक निर्धारित नहीं है।
पत्रकारिता की न्यूनतम योग्यता के मापदंड के अभाव में पत्रकारिता का गिरता स्तर चिंता का विषय है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया सहित जनरल रजिस्ट्रार न्यूज पेपर ऑफ इंडिया से मांग की है कि पत्रकारिता के गिरते स्तर पर अंकुश लगाने के लिए पत्रकारिता की न्यूनतम योग्यता के मापदंड निर्धारित किए जाए ताकि पत्रकारिता पर लगने वाले आघात पर अंकुश लगाया जा सके। (लेखक प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)