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Wednesday, October 22, 2025
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पत्रकारिता बचेगी तभी लोकतंत्र बचेगा इस देश का

बाबूलाल नागा

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में लापता साहसी पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या की खबर ने स्तब्ध कर दिया है। 31 दिसंबर को घर से निकले मुकेश दो दिन तक लापता रहे, और आखिरकार उनका शव सेप्टिक टैंक में मिला। पुलिस को शक है कि उनकी हत्या एक सड़क निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार की पोल खोलने के चलते हुई। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर पर संलिप्तता का आरोप है। 33 साल के मुकेश देशभर में नक्सल मामलों की पत्रकारिता का चर्चित नाम थे। वे स्वतंत्र रूप से ‘‘बस्तर जंक्शन‘‘ नाम का यूट्यूब चैनल चलाते थे। वे हमेशा सच्चाई और न्याय की लड़ाई लड़ते रहे, आखिरकार भ्रष्टाचारियों की साजिश का शिकार हो गए। मुकेश का गुनाह क्या था? सच दिखाना, भ्रष्टाचार उजागर करना या पत्रकारिता धर्म निभाना?

इस घटना ने बस्तर में पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बस्तर प्रेस क्लब ने इस हत्या को ‘क्षेत्र के इतिहास का काला अध्याय‘ बताते हुए सख्त कार्रवाई और परियोजनाओं के ऑडिट की मांग की है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए पत्रकार की हत्या कर देने की यह पहली घटना नहीं है। इंडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इनिशिएटिव की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में पूरे भारत में पांच पत्रकारों की हत्या हुई और 226 पत्रकारों को निशाना बनाया गया। इनमें यूपी के दो और महाराष्ट्र, असम और बिहार में एक-एक पत्रकार की हत्या हुई। मध्य प्रदेश में 35 साल के पत्रकार संदीप शर्मा की हत्या रेत माफिया के लोगों ने की थी। उन पर डंपर ट्रक चढ़ा दिया गया। उत्तर प्रदेश में शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या भी रेत माफिया ने की। उन्होंने तो पहले ही फेसबुक पोस्ट लिख कर अपनी जान को खतरा बताया था। बिहार के सुभाष कुमार महतो, महाराष्ट्र के शशिकांत वारिशे….कितने स्थानीय पत्रकारों की हत्या उनके ड्यूटी निभाते हुए की गई। इससे पहले साल 2022 में देशभर में 94 पत्रकारों को निशाना बनाया गया। वहीं 8 पत्रकारों की हत्या हुई। इसमें से 103 पत्रकारों को राज्य द्वारा निशाना बनाया गया, 91 पत्रकारों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा निशाना बनाया गया। इसके अलावा 2019 और 2021 के बीच 256 घटनाएं दर्ज की गईं जिनमें पत्रकारों के साथ हिंसा हुई थी। इन घटनाओं में शारीरिक हमले, धमकियां, गिरफ्तारी, और मानहानि के मामले शामिल थे। जिन पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है उसमें बड़ी संख्या में महिला पत्रकार भी शामिल हैं। कुछ दशक पहले उत्तराखण्ड में पौड़ी जिले के शराब माफिया ने नौजवान पत्रकार उमेश डोभाल की हत्या कर दी थी। तब दिल्ली के पत्रकारों ने इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें हेमवतीनंदन बहुगुणा भी शामिल हुए थे। पूरे उत्तराखण्ड के पत्रकार आंदोलित थे। उनके दबाव के कारण ही सीबीआई जांच के आदेश हुए और मनमोहन सिंह उर्फ मन्नू नाम के माफिया को गिरफ्तार किया गया।

ऐसी घटनाएं हर बार फिर सवाल खड़ा करती है कि आखिर मीडियाकर्मियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए। क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना सचमुच इतना खतरनाक हो गया है? आखिर सच दिखाने की कीमत कब तक पत्रकार यूं अपनी जान देकर चुकाते रहेंगे। पत्रकारों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है, संवेदनशील व भ्रष्टाचार के मुद्दों को कवर करने वाले पत्रकारों पर हमले या उनकी हत्या की ऐसी घटनाएं झकझोर देती है।

अपनी जान की बाजी लगाकर सच को लोगों के सामने पहुंचाने वाले जांबाज पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं। प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई भी सभ्य समाज इस तरह के हमलों को स्वीकार नहीं कर सकता। प्रेस को सिर्फ लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा न जाए बल्कि संविधान के जरिए पत्रकारों को जरूरी अधिकार भी दिए जाए। पत्रकार अपना काम ईमानदारी से कर सके इसके लिए उन्हें सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए यथाशीघ्र एक कानून बनाए जाने की जरूरत है। राज्य और केंद्र सरकारों को कम से कम उन पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जो अपनी जान पर खेलकर संवेदनशील इलाकों में गंभीर मुद्दों पर संवाद जुटाने का साहस कर रहे हैं। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)

 

 

बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागाhttps://bharatupdate.com
हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता। आपका -बाबूलाल नागा एडिटर, भारत अपडेट
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