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Saturday, September 13, 2025
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1 मई दिवसः कहानी मजदूरों के संघर्ष और एकता की

टीम भारत अपडेट 19वीं सदी में अमेरिका में एक विशाल मजदूर वर्ग पैदा हुआ था। उस समय अमेरिका में मजदूरों से 12 से 18 घंटों तक काम करवाया जाता था। बच्चों और महिलाओं का 18 घंटों तक काम करना आम बात थी। अगर मजदूर इसके खिलाफ आवाज उठाते थे तो उन पर निजी गुंडों, पुलिस और सेना से हमले करवाए जाते थे लेकिन इन सबसे अमेरिका के जाबाज मजदूर दबने वाले नहीं थे। उन्होंने लड़ने का फैसला किया। 1877 से 1886 तक मजदूरों ने अमेरिका भर में आठ घंटे के कार्य दिवस की मांग पर एकजुट और संगठित होना शुरू किया। 1886 में पूरे अमेरिका में मजदूरों ने ‘आठ घंटे समितियां‘ बनाईं। शिकागो में मजदूरों का आंदोलन सबसे अधिक ताकतवर था। मजदूरों के संगठनों ने तय किया कि 1 मई के दिन सभी मजदूर अपने औजार रखकर सड़कों पर उतरेंगे। आठ घंटों के कार्य दिवस का नारा बुलंद करेंगे।

एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11 हजार फैक्टिरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हजार मजदूर शामिल थे। शिकागो महानगर के आसपास सारा रेल यातायात ठप्प हो गया। शिकागो के ज्यादातर कारखाने और वर्कशॉप बंद हो गए। मजदूरों ने एक शानदार जुलूस निकाला। मजदूरों की बढ़ती ताकत और उनके नेताओं के अडिग संकल्प से भयभीत उद्योगपति लगातार उन पर हमला करने की घात में थे। सारे के सारे अखबार (जिनके मालिक पूंजीपति थे) ‘‘लाल खतरे‘‘ के बारे में चिल्ल-पों मचा रहे थे। पूंजीपतियों ने आसपास से भी पुलिस के सिपाही और सुरक्षाकर्मियों को बुला रखा था। इसके अलावा कुख्यात पिंकरटन एजेंसी के गुंडों को भी हथियारों से लैस करके मजदूरों पर हमला करने के लिए तैयार रखा गया था। पूंजीपतियों ने इसे ‘‘आपात स्थिति‘‘ घोषित कर दिया था। शहर के तमाम धन्ना सेठों और व्यापारियों की बैठक लगातार चल रही थी जिसमें इस ‘‘खतरनाक स्थिति‘‘ से निपटने पर विचार किया जा रहा था।

3 मई को शहर के हालात बहुत तनावपूर्ण हो गए जब मैकार्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के मजदूरों ने दो महीने से चल रहे लॉक आउट के विरोध में और आठ घंटे काम के दिन के समर्थन में कार्रवाई शुरू कर दी। जब हड़ताली मजदूरों ने पुलिस पहरे में हड़ताल तोड़ने के लिए लाए गए। तीन सौ गद्दार मजदूरों के खिलाफ मीटिंग शुरू की तो निहत्थे मजदूरों पर गोलियां चलाई गईं। चार मजदूर मारे गए। बहुत से घायल हुए। अगले दिन भी मजदूर ग्रुपों पर हमले जारी रहे। इस बर्बर पुलिस दमन के खिलाफ चार मई की शाम को शहर के मुख्य बाजार मार्केट रक्वायर में एक जनसभा रखी गई। मीटिंग रात आठ बजे शुरू हुई। करीब तीन हजार लोगों के बीच पार्संस और स्पाइस ने मजदूरों का आहृान किया कि वे एकजुट और संगठित रहकर पुलिस दमन का मुकाबला करें। मीटिंग रात को दस बजे तक चली। मीटिंग में कुछ सौ लोग ही रह गए थे। मीटिंग करीब खत्म हो चुकी थी कि 180 पुलिसवालों का एक जत्था धड़धड़ाते हुए मार्केट चौक में आ पहुंचा। मीटिंग में शामिल लोगों को चले जाने का हुक्म दिया गया। सैमुअल फील्डेन पुलिसवालों को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि यह शांतिपूर्ण सभा है, कि इसी बीच किसी ने मानो इशारा पाकर एक बम फेंक दिया। आज तक बम फेंकने वाले का पता नहीं चल पाया। यह माना जाता है कि बम फेंकने वाला पुलिस का भाड़े का टट्टू था। स्पष्ट था कि बम का निशाना मजदूर थे लेकिन पुलिस चारों और फैल गई थी और नतीजतन बम का प्रहार पुलिसवालों पर हुआ। एक मारा गया और पांच घायल हुए। पगलाए पुलिसवालों ने चौक को चारों ओर से घेरकर भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं। जिसने भी भागने की कोशिश की उस पर गोलियां और लाठियां बरसाईं गईं। छह मजदूर मारे गए और 200 से ज्यादा जख्मी हुए। मजदूरों ने अपने खून से अपने कपड़े रंगकर उन्हें ही झंडा बना लिया।

इस घटना के बाद पूरे शिकागो में पुलिस ने मजदूर बस्तियों, मजदूर संगठनों के दफ्तरों, छापाखानों आदि में जबरदस्त छापे डाले। सैंकड़ों लोगों को मामूली शक पर पीटा गया और बुरी तरह टाॅर्चर किया गया। हजारों गिरफ्तार किए गए। आठ मजदूर नेताओं पर झूठा मुकदमा चलाकर उन्हें हत्या का मुजरिम करार दिया गया। जब मुकदमा शुरू हुआ तो सात लोग ही कठघरे में थे। डेढ़ महीने तक अल्बर्ट पार्संस पुलिस से बचता रहा। वह पुलिस की पकड़ में आने से बच सकता था लेकिन उसकी आत्मा ने यह गवारा नहीं किया कि वह आजाद रहे जबकि उसके बेकसूर साथी फर्जी मुकदमें में फंसाए जा रहे हों। पार्संस खुद अदालत में आया और जज से कहा, ‘‘मैं अपने बेकसूर साथियों के साथ कठघरे में खड़ा होने आया हूं।‘‘ 20 अगस्त 1887 को शिकागो की अदालत ने अपना फैसला दिया। सात लोगों को सजा-ए-मौत और एक (नीबे) को पंद्रह साल कैद बामशक्कत की सजा दी गई।

सारे अमेरिका और तमाम दूसरे देशों में इस कू्रर फैसले के खिलाफ भड़क उठे जनता के गुस्से के दबाव में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो अपील मानने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में इलियान प्रांत के गर्वनर ने फील्डेन और धाब की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 10 नवंबर 1887 को सबसे कम उम्र के नेता लुइस लिंग्न ने लालकोठरी में आत्महत्या कर ली।

अगला दिन (11 नवंबर 1887) मजदूर वर्ग के इतिहास में काला शुक्रवार था। पार्संस, स्वाइस, एंजेल और फिशर को शिकागो की कुक काउंटी जेल में फांसी दे दी गई। अफसरों ने मजदूर नेताओं की मौत का तमाशा देखने के लिए शिकागो के दो सौ धनवान शहरियों को बुला रखा था लेकिन मजदूरों को डर से कांपते घिघियाते देखने की उनकी तमन्ना धरी की धरी रह गई। वहां मौजूद एक पत्रकार ने बाद में लिखा, ‘‘ चारों मजदूर नेता क्रांतिकारी गीत गाते हुए फांसी के तख्ते तक पहुंचे और शान के साथ अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए। फांसी के फंदे उनके गलों में डाल दिए गए।

13 नवंबर को चारों मजदूर नेताओं की शवयात्रा शिकागो के मजदूरों की एक विशाल रैली में बदल गई। पांच लाख से भी ज्यादा लोग इन नायकों को आखिरी सलाम देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े। तब से गुजरे 136 सालों में अनगिनत संघर्षों में वहां करोड़ों मजदूरों का खून इतनी आसानी से धरती में जज्ब नहीं होगा। फांसी के तख्ते से गूंजती स्पाइस की पुकार पूंजीपतियों के दिलों में खौफ पैदा करती रहेगी। अनगिनत मजदूरों के खून की आभा से चमकता लाल झंडा हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

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