–तारा सिंह सिद्धू
साथी रामानंद अग्रवाल अपने दौर में राजस्थान के अग्रणी पंक्ति के नेता रहे व राजस्थान विधानसभा में 1962 से 1977 तक अलवर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। वे एक प्रखर वक्ता थे और राजस्थान विधानसभा में राज्य की मेहनतकश जनता के हित में राज्य के विकास के लिए जोरदार ढंग से आवाज उठाते थे।
वह दौर था जब राज्य विधानसभा में अधिकतर विधायक स्वतंत्रता आंदोलन व जनता के जन आंदोलनों से निकले प्रभावशाली लोग थे। साथी रामानंद अग्रवाल ने कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक दल के नेता के तौर पर अमिट छाप छोड़ी और राज्य के नेतृत्वकारी लोगों की अग्रणी पंक्ति में आ गए।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी रामानंद अग्रवाल का जन्म 3 मई, 1919 को हरियाणा के बलवाड़ी गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा बाबल व रेवाड़ी के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा दिल्ली व लाहौर से प्राप्त की। लाहौर में लॉ की परीक्षा में उन्हें गोल्ड मेडल मिला ।
कुछ दिन गुड़गांव में वकालत करने के बाद वे 1946 में अलवर आ गए और वकालत के साथ-साथ उन्होंने अलवर राज्य प्रजामंडल में सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया। अलवर राज्य में प्रजामंडल पहले से बहुत सक्रिय था और शोभाराम, कृपादयाल माथुर, मास्टर भोलानाथ, लाला काशीराम, रामजी लाल अग्रवाल इत्यादि इसमें सक्रिय थे और अनेक युवा इस आंदोलन की ओर आकर्षित थे जिनमें छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रभाव में आ चुके वामपंथी रुझान के युवा भी थे।
तत्कालीन अलवर राज्य में स्वतंत्रता आंदोलन में काम करने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है उनमें से अनेक स्वतंत्रता सेनानी साथी रामानंद अग्रवाल के जीवन संघर्षों के साथी रहे।
पहले से क्षेत्र में छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन के प्रभाव से वामपंथी विचार वाले नौजवानों ने साथी एंशीलाल विद्यार्थी व दादा किशनचंद के पाकिस्तान से अलवर आने के बाद 1951 में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया। एंशीलाल विद्यार्थी और दादा किशनचंद सिंध पाकिस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे। जिनका सिंध से आए हुए हारूमल तोलानी से भी निजी संपर्क था।
रामानंद अग्रवाल जो प्रजामंडल व बाद में कांग्रेस पार्टी में अपनी प्रभावशाली हैसियत बना चुके थे।
1952 के विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी छोड़कर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए इसका प्रभाव अन्य लोगों पर भी पड़ा और उन्होंने भी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। अलवर क्षेत्र जन आंदोलनों व पुरुषार्थी आंदोलन के कारण कम्युनिस्ट प्रभाव का क्षेत्र बन गया। प्रजामंडल में काम करते हुए उन्होंने सर्वोदय प्रेस भी लगाया। यहां से स्वतंत्र भारत नाम के समाचार पत्र का प्रकाशन होता रहा जिसके रामानंद अग्रवाल संपादक रहे। उन्होंने कानून की शिक्षा के अलावा पत्रकारिता में भी डिग्री हासिल कर रखी थी। हालांकि 1952 से 57 के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को सफलता नहीं मिली लेकिन 1957 में अलवर नगर परिषद में कम्युनिस्टों के प्रभाव वाले नागरिक मोर्चा ने विजय हासिल की।
1962 में रामानंद अग्रवाल अलवर से विधानसभा के सदस्य चुने गए तब पार्टी के जीते हुए पांच विधायकों में से दो अलवर के थे दूसरे साथी हरी राम चैहान तिजारा से विजय हुए। 1962 के इसी चुनाव में दो अन्य साथी हारूमल तोलानी रामगढ़ से मात्र 500 वोट से हारे तथा रतिराम भी सफल नहीं हुए लेकिन तब पार्टी द्वारा समर्थित काशीराम गुप्ता लोकसभा सदस्य निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत गए उन्होंने कांग्रेस के सशक्त नेता शोभा राम को हराया। अनेक जनांदोलनों की धरती अलवर तब लेनिनग्राद कहलाता था।
अन्य विजय साथी थे स्वामी कुमारानंद, योगेंद्रनाथ हांडा, श्योपत सिंह मक्कासर थे। रामानंद अग्रवाल पुनः 1967 में अलवर से विधायक चुने गए और 1972 में भी विजय रहे।
1972 में मोहम्मद गफ्फार अली, केसरीमल जी योगेंद्रनाथ हांडा व रत्तीराम जी विजय रहे रामानंद अग्रवाल ने विधायक दल के नेता के तौर पर राज्य की जनता की विधानसभा के अंदर पैरवी की वे बहुत अच्छे कानूनविद व प्रखर वक्ता थे और जनता के जीवन संघर्षों का उन्हें अनुभव था।
उनका दौर मोहनलाल सुखाड़िया, बरकतुल्लाह खां व हरिदेव जोशी के मुख्यमंत्री का दौर था तब सत्ता व विपक्ष के विधानसभा में अनेक दिगज सदस्य रहते थे।
साथी रामानंद अग्रवाल ने राज्य में स्वामी कुमारानंद, दादा पोतकर, एच. के. व्यास, एंशीलाल, हारूमल तोलानी, मोहन पुनमिया, के साथ काम किया। 1968 में राजस्थान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव चुने गए जो 1978 श्रीगंगानगर राज्य सम्मेलन में साथी रोशन लाल के राज्य सचिव चुने जाने तक बरकरार रहे। लगभग 20 वर्ष तक पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे वे पार्टी में प्रमुख सिद्धांतकारों में एक थे।
16 मई 1979 को महान स्वतंत्रता सेनानी, संघर्षों के योद्धा राजस्थान विधानसभा के प्रखर वक्ता का देहांत हो गया।
1974 में विधानसभा के बहस की रिपोर्टिंग करते हुए एक पत्रकार ने लिखा था कि विधानसभा में खड़े होकर जब रामानंद अग्रवाल अपने दाएं हाथ की उंगली उठाकर बोलने लगते हैं तो लगता है सारा सदन उनके दायरे में आ गया ।
जहां वे जन आंदोलनों के नेता थे वहीं राज्य में वे एक अच्छे संगठनकर्ता थे। उन्होंने राज्य में घूम-घूम कर आदिवासियों, खेतिहर मजदूरों व कच्ची बस्ती वालों के संगठन खड़े किए। स्वयं के राज्य सचिव बनने के बाद राज्य में नेतृत्वकारी टीम खड़ी की जिनमें के. विश्वनाथन दुष्यंत ओझा, प्रेमचंद जैन रोशनलाल, मेघराज तावड़, योगेंद्र नाथ हांडा, पांचाराम चावरिया, रतीराम यादव व कांतिशंकर शुक्ला, घनश्याम सिह भाटी, प्रताप सिंह महरिया इत्यादि को साथ लेकर टीम बनाई। उन्होंने काडर को पहचाना व उसकी क्षमता विकसित की और उन्हें आगे बढ़ाया। उनके दौर में अनेक जन आंदोलन, राज्य की रैलियां आयोजित हुईं।
12 जून 1972, 1975 का विधानसभा प्रदर्शन और 5 जून 1978 की जनता पार्टी राज में विशाल रैली आदि उन्हीं के नेतृत्व में आयोजित हुई।
1969-70 का ऐतिहासिक भूमि आंदोलन जिसमें राजस्थान के किसानों के पक्ष में अभूतपूर्व जीत हुई उसमें रामानंद अग्रवाल का बहुत बड़ा योगदान व नेतृत्व था क्योंकि तब वे ही एकमात्र कम्युनिस्ट विधायक थे। वे जमीनी सुधारों, भूमिहीनों को जमीन देने आदिवासियों को उनके जल जंगल जमीन के हक, सूदखोरों से मुक्ति, सागडी प्रथा की समाप्ति व बेघरों को रहने का घर देने इन सब सवालों पर तीखे आंदोलनों के पक्षधर थे और हर वक्त प्रयासरत रहे। भूदान की जमीन बंटे, बड़े-बड़े कृषि फार्म भूमिहीनों में बंटे इसके लिए वे लड़ते रहे।
25 जून 1975 को जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई। उस दिन वे अनूपगढ़ में उस जत्थे का नेतृत्व करने पहुंचे थे जिसने बांगड़ फार्म की जमीन पर कब्जा करना था। बंद गले का कोट, खुली मोहरी का पजामा कुर्ता (सफेद) हाथ में फाइल बैग और पैदल- पैदल सी-5 से हर जगह जाना यही सादगी भरे जीवन का उनका व्यक्तित्व तथा उनका जीवन हर दृष्टि से प्रेरणादायक रहेगा। विद्धता से प्रखर वक्ता के तौर पर अनुशासित प्रतिबद्ध व संघर्षशील कम्युनिस्ट योद्धा के तौर पर वे सदैव याद रहेंगे। अलवर में उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष एक सभा का आयोजन किया जाता है। रामानंद स्मारक समिति का यह कार्य सराहनीय है उनकी स्मृति में एक ग्रंथ का भी प्रकाशन किया गया है जिसमें अलवर के जन संघर्षों की गौरवशाली गाथा का विवरण है जो कि पठनीय है।
जनसंघर्षों के योद्धा के तौर पर वे हमेशा याद रहेंगे। वे हम सबके आदरणीय तो हैं ही उससे कहीं ज्यादा अनुकरणीय है। (लेखक राष्ट्रीय किसान सभा के सचिव हैं)