-अनीस आर खान, नई दिल्ली
18 दिसंबर 2025 को Empower People अपने सामाजिक हस्तक्षेप के 20 वर्ष पूरे कर रहा है। यह सिर्फ़ एक संस्था की वर्षगांठ नहीं, बल्कि उन हज़ारों महिलाओं और लड़कियों की कहानी है, जिन्होंने शोषण, तस्करी और ज़बरन विवाह जैसे अन्याय के खिलाफ़ खड़े होने का साहस किया। दो दशकों का यह सफ़र बताता है कि जब समुदाय, सर्वाइवर और संवेदनशील नेतृत्व साथ आते हैं, तो बदलाव केवल संभव ही नहीं—स्थायी भी होता है।
शुरुआत: एक विचार से आंदोलन तक
Empower People की शुरुआत वर्ष 2005 में एक छोटे से प्रयास के रूप में हुई थी। उस समय उद्देश्य था—हाशिए पर खड़े युवाओं और महिलाओं के बीच शिक्षा और जागरूकता फैलाना। लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि केवल जागरूकता पर्याप्त नहीं है। मानव तस्करी, विशेषकर ब्राइड ट्रैफिकिंग, महिलाओं के जीवन को भीतर तक तोड़ रही थी। यहीं से संस्था ने अपना फोकस स्पष्ट किया—रोकथाम, बचाव, पुनर्वास और सशक्तिकरण।
संस्था के संस्थापक शफीक उर रहमान खान कहते हैं कि “हमने शुरुआत समस्या से नहीं, समाधान से की। हमें विश्वास था कि अगर सर्वाइवर को नेतृत्व का अवसर दिया जाए, तो वह सबसे सशक्त परिवर्तनकर्ता बन सकती है।”

समस्या की गंभीरता: आंकड़े जो चौंकाते हैं
भारत में हर साल हज़ारों महिलाएं और लड़कियां मानव तस्करी का शिकार होती हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, उत्तर भारत के कई इलाकों में ब्राइड ट्रैफिकिंग एक संगठित अपराध का रूप ले चुकी है। Empower People के आंतरिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 20 वर्षों में संस्था ने 1,500 से अधिक मामलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष हस्तक्षेप किया है—जिसमें बचाव, काउंसलिंग, कानूनी सहायता और समुदाय आधारित पुनर्वास शामिल है।
इन हस्तक्षेपों का असर केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामुदायिक सोच पर भी पड़ा है। जिन गांवों में पहले इस मुद्दे पर चुप्पी थी, वहां आज खुलकर बातचीत हो रही है।
बचाव से आगे: पुनर्वास और गरिमा की वापसी
Empower People का काम बचाव तक सीमित नहीं रहा। संस्था का मानना है कि पुनर्वास बिना आजीविका और सामाजिक स्वीकृति के अधूरा है। इसी सोच के तहत, संस्था ने स्किल-बिल्डिंग और आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रम शुरू किए।
EP-SkillBuild जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए सैकड़ों महिलाओं को सिलाई, हस्तशिल्प, डिजिटल साक्षरता और छोटे उद्यमों से जोड़ा गया। संस्था के अनुसार, इनमें से लगभग 70% महिलाएं आज आंशिक या पूर्ण आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल कर चुकी हैं।
सर्वाइवर की आवाज़: “अब मैं अपने फैसले खुद लेती हूँ”
हरियाणा के एक छोटे गांव की रहने वाली रीना (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “जब मुझे यहां लाया गया था, तब मुझे अपना नाम तक बोलने का हक़ नहीं था। Empower People से जुड़ने के बाद मैंने पहली बार महसूस किया कि मेरी भी कोई पहचान है।”
आज रीना न केवल अपने बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च उठा रही हैं, बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी जागरूक करती हैं। ऐसी कहानियां Empower People के काम की असली पहचान हैं।
समुदाय आधारित मॉडल: बदलाव भीतर से
Empower People का सबसे अनूठा पहलू उसका समुदाय आधारित और सर्वाइवर-नेतृत्व वाला मॉडल है। संस्था ने उन इलाकों में भी काम किया, जहां महिलाएं बचाव के बाद अपने ही ससुराल या समुदाय में रह रही थीं। वहां ‘सर्वाइवर कम्यून’ और समूह बनाए गए, ताकि महिलाएं एक-दूसरे का सहारा बन सकें।
एक फील्ड कोऑर्डिनेटर बताते हैं, “जब महिलाएं खुद आगे आकर बात करती हैं, तो समुदाय सुनता है। बाहर से आई कोई भी संस्था यह काम अकेले नहीं कर सकती।”

20 साल की यात्रा: सहयोग और साझेदारी
इन दो दशकों में Empower People ने सरकारी विभागों, स्थानीय पुलिस, वकीलों, सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवकों के साथ मिलकर काम किया है। संस्था मानती है कि साझेदारी के बिना सामाजिक बदलाव संभव नहीं।
आज Empower People के नेटवर्क में दर्जनों प्रशिक्षित कार्यकर्ता, सैकड़ों सक्रिय समुदाय सदस्य और अनगिनत समर्थक शामिल हैं।
आगे का रास्ता: उम्मीद और प्रतिबद्धता
20 साल पूरे होने के इस मौके पर Empower People केवल पीछे मुड़कर नहीं देख रहा, बल्कि आगे की राह भी तय कर रहा है। आने वाले वर्षों में संस्था का फोकस होगा—युवा नेतृत्व, डिजिटल जागरूकता और नीति स्तर पर हस्तक्षेप।
संस्था की एक वरिष्ठ कार्यकर्ता कहती हैं, “हमारा सपना है कि आने वाले समय में किसी भी महिला को यह न कहना पड़े कि उसके पास कोई विकल्प नहीं था।”
निष्कर्ष: एक यात्रा, जो जारी है
Empower People के 20 साल यह साबित करते हैं कि सामाजिक बदलाव रातों-रात नहीं होता। यह धैर्य, विश्वास और निरंतर संघर्ष का परिणाम होता है। यह कहानी उन महिलाओं की है, जिन्होंने हालात के आगे घुटने नहीं टेके, और उन लोगों की है जिन्होंने उनके साथ खड़े रहने का साहस किया।
