–डॉ. राकेश राणा
वैश्वीकरण का दौर बाजार का दौर है। जो लाभ की दृष्टि से पूरी तरह आप्लावित है। जोड़-घटा का गणित ही मानवीय क्रिया-कलाप को संचालित कर रहा है। ऐसे वातावरण में संवेदना, रचनात्मकता, जिज्ञासा और जरूरत के लिए जगह ही नहीं बचती है जबकि संवेदना तो समाज का आधार है। समाज की विविधताओं, आवश्यकताओं और इच्छाओं को संवेदना के साथ समझने की क्षमता शिक्षा की उदार ज्ञान धाराएं ही प्रदान करती है। आज जिस तरह से बदलावों की बयार है। मशीनीकरण का विस्तार, जलवायु परिवर्तन और कृत्रिम मेधा तथा अंधाधुंध उपभोग व पर्यारवरण क्षरण से समाज नए-नए तनावों का सामना कर रहा है। उसके लिए एक स्मार्ट मानव व्यवहार विकसित होना जरूरी है। आज वर्चुअल व्यवहार स्मार्टफोन और इंटरनेट जिन तनावों और जटिल समस्याओं के बीच मानव को फंसाए खड़ा है उनमें लिबरल आर्ट्स जैसे माध्यम उत्तर-आधुनिक दौर के मनुष्य का सशक्तीकरण करने में अहम् भूमिका निभाएंगें। मौजूदा दौर में अलग ढंग के कौशलों और दृष्टिकोणों की जरूरत है। जिसके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आवश्यक शर्त है। समय की इसी आवश्यकता को समझते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में मुख्य फोकस गुणवत्ता आधारित शिक्षा प्रदान करने पर है।
इस दिशा में नई शिक्षा नीति की यह प्रतिबद्धता कि शिक्षा बजट बढ़ाकर जीडीपी का 6 प्रतिशत कर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है, एक सराहनीय पहल है। इससे शिक्षा क्षेत्र के संसाधनों का विकास संभव हो सकेगा। नई नियुक्तियां होगी जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात बेहतर बन सकेगा। प्राचीन भारतीय भाषाएं प्राकृत, पाली व पर्सियन के संरक्षण व संवर्धन के प्रति प्रतिबद्धता नीति का नया आयाम है। मल्टीपल एंट्री-एग्जिट के प्रावधानों से भी उच्च शिक्षा में स्वतंत्रता और समानता के मूल्य मजबूत होंगे। वहीं रुचि के विषयों के साथ अध्ययन करने से सृजनात्मक और रचनात्मक वातावरण बनने की संभावनाएं प्रबल होंगी। ये नए प्रयोग शिक्षा की गुणवत्ता में गुणात्मक ढंग से परिवर्तन लाएंगे। नई शिक्षा नीति के तहत वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में नामांकन को 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एनरोलमेंट को 26.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके लिए अनुमानतः 3.3 करोड़ सीटें उच्च शिक्षा के लिए बढ़ानी होंगी। जिसका सकारात्मक प्रभाव यह होगा कि इससे रोजगार के नए अवसर भी बढ़ेंगे और विकास भी विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा। प्रत्येक जनपद में एक उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करने का निर्णय भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा मे महत्वपूर्ण योगदान करने वाला सिद्ध होगा।
प्रबंधन और पर्यावरण अध्ययन का संबंध बहुविषयक शिक्षा से है। इनके दायरे में वह सब आता है जिससे मानव सभ्यता विकसित हुई है। लिबरल आर्टस की यह शिक्षा ही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को व्यापकता प्रदान करती है। जिसके जरिए मनुष्य अपने अतीत से जुड़कर अपनी मौजूदा समस्याओं को संबोधित करता हुआ अपने भविष्य को संवारने-समझने में सफल ढंग से आगे बढ़ता है। इसीलिए नई शिक्षा नीति इन उदार विद्याओं को शिक्षा प्रणाली मंह विशेष स्थान देने की हिमायती है। नई शिक्षा नीति में पर्यावरणीय जागरूकता, जल व संसाधन संरक्षण और स्वच्छता व प्रबंधन शामिल हैं। यह वास्तव में स्थायी भविष्य के लिए अनिवार्य है और तेजी से वैश्वीकृत होती अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक भी। सतत विकास की दृष्टि से भी यह जरूरी है। यह संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष एजेंडे का भी हिस्सा है और हमारी नई शिक्षा नीति का भी।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 21वीं सदी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रणाली को लचीली, बहु-विषयक और बहु-वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर तैयार किया गया है। जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की स्थापना की जा सके। प्रत्येक शिक्षार्थी की विशेष क्षमता का सदुपयोग समाज व राष्ट्र विकास में सुनिश्चित किया जा सके। साथ ही भारतीय परंपराओं और मूल्यों का संरक्षण व संवर्धन नई शिक्षा नीति के माध्यम से संभव हो सके। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक समावेशी और उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रणाली के प्रति प्रतिबद्ध है। जिससे ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में मदद मिल सके और भारत 21वीं सदी में दुनिया का एक सुपरपावर राष्ट्र बन सके। इस दिशा में आवश्यक पहल करने का दायित्व ’राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा समिति’ कौ सौंपा गया है। जो यह सुनिश्चित करने का काम करेगी कि पाठ्यक्रम में भारतीयता का पुट पूरी तरह शामिल रहे। लोक जनमानस में बसा परम्परागत ज्ञान कैसे देश के विकास की मुख्यधारा में अपना योगदान दे सके। समाज के परम्परागत ज्ञान को ऐसे तरीकों में ढालकर वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। जिसमें भारतीय परंपराओं, मान्यताओं और स्थानीयता विशेषताओं की उपस्थिति दर्ज हो सके। इसमें भाषा, संस्कृति, सभ्यता और विरासत तथा मनोविज्ञान के प्राचीन ज्ञान भंडार को समाहित रखा जाएगा। पाठ्यक्रम में कहानियां, कला, खेल, संवाद, योग, ध्यान, परम्परागत और मौलिक हुनर को शामिल कर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जाएगा। आदिवासी समुदायों की चिकित्सा पद्धति, वन संरक्षण, पारंपरिक व प्राकृतिक खेती के तौर-तरीके और जीवनानुभव व अनुसंधान पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। नई शिक्षा नीति प्रत्येक भाषा, कला और संस्कृति को समान रूप से संरक्षित और सवंर्धित करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि शिक्षा में स्थानीयता के समावेश के साथ गुणवत्ता जरूरी है।
शिक्षा में टेक्नोलॉजी का सदुपयोग कर योजनाबद्ध ढंग से शैक्षिक प्रशासन और प्रबंधन को प्रभावी बनाने तथा वंचित समूहों तक शिक्षा की पहुंच को सुगम बनाने के लिए एक स्वायत्त निकाय ’राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ बनेगा। जिसके माध्यम से शिक्षा प्रणाली को टैक्नो-फ्रेंडली बनाने की दिशा में काम किया जाएगा। इसी तरह ’नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ परम्परागत ज्ञान संरचनाओं की खोजबीन में विशेष योगदान करेगा। फलस्वरूप शिक्षा में गुणवत्ता मौलिकता और रचनात्मकता के साथ स्थापित हो सकेगी। नई शिक्षा नीति क्लास रूम से बाहर शिक्षा को ले जाने की दिशा में नए प्रयोगों को प्रेरित करने वाली है। शिक्षा को रोजगार से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। वोकेशनल एजुकेशन को प्रभावी रूप में शिक्षा का हिस्सा बनाया जाएगा।
निष्कर्षतः नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सहभागिता आधारित, बहुआयामी, भारतीयता कंेद्रित और समावेशी प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय आकांक्षाओं और उददेश्यों को पूरा करने की मंशा से भारत को एक ज्ञानमय समाज में रूपांतरित करने की दिशा में अहम् कदम है। नई शिक्षा नीति देश के युवा-वर्ग को नए कौशलों और नए ज्ञान से लैस करेगी। देश को सुपरपावर बनाने के इस महान उद्देश्य को पाने में मददगार बनेगी। विज्ञान, तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान की संस्कृति विकसित कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आधार तैयार करने में नई शिक्षा नीति आशा की बड़ी की किरण है। जिसमें गुणवत्ता शिक्षा की दिशा में विज्ञान, भाषा और गणित पर विशेष जोर है। बच्चों में लेखन कौशल बढ़ाने वाले नवाचार जिसके लिए सप्ताहन्त, मेले, प्रदर्शनी, दिवार-अखबार, चर्चाएं और शिक्षण की कहानी पद्धति के साथ कहानी सुनाना, नाटक खेलना और चित्रों का डिसप्ले बोर्ड, अध्ययन और संवाद की नई संस्कृति का विस्तार नई शिक्षा नीति को वाकई नया बनाता है। (लेखक युवा समाजशास्त्री है)