–अशफाक कायमखानी
हालांकि नुक्कड़ व चौराहओं पर बिना वजह बैठक करने के साथ-साथ देर रात तक बिना वजह जागते रहने की इस्लाम धर्म में सख्त मनादी के बावजूद मुस्लिम बस्तियों में नुक्कड़़-चौराहओं व स्ट्रीट लाइटों के आस-पास देर रात तक बैठकें चलना आम बात है। वही जिनको सुबह जल्द (भाग फाटने के साथ) उठने की सख्त हिदायतें होने के बावजूद अगर इन दिनों मुस्लिम बस्तियों पर नजर डाले तो पाएंगे कि सूरज उदय होने के साथ ऊपर चढ़ आने तक घरों से या तो कूलर चलने की आवाज सुनाई देगी या फिर सन्नाटा नजर आएगा।
मुस्लिम बस्तियों में सुबह-सुबह सन्नाटें के बावजूद चाय की थड़ियों पर कुछ बुजुर्ग लोग चाय पीने इसलिए आते हैं कि उनके घरों में उनके अलावा अन्य कोई जल्द नहीं उठने के कारण उन्हें कौन चाय बनाकर दे। कुछ सीनियर लोग जो रात को जल्दी सो जाते हैं वो सुबह उठ भी जल्दी जाते हैं। कोई अपनी इबादत करके या फिर नित्य क्रियाओं से फ्री होने के बाद वो बस्ती की चाय थड़ी पर इसलिए चाय पीने के बाहने समय काटता है कि जब उनके घरवाले उठे तब वो घर वापिस जाए।
प्राकृतिक, धार्मिक व हेल्थ दिनचर्या के विपरीत देर रात सोने व सुबह सूरज चढ़ने के बाद बिस्तर छोड़ने के केवल और केवल नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं है। देरी से उठने वाला शख्स दिन पर आलसी तबीयत का धनी व चिड़चिड़ापन का हकदार रहेगा। जब कभी घर की महिलाएं सुबह उठकर घर-आंगन व बाहर चैक-रास्ते की बुआरी-सफाई करने के अलावा हाथ चक्की से अनाज पीस कर रोटी बनाती थी। कुछ जगह तो पशु चराई व दूध निकालना भी महिलाएं किया करती थीं। पुरुष जल्द नित्य क्रियाओं से फ्री होकर रोजगार की तलाश या रोजगार पर चले जाते थे। आज घरों में पहले के मुकाबले अधिक सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद सबकुछ उलटा-पुलटा हो रहा है।
कहते है कि मुस्लिम बस्तियों में धार्मिक ईदारों की कमी नहीं है। उनसे धार्मिक प्रचार व धार्मिक कार्य किए जाते जरूर है लेकिन उनसे दिनचर्या को दूरस्त करने के साथ-साथ जदीद तालीम पाने के लिए किसी भी तरह का अभियान चलाया नहीं जाता है। किसी ने किसी को कहा कि आज दुनिया भर में इस्लाम धर्म पर खतरे मंडरा रहे हैं, तो तपाक से दूसरे ने जवाब दिया कि इस्लाम धर्म पर कोई खतरा नहीं बल्कि मुसलमानों पर खतरे मंडरा रहे हैं। मुसलमान आज कहां खड़ा है और वहां वो क्यों खड़ा है, इस पर मंथन करना चाहिए।
कुल मिलाकर यह है कि देर रात तक बिना वजह लोगों का जागते रहना और सुबह जल्दी उठने से परहेज करने के अलावा नुक्कड़ व चौराहओं के साथ-साथ थड़ियों पर झूंड के झूंड में लोगों का बैठे रहना आज आम मुस्लिम बस्तियों के हालात बन चुके है। लेकिन इन सबसे निजात पाने का प्रयास करता मुस्लिम समुदाय नजर नहीं आ रहा है।
एक दफा फिर दोहराना उचित समझता हूं कि आज इस्लाम धर्म पर किसी तरह के खतरे के बादल नहीं मंडरा रहे हैं बल्कि मुसलमानों पर खतरे के बादल जरूर मंडरा रहे हैं जिनके वो स्वयं जिम्मेदार अधिक है। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)