-मुनेश त्यागी
आधुनिक भारत के महानतम विद्वानों, लेखकों और साहित्यकारों में सबसे अग्रणी नाम राहुल सांकृत्यायन का है। उनका जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के गांव पंदहा में हुआ था। उनके पिता रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे। उनका बचपन का नाम केदारनाथ पांडे था। श्रीलंका में बौद्ध धर्म और महात्मा बुध्द पर अध्ययन करने के कारण उन्हें “राहुल” कहा गया। राहुल सांकृत्यायन अपने पर्यटन से, अपने प्रयत्नों से और अपनी मेहनत से एक महान रचनाकार बनें। वे तीस से भी अधिक भाषाएं जानते थे। उन्होंने दुनिया के कई देशों जैसे इंग्लैंड, तिब्बत, श्रीलंका, ईरान, चीन, सोवियत यूनियन, अफ्रीका आदि देशों की यात्राएं की और अपने घुमक्कड़ी जीवन में अनेक महत्वपूर्ण और बेहतरीन रचनाओं को जन्म दिया। वे ज्ञान, विज्ञान और तर्क के भंडार थे, इसलिए उन्हें “महापंडित” की उपाधि दी गई।
वे 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद अंग्रेजों के साम्राज्यवाद विरोधी आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने अपने लेखन के क्षेत्र में समाज शास्त्र, इतिहास, धर्म, दर्शन शास्त्र, भाषा विज्ञान, विज्ञान, जीवनी लोक कथा सहित 146 पुस्तकें प्रकाशित कीं, लिखीं। हिंदू धर्म की ज्यातियों, पाखंड और अंधविश्वासों की वजह से उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाया और बाद में, वे मार्क्स की और साम्यवाद की ओर मुड़ गए और आजीवन इन्हीं की शरण में रहे।
उन्होंने बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें हिंदी में लिखी- पुस्तकें वोल्गा से गंगा, तुम्हारी क्षय, साम्यवाद ही क्यों मध्य एशिया का इतिहास, 22 वीं सदी, जीने के लिए, सिंह सेनापति, जय योधेय, मधु स्वप्न, दर्शन दिग्दर्शन, घुमक्कड़ शास्त्र और भागो नहीं दुनिया को बदलो जैसी महत्वपूर्ण और बेहतरीन पुस्तकें शामिल हैं। वे मजदूरों, किसानों और लेखकों के जन्मजात नेता थे। वे अखिल भारतीय किसान सभा के संस्थापकों में से एक थे और 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। बाद में उन्होंने साम्यवाद की सेवा को अपने जीवन को अंतिम लक्ष्य बना लिया था। उन्होंने किसान आंदोलन को विस्तार विस्तार देने में बड़ी भूमिका निभाई और अखिल भारतीय किसान सभा के निर्माण में बढ़कर हिस्सेदारी की।
वे एक महान साहित्यकार थे। उन्होंने लुप्त बौद्ध साहित्य की खोज की। वे तिब्बत और चीन गए और वहां से 25-30 खच्चरों पर लादकर बौद्ध साहित्य को भारत लाए जो पटना में आज भी सुरक्षित है। इसका उन्होंने संस्कृत और हिंदी में अनुवाद किया। उनका कहना था कि “रूढियों को लोग इसलिए मानते हैं कि उनके सामने रूढियों को तोड़ने के उदाहरण, पर्याप्त संख्या में नहीं है।” उन्होंने कहा था कि “लोगों को इस ख्याल का प्रचार जोरदार ढंग से करना चाहिए कि मजहब और खुदा गरीबों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। वे मरने के बाद स्वर्ग का लालच देकर इस जीवन को नरक बनाते हैं।”
राहुल सांकृत्यायन पूरे संसार को अपना घर समझते थे। वे एक महान यात्राकार, इतिहासविद, तत्व अन्वेषी, राजनीति शास्त्री, समाज शास्त्री, साम्यवादी समाजवादी विचारक और चिंतक और महान लेखक थे। वे एक बड़े किसान आंदोलनकारी थे। उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और मार्क्सवाद को अपना बसेरा बना लिया। 1938 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए।
उन्होंने अपने जीवन में सरदार पृथ्वी सिंह, नए भारत के नेता, लेनिन, स्टालिन, कार्ल मार्क्स, माओ त्से तुंग, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, महामानव बुद्ध की जीवनियां लिखीं। वे महान स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत को साम्राज्यवादी लुटेरे अंग्रेजों की गुलामी और दासता से मुक्ति और आजादी दिलाना चाहते थे। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 5 वर्ष जेल में कैद रहे। वे अद्भुत मनीषी थे, धार्मिक पाखंडों और अंधविश्वासों के मुखर विरोधी थे और ज्ञान की मशाल लेकर आगे बढ़े और दूसरों को आगे बढ़ने का आह्वान किया।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बने और कर्मयोगी बने और उन्होंने बुध्द और मार्क्स को एक साथ जोड़ कर उन्हें एक नया रूप प्रदान किया। उनका कहना था कि “हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फेंकने के लिए तैयार रहना चाहिए। बाहरी क्रांति से ज्यादा मानसिक क्रांति की जरूरत है। हमें आगे पीछे, दाएं बाएं, दोनों हाथों से नंगी तलवार चलाते हुए अपनी सभी रूढियों को काट कर आगे बढ़ना चाहिए।”
उनका कहना था कि “हमें अपने संकीर्ण विचारों को तत्काल छोड़ना होगा। पहले भी यही संकीर्ण मानसिकता हमें गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए थी और आज पूंजीवादी समाज ने भी यह वही काम कर रही है। धर्म के बारे में कहते हैं धर्म आज भी वैसा ही हजारों मूढ विश्वासों का पोषक और मनुष्य की मानसिक दासता का समर्थक है जैसा 5 हजार साल पहले था। सभी धर्म दया का दावा करते हैं मगर वहां क्रूरता भरी पड़ी है।”
राहुल सांकृत्यायन अपनी प्रमुख पुस्तक “तुम्हारी क्षय” में हमारे पाखंडी समाज, जाति, धर्म और भगवान की धज्जियां उड़ाते हैं। वे खुलेआम कहते हैं कि तुम्हारे समाज की क्षय हो, तुम्हारी जाति की क्षय हो, तुम्हारे धर्म की क्षय हो और तुम्हारे भगवान की क्षय हो। हिंदुस्तान में हमें मजहब के बारे में सिखाया जाता है कि “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” मगर मजहब और धर्म की मानव विरोधी प्रकृति को देखकर राहुल सांकृत्यायन कहते हैं,,,
मजहब तो है सिखाता आपस में बैर रखना,
भाई को है सिखाता भाई का खून पीना।
अपनी विश्वस्तरीय पुस्तक “भागो नहीं दुनिया को बदलो” में वे कहते हैं कि समाज और दुनिया में छाई और व्याप्त सामाजिक बीमारियों, अंधविश्वास, चोरी, मक्कारी, अन्याय, शोषण और जुल्म ओ सितम को छोड़कर आप भाग नहीं सकते, आपको इनसे जानबूझकर लोहा लेना पड़ेगा इन से संघर्ष करके इस जन विरोधी मानसिकता को बदलना पड़ेगा और इसके स्थान पर एक बेहतर और मानवीय समाज की रचना करनी पड़ेगी जिसमें न्याय, समानता, दया ,सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी भाईचारा हो, सबके लिए शिक्षा हो, सबके लिए स्वास्थ्य हो।
अपनी बेहतरीन पुस्तक साम्यवाद ही क्यों? में, वे कहते हैं कि ऊंच-नीच, छोटा बड़ा की मानसिकता, शोषण अन्याय और भेदभाव से भरे समाज में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा। सबको रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा करानी होगी, मनुष्य द्वारा मनुष्य का लूट शोषण और अन्याय का समूल विनाश करना होगा तथा एक बेहतर मानव, बेहतर समाज और बेहतर दुनिया का निर्माण करना पड़ेगा।”
हमारी राय में राहुल सांकृत्यायन एक बड़ी हस्ती हैं ज्ञान, विज्ञान, तर्क, इंसाफ, दया, मानवता के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं है। हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए, एक सच्चा और असली इंसान बनने के लिए उनका अनुकरण करना ही पड़ेगा। उनकी किताबों का विस्तृत और गहन अध्ययन करके ही हम एक सच्चे, आधुनिक और असली और एक साम्यवादी मानव बन सकते हैं। आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए राहुल के चिंतन और विचारों को आत्मसात करना पड़ेगा और उनके सपनों के समाज और भारत का निर्माण करना पड़ेगा, तभी जाकर भारत की जनता, भारत के किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों का कल्याण हो सकता है। (लेखक पेशे से वकील, उत्तर प्रदेश जनवादी लेखक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और जनवादी लेखक संघ मेरठ के सचिव हैं)