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Monday, March 20, 2023
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इस अमृतकाल में सफाई कर्मचारियों के लिए सरकार के पास सिर्फ जहर है: सफाई कर्मचारी आंदोलन

 

-बेजवाड़ा विल्सन, राष्ट्रीय संयोजक, सफाई कर्मचारी आंदोलन

वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में  वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का ‘मैनहोल टू मशीनहोल‘ का दावा बस शब्दों की कालाबाजारी भर है। इस दावे के जरिये सरकार ने मैला प्रथा के खात्मे और सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई को मशीनों से करने का जो ढिंढोरा पीटा है-उसमें न तो कोई जवाबदेही है और न ही पारदर्शिता।

हमारा मानना है कि यह बजट सफाई कर्मचारी विरोधी व गरीब विरोधी है। इसमें कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास व कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया है और न ही इस मद में विशेष रूप से धन आवंटन किया गया है। यह कितने गहरे दुख और जातिगत उत्पीड़न का उदाहरण है कि जो भारतीय नागरिक पीढ़ियों से मैला ढोकर अपने पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। उनके बारे में बजट में कुछ नहीं कहा गया है। यह हमारे समाज के साथ धोखा है।

दरअसल, यह एक मैकेनिकल बजट है, जिसमें मानवीय दृष्टिकोण का पूरी तरह से अभाव है। बजट में अब तक देश में सीवर-सेप्टिक टैंक में हुई हमारी हत्याओं के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया है, जबकि हम पिछले 264 दिनों से लगातार रोजाना देश की सड़कों पर सीवर-सेप्टिक टैंक में इन मौतों को बंद करने के लिए #StopkillingUs अभियान चला रहे हैं और सरकार से इन्हें तुरंत बंद करने की मांग कर रहे हैं।

क्या विडंबना है कि 11 मई 2022 से इन हत्याओं के खिलाफ यह अभियान चल रहा है और इसी दौरान 50 से अधिक भारतीय नागरिकों की जान गटर सफाई करने में हुई है। इन हत्याओं के बारे में, उनके परिजनों के बारे में सरकार क्यों चुप है? सफाई कर्मचारी आंदोलन का मानना है कि इस बजट में मैला प्रथा के खात्मे की डेडलाइन की घोषणा होनी चाहिए और इसके लिए अलग से आवंटन होना चाहिए। सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास, गरिमामय रोजगार व मुक्ति के लिए अलग से राष्ट्रीय पैकेज की घोषणा की जानी चाहिए।

साथ ही सरकार को इस सवाल का साफ जवाब देना चाहिए कि वह हमें गटर में मारना कब बंद करेगी, क्योंकि इस तरह की घोषणाओं से साल 2023 में काम नहीं चलेगा। यहां हम देश को याद दिलाना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में 11 साल हमारी जनहित याचिका पर सुनवाई चलने के बाद वर्ष 2014 में इन मौतों को खत्म करने और मैला प्रथा के समूल खात्मे का फैसला अया था। इससे पहले वर्ष 2013 में देश की संसद ने गटर में मौतों और मैला प्रथा के खात्मे के लिए नया कानून भी पारित किया था। 2014 से लेकर अभी तक सरकार ने इस दिशा में कुछ नहीं किया-गटर में मौतें हो रही हैं और शुष्क शौचालय भी खत्म नहीं हुए हैं। क्यों?

बजट के समय अमृतकाल का जिक्र हो रहा है, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी देश में हमारा समाज मैला प्रथा के दंश और सीवर मौतों का शिकार हो रहा है। वित्त मंत्री से हम पूछना चाहते हैं कि संसद में उन्हीं के सहयोगी सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने कहा था कि देश में मैला प्रथा से कोई मौत नहीं हुई और आज इस तरह के दावे हो रहे हैं। हमें याद है कि स्वच्छ भारत अभियान के समय भी मैला प्रथा के खात्मे के दावे किये गए थे। हकीकत में क्या हुआ-यह हम भुगत रहे हैं। हमें घोषणाएं नहीं ठोस ब्लूप्रिंट चाहिए। समाज के उत्थान के लिए, अलग से स्पेशल पैकेज की घोषणा हो। डेडलाइन के साथ वादा किया जाए कि गटर में हत्याएं इस निश्चित तारीख से देश में बंद होगी। इसके बिना कोई दावा हमारे लिए खोखला है। (सफाई कर्मचारी आंदोलन की ओर से जारी प्रेस रिलीज)

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