-वर्षा भम्भाणी मिर्जा
तेजबीर को मीना से प्रेम था। तेजबीर चौबीस साल का था और मीना बाईस। हरियाणा के हिसार का यह जोड़ा शादी करना चाहता था। प्रेम को रिश्ते में बांधना चाहता था लेकिन समाज और परिवार इसके ख़िलाफ़ था। वही सत्तर साल पुराना रवैया, जिसे बॉलिवुड की लगभग हर हिंदी फ़िल्म अपनी कहानी में दिखाती आई है। प्रेम पर पहरे, बैरी समाज,पत्थर दिल लोग, दुश्मन ज़माना, क्रूर पिता और भाई वाली ना जाने कितनी फ़िल्में याद की जा सकती हैं, जिनका अंत प्रेमी जोड़ों का भी अंत है। कभी ये मर जाते हैं तो कभी मार दिए जाते हैं। ये दिल की सुनना चाहते हैं लेकिन समाज और व्यवस्था इन्हें रौंद देना चाहते हैं। दुखद यह है कि इन्हें अपनी इस हरकत पर कोई पछतावा नहीं होता उलटे गर्व का आभास होता है। यह अपराध उन्हें स्वीकार्य है…और फिर हम यह कहने से भी नहीं चूकते कि भारत दुनिया में सबसे युवा आबादी वाला देश है। क्या कर रहे हैं हम अपनी इस जवान आबादी के साथ । इनके पेपर लीक करा देते हैं, नया कोई रोज़गार सृजित नहीं करते, अग्निवीर लाकर चार साल में उन्हें रिटायर कर देना चाहते हैं और जो बेचारे अपनी मर्ज़ी से ब्याह करना चाहते हैं, उन्हें गोलियों से भून डालते हैं।
हिसार के जोड़े पर लौटते हैं। तेजबीर और मीना ने शादी कर ली। उनके अपने हिसार (हरियाणा ) में यह मुमकिन नहीं हुआ तो उन्होंने उत्तरप्रदेश के गाज़ियाबाद जाकर आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली। दोनों ने 22 अप्रैल को शादी की थी। परिवार ने उन्हें छोड़ ही दिया था कि एक दिन मीना के भाई ने हिसार के कस्बे हांसी के पार्क में उन्हें बातचीत के बहाने बुलाया। ज़िद की कि बहन यह रिश्ता तोड़ दे। मीना के इंकार करने पर भाई सचिन ने अपने ममेरे भाई के साथ मिलकर दोनों को उसी पार्क में गोलियों से भून दिया। तेजवीर पर पांच गोलियां दागी गई और मीना पर दो। अब यह पार्क अपनी हरियाली पर बिखरे खून की दर्द भरी दास्तान सुना रहा है। जान का खतरा देखते हुए जोड़े ने शादी के बाद पुलिस प्रोटेक्शन भी मांगा था लेकिन तीन दिन बाद ही लौटा दिया। यूं भी पुलिस ऐसे जोड़ों को क्या ही सुरक्षा दे पाती है। ये उसे भेगत ही लगते हैं। उसकी मानसिकता में ही होता है कि खुद ही निपटाओ। मारने वाले दोनों भाइयों की उम्र 21 -21 साल है। सचिन बारहवीं तक पढ़ा राहुल और कंप्यूटर कोर्स कर रहा था जबकि ममेरे भाई राहुल ने स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इन युवाओं पर गौर किया जाए तो ये दिशाहीन मालूम होते हैं और व्यवस्था को बिलकुल नहीं पड़ी है कि इस आबादी को काम दिया जाए ,उनका कोई भविष्य लिखा जाए। हिंदी पट्टी में ऐसे बेरोज़गार और दिशाहीन युवाओं की तादाद लगातार बढ़ रही है लेकिन हमारी नए चुने हुए नेताओं को इस आपात हाल (स्थिति) को समझने की बजाय आपातकाल में जाना है। अतीत में घुसना है। बेशक वह काला कल था, आखिर आज के युवा की बात कब होगी। पक्ष -विपक्ष बहस में उलझे हैं, देश के कर्णधारों की कोई चिंता नहीं। काम अपराध को कम कर सकता है। क्यों नहीं ये नई संसद इनके लिए बहस करते हुए बेरोज़गारी ख़त्म करने का प्रण लेती है?
झूठे दम्भ में अपनों के ही क़त्ल को कानून और व्यवस्था ऑनर किलिंग का नाम देती है, जबकि ये हत्याएं हैं और फिर किसी लाचार का भेस धर कर कौने में बैठी टुकुर-टुकुर ताका करती है। जो ऐसा नहीं होता तो क्यों इन अपराधियों का कंविक्शन रेट केवल दो फीसदी होता। कभी खाप, कभी परिवार तो कभी समाज जज बनकर ऑनर किलिंग जैसी भयावह हिंसा को सही ठहराने लगते हैं और व्यवस्था अपराधी की हमदर्द बन, उसे बचने के रास्ते बताने लगती है। देश में हर हिस्से में ऐसी घटनाएं हो रही हैं लेकिन एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़े कहते हैं 2020 में देशभर में केवल 25 मामले ऑनर किलिंग्स के दर्ज हुए हैं। 20 और 21 में भी 25 –25 और 2022 में 33 घटनाएं हुईं। आए दिन युवा लड़के या लड़कियां या जोड़े मौत के घाट उतार दिए जाते हैं और कई बार तो लड़के अपहरण के मामले बना कर जेल के अंदर पहुंचा दिए जाते हैं। जबकि इनमें से अधिकांश मामले प्रेम से जुड़े होते हैं। सरकार भले ही 2017 से 19 के बीच केवल 145 ऑनर किलिंग मामलों के आंकड़ा देती है जबकि तमिलनाडु की एक एनजीओ जो दलितों और आदिवासियों के मानव अधिकारों के लिए काम करती है, उसने अकेले तमिलनाडु में ही पांच साल में 195 मामलों का ब्यौरा दिया है। ज़ाहिर है ऐसे अनेक मामलों में रिपोर्ट दर्ज़ नहीं की जाती। दुख और हैरानी तब और ज़्यादा होती है जब पत्रकार भी इन हत्याओं का शिकार हो जाता है।
बरसों तक झारखण्ड के क़स्बे झुमरीतलैया के साथ मीठी फ़रमाइशों का नाम जुड़ा रहा था। कुछ साल पहले यह नाम फिर सुर्ख़ियों में था लेकिन अपनी सुरीली फ़रमाइशों के लिए नहीं बल्कि एक लड़की की चीत्कार के लिए। बाईस साल की निरुपमा पत्रकार थी और प्रियभान्शु रंजन नाम के हमपेशा लड़के को हमसफ़र बनाना चाहती थी। लड़की ब्राह्मण और लड़का कायस्थ। दोनों दिल्ली में थे।छोटे शहरों से झोला उठाकर चलनेवाले लड़के-लड़कों में माता-पिता तमाम ख्वाब तो भर देते हैं लेकिन उन ख्वाबों का अहम् हिस्सा अपने कब्ज़े में रखना चाहते हैं। खूब पढो, अच्छा जॉब चुनों, ज्यादा कमाओ लेकिन जीवनसाथी? वह मत चुनों। पढ़े-लिखे अभिभावक भी यहां पहुंचकर उनके पंख कतर देना चाहते हैं। निरुपमा के साथ भी यही हुआ। पुलिस ने मां को गिरफ्तार करते हुए कहा था कि उसने ख़ुदकुशी नहीं की बल्कि उसकी गला दबाकर हत्या की गयी है। वह दस हफ्ते के गर्भ से थी।
दरअसल, हर मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार के भीतर एक खाप जिंदा है। वे उस खाप से बहार आना नहीं चाहते। शादी के ज़रिये वे यह साबित करते हैं कि अपने बच्चों पर उनकी नकेल अब भी कसी हुई है। यह कसी हुई रहे तो ही उन्हें लगता है कि उनके संस्कार सही दिशा में हैं। इस सोच को ही क्या कहा जाए कि इक्कीसवीं सदी में भी दो वयस्कों का अपनी मर्ज़ी से शादी करना परिवारों को बर्दाश्त नहीं होता। ऐसा करने पर लड़का लड़की दोनों के परिवार खून के प्यासे हो जाते हैं। क्यों उन्हें कथित सम्मान अपनी संतान से प्यारा हो जाता है? राम-सीता, शिव-पार्वती और राधे-कृष्ण का जाप करने वाला समाज कितने दोहरे मानदंडों को लेकर चलता है।
नीतीश कटारा और भारती यादव की हकीकत भी दिल दहला देने वाली है। भारती बाहुबली नेता डीपी यादव की बेटी थी और नीतीश के पिता रेलवे में अधिकारी रहे थे। दोनों गाज़ियाबाद के एक मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में मिले थे। मुलाकात प्रेम में बदल गई। बाहुबली नेता डीपी को यह मंज़ूर न था। भारती के भाई विकास यादव ने कई बार नीतीश को धमकाया लेकिन वे दोनों इन धमकियों से नहीं डरे। गाज़ियाबाद में शादी के एक कार्यक्रम में डीपी का पूरा परिवार आया हुआ था। भारती के भाई विकास यादव का नीतीश से झगड़ा हुआ।अगली सुबह नीतीश की लाश मिली। नीलम कटारा ने न्याय पाने के लिए ज़मीन आसमान एक कर दिया। वे हर पेशी पर हाज़िर होती। घटना 2002 की है। केस साफ़ होकर भी उलझता रहा क्योंकि डीपी का रसूख था। गवाह पलट रहे थे। आखिरकार साल 2014 में नीतीश की मां को न्याय मिला। भारती के भाइयों विशाल और विकास को अपहरण और हत्या के जुर्म में 30 साल के आजन्म कारावास की सजा मिली और कोर्ट ने अपने फैसले में इसे ऑनर किलिंग का मामला बताया।
पीढ़ियों से यह भारतीय परिवारों की कश्मकश है। अब भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो इस समस्या और संघर्ष के बढ़ने की आशंका समाज को और कमज़ोर करेगी। संविधान ने हर नागरिक को अधिकार दिए हैं। इन अधिकारों में स्पष्ट है कि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसमें हर नागरिक चाहे वह किसी भी जाति ,धर्म और लिंग का क्यों न हो अपनी मर्ज़ी से जीवनसाथी चुन सकता है और किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। संविधान के आर्टिकल 14 ,15,19 और 21 उसकी इच्छा, चयन और आज़ादी को सुरक्षित करते हैं। अनुच्छेद 14 नागरिक के समान अधिकार की पैरवी करता है और 15 उसकी बराबरी को सुनिश्चित करता है। संविधान के इन अधिकारों की रक्षा का दायित्व व्यवस्था का है, सरकार का है।