9.8 C
New York
Monday, December 9, 2024
Homeभारत का संविधानगणतंत्र की चुनौतियां और हमारे संवैधानिक दायित्व

गणतंत्र की चुनौतियां और हमारे संवैधानिक दायित्व

भारतीय गणतंत्र को स्थापित हुए 72 साल पूरे हो गए। गणतंत्र का अर्थ है हमारा संविधान-हमारी सरकार-हमारे कर्तव्य-हमारा अधिकार। इस व्यवस्था को हम सभी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। गणतंत्र का मतलब है जनता की ताकत ही सबसे बड़ी है। जनता ही सबसे ऊपर है।

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को भारत एक सम्प्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ। गणतंत्र दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह दिवस भारत के गणतंत्र बनने की खुशी में मनाया जाता है। इसे सभी जाति एवं वर्ग के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। 26 जनवरी का महत्व इस कारण है क्योंकि हमारा संविधान जनता को ताकत देता है। जनता की आवाज को दबाकर या उनके शांतिपूर्ण विरोध को दबाकर कोई सरकार मनमानी करे तो यह गणतंत्र का मजाक है। चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सत्ता पर काबिज होना ही जनतंत्र या गणतंत्र नहीं। हर कदम पर जनता की राय का सुनना ज्यादा जरूरी है।

यह हमारी खुशनसीबी है कि हम एक ऐसे गणतांत्रिक देश के नागरिक हैं, जिसका लोहा दुनिया के बड़े-बड़े मुल्क मानते हैं। लेकिन आज के परिवेश को देखते हुए क्या हम कह सकते हैं कि हम गणतांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरे हैं या क्या आम आदमी इस संविधान से पूर्णत अथवा अंशतः लाभांवित हो रहा है?

संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी हमारे संविधान के तीन आधारभूत स्तम्भों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का काला साया मंडरा रहा है। पूरी व्यवस्था प्रदूषित होती जा रहा है।

आज आजाद हुए 7 दशक पार कर गए, अब तक हमने बहुत कुछ हासिल किया है, वहीं हमारे इन संकल्पों में बहुत कुछ आज भी आधे-अधूरे सपनों की तरह हैं। भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सांप्रदायिक वैमनस्यता, कानून-व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तमाम क्षेत्र हैं जिनमें हम आज भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाए हैं।

आज हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह कर व्यक्तिगत होते जा रहे हैं। जनतंत्र-गणतंत्र की प्रौढ़ता को हम पार कर रहे हैं लेकिन आम जनता को उसके अधिकार, कर्तव्य, ईमानदारी समझाने में पिछड़े, कमजोर, गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। चूंकि स्वयं समझाने वाला प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां, नेता स्वयं ही कर्तव्य, ईमानदारी से अछूते, गैर जिम्मेदार हैं। इसलिए असमानता की खाई गहराती जा रही है और असमानता, गैरबराबरी बढ़ गई है। जबकि बराबरी के आधार पर ही समाज की उत्पत्ति हुई थी।

गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेर रखा है। हमें किरण−किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व−संपन्न, समाजवादी, पंथ−निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य हैं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments