* घरेलू कामगारों का कानून बने।
* घरेलू कामगारों को श्रमिक होने का दर्जा मिले ।
* घरेलू कामगारों का श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन हो ।
जयपुर , 16 जून । कांग्रेस पार्टी ने अपने जन घोषणा पत्र में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के कल्याण हेतु मजदूर कल्याण बोर्ड के गठन करने की घोषणा की थी। राज्य में कांग्रेस की सरकार बने हुए करीब साढे तीन साल बाद भी अभी तक राजस्थान में इस बोर्ड का गठन नहीं हुआ है। प्रदेश की घरेलू कामगार महिलाओं की ओर से लगातार इस बोर्ड के गठन की मांग की जाती रही है। इसके बाद भी राजस्थान सरकार घोषणा पत्र में किए गए अपने ही वादे से मुकर रही है। आज जयपुर में अन्तर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस के अवसर पर सैंकड़ो की संख्या में घरेलू कामगार महिलाएं एकत्रित होकर एक बार फिर राज्य सरकार का ध्यान इस मांग की ओर दिलाया। राजस्थान महिला कामगार यूनियन की ओर से भारत स्काउट गाइड मैदान में आयोजित सम्मेलन में घरेलू कामगार महिलाओं की और से अपनी मांगों को लेकर एक मांगपत्र राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर आईं समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्षा अर्चना शर्मा के समक्ष रखा। उन्होंने आश्वासन दिया कि राज्य सरकार अपने घोषणा पत्र में किए गए वादे के अनुरूप घरेलू कामगारों की मांगों को राजस्थान सरकार के समक्ष रखेगी । इससे पूर्व एक प्रतिनिधि मंडल ने श्रम विभाग में जाकर श्रम आयुक्त को ज्ञापन दिया।
राजस्थान महिला कामगार यूनियन की सचिव मेवा भारती ने बताया कि घरेलू कामगार महिलाओं के काम को राज्य सरकार श्रमिक का दर्जा दें ताकि ये महिलाएं गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। उन्होंने बताया कि इस हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान चलाया गया। इस अभियान की शुरुआत चार राज्योें राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक व दिल्ली से की गई । यह अभियान 10 मई से शुरू हुआ था। आज 16 जून को अंतर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस के अवसर पर राज्य के श्रम मंत्री व मुख्यमंत्री को घरेलू कामगारों की मांगों को पोस्टकार्ड पर लिखकर भिजवाया गया। जयपुर की घरेलू कामगार महिलाओं की ओर से 5 हजार पोस्टकार्ड सरकार को भेजे गये हैं।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में करीब 3 लाख घरेलू कामगार महिलाएं दूसरों के घरों में झाडू पोछा , खाना बनाना , बर्तन सफाई व कई अन्य कार्य कर अपना जीवन यापन कर रही है। अकेले जयपुर में ही करीब डेढ़ लाख घरेलू कामगार महिलाएं हैं। इन मेहनतकश महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इन महिलाओं को काम की जगह ना तो सम्मान दिया जाता है, ना ही श्रमिक के नाम से संबोधित किया जाता है। इनकी समस्याओं को गंभीरता से लेते हूए कांग्रेस सरकार ने 2008 में श्रमिक सूची में शामिल कर न्यूनतम वेतन जारी किया । 2010 में सामाजिक सुरक्षा देेने हेतु बजट में घोषणा की । जिसके तहत श्रम विभाग ने रजिस्ट्रेशन की प्रकिया शुरू भी कर दी थी लेकिन किन्ही कारणों की वजह से रोक दिया । जिससे कोरोना में सबसे ज्यादा बेरोजगारी व भुखमरी का सामना इन कामगार महिलाओें को ही करना पड़ा । इन घरेलू कामगार महिलाओं के लिए कई राज्योें में कानून भी बनाया है। महाराष्ट्र राज्य में घरेेलू कामगारों के लिए एक बोर्ड का गठन भी किया है। बोर्ड में रजिस्ट्रेशन होने से पहचान का कार्ड इनको मिलता है । कोरोना जैसी महामारी में आर्थिक सहायता व सामाजिक सुरक्षा के तहत सुविधाएं मिली लेकिन राजस्थान में इन कामगार महिलाओं के लिए इस तरह का कोई कानून अभी तक नहीं बना। इस कारण ना इन महिलाओं को कोई आर्थिक सहायता मिल पा रही है ना ही समाजिक सुरक्षा का लाभ।
इस सम्मेलन को पार्वती नगर से आई सरस्वती ने कहा कि सरकार हमारे लिए कानून बनाए क्योंकि हम भी मजदूर है औेर दूसरों के घर में काम करके गुजारा करते है और हमें भी जिस तरह निर्माण श्रमिकों को हर योजनाओं का लाभ मिलता है उसी तरह हमें भी मिलना चाहिए। मालवीय नगर से आई बासना ने कहा कि हमारी यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक सरकार हमारे लिए कानून नहीं बना देती। राजापार्क से आई रहीमा ने कहा कि हमारा कोई पहचान पत्र नहीं है। इस कारण हमें खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा हैं।
घरेलू कामगार महिलाओं ने अपने मांग पत्र में निम्न मांगें रखी –
1 घरेलू कामगारों का श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन।
2 श्रमिक होने का पहचान पत्र मिलना चाहिए (घरेलू कामगारों का गौरव व सम्मान होना चाहिए ) ।
3 घरेलू कामगारों का समग्र कानून बनना चाहिए । (इसका बोर्ड बने)
4 घरेलू कामगारों को सामजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए।
मेवा भारती
सचिव
राजस्थान महिला कामगार यूनियन
9829401102, 9314506344