–बाबूलाल नागा
2 जुलाई को उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू धर्मगुरू नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद भगदड़ में 121 लोगों की दुखदायी मौत हो गई जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। कई लोग घायल हो गए। घटना के बाद लोगों में दर्द है तो आयोजकों की लापरवाही पर गुस्सा भी। पुलिस ने मामला दर्ज कर कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी की है, लेकिन हैरानी की बात है कि यूपी पुलिस की नजर में 121 लोगों की मौत का जिम्मेदार भोले बाबा अभी भी गुनहगार नहीं है। ना एफआइआर में भोले बाबा का नाम है और ना ही यूपी पुलिस की जुबान पर। यहां तक कि अपराधियों पर कहर बरपाने का दावा करने वाली यूपी सरकार का बुलडोजर भी खामोश है।
वहीं हादसे के बाद फरार भोले बाबा को लेकर रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे हैं। भोले बाबा के मायावी संसार पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। लेकिन सबसे अहम सवाल ये है कि भोले बाबा जैसे तमाम बाबाओं की करतूत सामने आने के बाद भी कोई बाबा कैसे इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लेता है और उसके अंधविश्वास के जाल में लोग फंस जाते हैं। हाथरस कांड में चरणों की धूल पाने की होड़ का अंधविश्वासी खेला फिर से दिखाई दिया। यह अंधविश्वासी जनता की नासमझी ही थी जो भोल बाबा के पाखंड को सच मान लेती है और सत्संग में जाकर अकाल मौत का शिकार हो जाती है। सवाल लोगों या भक्तों का किसी सत्संग में जाने या न जाने का नहीं है लेकिन सिर्फ किसी की बातों में आकर किसी एक ही शख्स को भगवान का दर्जा दे देना, यह अंधविश्वास की श्रेणी में आता है। दुनिया में सुख-समृद्धि फैलाने का दावा करने वाले भोले बाबा जैसे कथित संतों-बाबाओं का कारोबार असल में अंधविश्वासों के बल पर ही चल रहा है।
सवाल ये भी है कि आखिर इन बाबाओं के प्रति लोगों की आसक्ति ज्यादा क्यों बढ़ रही है। हैरानी की बात यह है कि इतनी जागरूकता होने के बाद भी ढोंगियों और दुष्पचरित्र बाबाओं का चलन घटने की बजाए बढ़ता जा रहा है। इसका क्या अर्थ है? दरअसल हमारा देश बेहद धर्मप्रिय देश है। यहां पर श्रद्धा में बलिहारी हो जाते हैं। बाबाओं के संग झूमने लगते हैं। उनको सर-आंखों पर बैठा लेते हैं। इसकी वजह से धर्म की आड़ में ऐसे पाखंडी बाबा जनता के बीच तेजी से स्थापित हो रहे हैं। जबकि कोई भी धर्म इस तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, उसे किसी भी कीमत पर सही नहीं मानता है।
राम, कृष्ण का जाप करके भक्ति का पाठ पढ़ाने वाले कई ऐसे भी ढोंगी बाबा (जैसे भोले बाबा) हैं जो लोगों को उल्लू बनाने से बाज नहीं आते। कहते हैं ईश्वर हमारे काफी करीब है। हम दिन रात ईश्वर से साक्षात्कार करते हैं। साक्षात् ईश्वर के दर्शन करते हैं। अगर इतने ही साक्षात् दर्शन होते हैं तो फिर भला दर्शन इन बाबाओं को पहले सचेत क्यों नहीं किया? सोचने वाली बात है कि जो बाबा अपनी ही भलाई में लगा हुआ है। वह भक्तजनों का भला कैसे कर सकता है? बीते जमाने में भी बाबा हुआ करते थे। न किसी सिंहासन, न किसी लग्जरी कार की जरूरत उन्हें पड़ी। उनका एक ही काम था लोगों को ज्ञान देना। लेकिन आज के इन धूर्त बाबाओं के क्या कहने। इनको बैठने के लिए भव्य सिंहासन चाहिए। घूमने के लिए लंबी गाड़ी चाहिए। मुगल बाहशाहों की तरफ इन्होंने अपने आश्रम बना रखे हैं। ये बाबा लोग खुद मोहमाया में लिपटे हुए हैं और अपने भक्तजनों को शिक्षा दे रहे हैं कि मोहमाया से दूर रहो। इसके जाल में मत फंसो। सेक्स से दूर रहने की सलाह देने वाले ही कई पाखंडी बाबा सेक्स स्कैंडल में पकड़े जाते हैं।
भोले बाबा ढोंगी बाबाओं की अंतिम कड़ी नहीं है। देश के लगभग हर गांव कस्बे में आए दिन ऐसे पाखंडी बाबाओं की पोल खुलती रहती है। ऐसे कई बाबा इस देश में मौजूद हैं जो दावा करते हैं कि उनके पास ईश्वरी शक्तियां हैं, जो चमत्कार करने की बात करते हैं। देश में ऐसे ही ना जाने कितने ही इच्छाधारी और नामधारी पाखंडी बाबाओं और धर्मगुरुओं का पर्दाफाश हुआ हैं। स्वामी नित्यानंद एक तमिल अभिनेत्री के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़े जाते हैं तो अपने आप को इच्छादारी बाबा कहने वाले स्वामी भीमानंद सेक्स रैकट चलाते हुए तो समोसे, पकौड़ी और रसगुल्ले से इलाज करने वाले निर्मल बाबा का भी पर्दाफाश होते देर न लगी थी। आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के दोषी होने पर आज भी सलाखों के पीछे है। हाल में राजस्थान के चुरू जिले के सादुलपुर के हमीरवास गांव में मृत आत्माओं से बात करवाने के मामले में पुलिस ने एक बाबा को गिरफ्तार किया।
आज हाथरस हादसे के बाद भोले बाबा सामने आया है। कल इसी तरह और धूर्त बाबाओं की करतूतें सामने आएंगी। जनता का गुस्सा फूटेगा, लोगों की आस्था टूटेगी, पुलिस की पकड़ में वे आएंगे, उन्हें सजा भी मिल जाएगी। लेकिन क्या गारंटी है कि ये सब आइंदा नहीं होगा। केवल ऐसे बाबाओं पर ही कार्रवाई क्यों हो? उन सब को भी सजा मिलनी चाहिए जो इन ढोंगी बाबाओं के संग खड़े रहते हैं। उनकी काली करतूतों को जानते हुए भी उनके आश्रमों के लिए जमीनें देते हैं। श्रद्धा के नाम पर जो बढ़चढ़कर चढ़ावा देते हैं। ऐसी घटनाएं लगातार होती रहती हैं और इन सारी मौतों और घायलों की संख्या तमाम सरकारों और प्रशासन की नजरों में हैं। यह भी जग जाहिर है की इतनी अकाल मौतों के बाद भी शासन, प्रशासन और सरकारें अंधी, बहरी और अनजान बनी हुई हैं और इन दुर्भाग्यपूर्ण हादसों को रोकने के लिए वे कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही हैं। दूसरी तरफ ऐसे बाबाओं की सांठगांठ पार्टी के राजनीतिज्ञ, नेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों व समाजसेवियों से भी होती है। इस सांठगांठ का फायदा ये बाबा लोग अक्सर उठाते हैं।
इन तमाम हादसों को रोकने के लिए तमाम जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और जनता का कल्याण चाहने वाली तमाम ताकतों को एकजुट होना पड़ेगा। इन अभाव ग्रस्तों के बीच में जाना पड़ेगा, उनसे बातचीत करनी पड़ेगी, उनकी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के रास्ते ढूंढने पड़ेंगे और उनकी मुक्ति का कार्यक्रम बनाकर सरकार के सामने पेश करना होगा और उस मुक्ति के कार्यक्रमों को जमीन पर उतरने के लिए लगातार जन जागृति और संघर्ष करना पड़ेगा, ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक नजरिए का प्रचार-प्रसार करना होगा और इन तमाम बाबाओं के अंधविश्वासों, धर्मांधताओं और नकली और झूठे आश्वासनों से इस पीड़ित जनता को परिचित कराना होगा और इस पूरी जनता को इन तथाकथित भगवानी बाबाओं के जंजाल से मुक्ति दिलानी होगी और सरकार को जनकल्याणकारी नीतियों को अपनाने पर मजबूर करना पड़ेगा, तभी इस प्रकार के हृदयविदारक हादसों से बचा जा सकेगा। बहरहाल, लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे ही पाखंडी बाबाओं की के विरुद्व कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। जरूरत है एक निर्णायक सामाजिक जागरण की। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)