20.1 C
New York
Friday, October 4, 2024
Homeनज़रियाजीवन में मौलिक परिवर्तन लाने के लिए हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता...

जीवन में मौलिक परिवर्तन लाने के लिए हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है

-प्यारेलाल शकुन

ज्ञान का अर्थ क्या है? ज्ञान का अर्थ है दुनिया को देखने का सही वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण कोई हवा में पैदा नहीं होता। यह दृष्टिकोण परीक्षण निरीक्षण के आधार पर पैदा होता है। उदाहरण के लिए विद्युत का आविष्कार चाहे कोई अमेरिकन करे, यूरोप में करे या भारत में सभी जगह उसका नियम सार्वभौमिक होगा। इसी तरह विज्ञान की सभी शाखाएं परीक्षण निरीक्षण के आधार पर ही सत्य को निर्धारित करती हैं। इसका अर्थ है कि तमाम विज्ञान प्रकृति में जो पहले से ही नियम कार्य कर रहा है उसे खोज कर मानव की प्रगति के लिए लागू करना और फिर प्रयोगों से नए-नए आविष्कार करते जाना जिससे मानव जीवन का विकास होता जाता है। इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र भी मानव समाज के व्यवहार और संघर्ष से ही विकसित होते जाते हैं। अब कोई ये शंका जाहिर करे कि ज्ञानी लोग ज्ञान का सदुपयोग समाज के हित में नहीं करेंगे, अत्याचारों के खिलाफ नहीं करेंगे, बेरोजगारी के खिलाफ नहीं करेंगे तो मैं ऐसे लोगों से जानना चाहूंगा कि क्या समाज में व्याप्त इन तमाम समस्याओं के समाधान के लिए ज्ञान कहीं आसमान से टपकता है क्या? मैं तो समझता हूं अनपढ़ किसान भी अपनी खेती में प्रयोग करते करते एक ज्ञानी व्यक्ति हो जाता है। अतः समाज में जो भी ज्ञान अस्तित्व में आया है और आएगा उसके पीछे मनुष्य का संघर्ष और उसकी मेहनत छुपी हुई है। भाषा का विकास भी समाज में मानव श्रम से पैदा हुआ है, ये इतिहास की सच्चाई है। जो लोग किताबें लिखते हैं वे पहले अपने विषय का अध्ययन करते हैं, वह चाहे किसी भी विषय की किताब हो उस पर अध्ययन मनन आवश्यक है। बाबा साहेब अंबेडकर ने क्यों कहा शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ‘शिक्षित लोगों ने ही मुझे धोखा दिया है?‘ ऐसा क्यों कहा इस पर हमने मनन नहीं किया। क्योंकि शिक्षित बनने से उनका तात्पर्य ये था कि शिक्षित बनकर हम इस ज्ञान को सिर्फ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ही इस्तेमाल न करें बल्कि ज्ञान वह है जो सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रयोग में लाया जाए। डॉ. अंबेडकर ने जो ज्ञान हासिल किया उसे समाज के उत्थान के लिए काम में लगाया और इस संघर्ष के दौरान जो ज्ञान उन्होंने हासिल किया उस अनुभव के आधार पर उन्होंने लेख लिखे, पुस्तकें लिखी। अब कोई यूं कहे कि ये तो किताबी ज्ञान है तो सवाल उठता है कि वह किताबी ज्ञान आया कहां से? वास्तविक बात तो ये है कि ज्ञान का स्रोत यह समाज और प्राकृतिक जगत है, इससे बाहर रहकर कोई भी मनुष्य ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता और न ही नए ज्ञान का सृजन कर सकता है। बेरोजगारी की समस्या का हल करना हो या छूआछूत की समस्या का हल करना हो या जीवन की कोई अन्य समस्या का समाधान करना हो तो इन सबके लिए हमें ज्ञान की जरूरत पड़ती है। यदि पुराने ज्ञान से हमारी समस्या का समाधान नहीं होता है तो हमें नए ज्ञान की आवश्यकता होगी। इसीलिए कहा गया है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

सामंतवाद के बाद जब पूंजीवादी व्यवस्था सामंतवाद के गर्भ से पैदा हुई तो उसके साथ-साथ नया ज्ञान भी पैदा हुआ, उद्योगों को आगे विकसित करने के लिए नए-नए ज्ञान विज्ञान और तकनीक का ही आविष्कार नहीं हुआ बल्कि उसने विकास के रास्ते में प्राचीन विधि विज्ञान और राज्य सत्ता को भी उठा कर कुड़ेदान में फैंक दिया और उसके स्थान पर नई राज्य सत्ता का जन्म हुआ। जहां पहले रूल ऑफ पर्सन था वहां रूल ऑफ लॉ का जन्म हुआ और उसके साथ ही फ्रांस की पूंजीवादी लोकतांत्रिक क्रांति ने नए लोकतांत्रिक मूल्यों स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जन्म दिया। ये मूल्य बोध तब पैदा हुए जब पूंजीवाद प्रगतिशील अवस्था में था। लेकिन जैसे यह आगे बढ़ता गया तो इसने बाजार की मांग की पूर्ति के लिए दूसरे देशों को गुलाम बनाना शुरू किया और ठीक यहीं से यह व्यवस्था प्रतिक्रियावादी हो गई यानी इसने जो नए मूल्य पैदा किये थे, उन्ही मूल्यों को वापिस छीनने लगी। अब वह व्यवस्था अत्यधिक मुनाफा कमाने की होड़ में बाजार पर एकाधिकार करने लगी जिससे बड़ी पूंजी छोटी पूंजी को उसी तरह निगलने लगी जिस तरह बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। बाबा साहेब अंबेडकर ने इसी तथ्य को अपने शब्दों में कुछ यूं कहा है कि संसदीय लोकतंत्र दूषित करने वाली दूसरी गलत विचारधारा है जिसमें आभास नहीं होता कि जब तक आर्थिक सामाजिक लोकतंत्र नहीं होता, तब तक राजनीतिक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता….सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र राजनीतिक लोकतंत्र का तानाबाना है। जितना ही मजबूत यह तानाबाना होगा उतनी दृढता उसमें होगी। समानता लोकतंत्र का दूसरा नाम है। संसदीय लोकतंत्र में स्वतंत्रता की लालसा उत्पन्न होती है। इसका समानता से कोई रिश्ता ही नहीं होता। यह समानता का महत्व समझने में विफल रही और समानता तथा स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने का इसमें प्रयत्न ही नहीं किया जाता। परिणाम यह निकलता है कि स्वतंत्रता समानता को निगल जाती है और लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाता है।

बाबा साहेब अंबेडकर ने जितना कहा वह सही है किंतु आज की तारीख में हमें इससे और आगे बढ़ने की जरूरत है। आज हम देख रहे हैं कि पूंजीवादी लोकतंत्र केवल समानता को ही नहीं निगलता बल्कि स्वतंत्रता को भी अपना ग्रास बनाता जा रहा है। अतः हम कहेंगे कि यह पूंजीवादी संसदीय लोकतंत्र उन सभी मूल्यों को अपना ग्रास बना रहा है जो उसने फ्रांस की क्रांति के समय समाज को दिए थे। क्योंकि आज पूंजीवाद प्रगतिशील नहीं रहा बल्कि यह दौर उसके पतन का दौर है और इस पतन के युग में पूंजीवादी होड़ इजारेदारी पूंजीवादी होड़ में बदल चुकी है। इसलिए आज यह मजदूर वर्ग को पूर्व में दिए गए 8 घंटे के कार्य दिवस के अधिकार, यूनियन बनाने का अधिकार, हड़ताल करने के अधिकार आदि मानवीय अधिकारों को भी छीन लेना चाहता है। इतना ही नहीं यह इजारेदार पूंजीवाद आज फासिस्ट साम्राज्यवाद में बदल चुका है और नए बाजारों पर कब्जा जमाने की होड़ में युद्धोन्मुख पूंजीवादी साम्राज्यवाद में बदल कर युक्रेन और रूस तथा इजराइल द्वारा गाजा के महाविनाशी युद्ध में बदल चुका है। जी-7 देशों का बाजार आज अकेले चीन से मार खा रहा है जिससे तृतीय विश्व युद्ध का खतरा सभी अर्थ व्यवस्थाओं पर मंडरा रहा है। विश्व की इस आर्थिक स्थिति का प्रभाव भारत पर न पड़े ये कैसे हो सकता है?

इसलिए समाज परिवर्तन के लिए आज हमारा काम पुराने ज्ञान से नहीं चल सकता बल्कि हमें नया आधुनिक ज्ञान चाहिए, तभी हम इस समाज के प्राचीन खंडहरों से भी टकरा सकेंगे। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह भौतिक जगत ही हमारे ज्ञान का सच्चा स्रोत है, और व्यवहार ज्ञान की कसौटी है। भौतिक जगत और व्यवहार दोनों परिवर्तन शील अवस्था में रहते हैं इसलिए इनका अध्ययन भी परिवर्तन शील अवस्था में ही हो सकता है। आध्यात्मिक ज्ञान पौराणिक कथाओं पर आधारित काल्पनिक ज्ञान है जो हमें जीवन की सच्चाई से कहीं दूर ले जाता है। इसलिए भौतिक जगत को जानकर ही हम सही ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जो हमारे जीवन को पलट सकता है। इस भौतिक जगत को जानने के लिए भी हमें एक ऐसे दर्शन की जरूरत है जो हमारे दृष्टिकोण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण में बदल सके।

 

Bharat Update
Bharat Update
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments