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Saturday, July 27, 2024
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बीए व पॉलिटेक्निक डिप्लोमा के बाद किसानी युवा ने नए तरीके से शुरू की जैविक खेती

-अनीस आर खान, नई दिल्ली

पहले ग्रामीण इलाकों मे माना जाता था कि जो युवा शिक्षित नहीं हो पाते हैं वो खेती करते हैं। लेकिन आजकल खेती किसानी की परिभाषा बदल रही है, अब पढ़े-लिखे युवा भी उच्च स्तर की डिग्रियां हासिल करके खेती-किसानी में रुचि दिखा रहे हैं। ऐसे ही एक शिक्षित, प्रगतिशील युवा किसान राजस्थान के सीमावर्ती जिले बीकानेर के सरहदी ब्लॉक बज्जू क्षेत्र के फुलासर बड़ा गांव निवासी 28 वर्षीय युवा किसान मांगीलाल खीचड़ भी हैं। बीए व पॉलिटेक्निक में डिप्लोमा की डिग्री हासिल करने के बाद जैविक विधि से खेती करने की ओर रुझान कर लिया। युवा किसान मांगीलाल ने बताया कि उनका पुस्तैनी व्यवसाय खेती व पशुपालन ही है, बचपन से ही वो पिताजी के साथ खेत में जाते थे जिसके कारण खेती और पशुपालन के साथ दिली लगाव हैं। लेकिन वे रासायनिक खेती नहीं करना चाहते। पढ़े लिखे होने के कारण रासायनिक खेती के होने वाले नुकसान से अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसलिए वो अब पढ़ाई छोड़ अपने तीन बीघा फार्म में अलग से जैविक खेती का एक मॉडल बना रहे हैं ताकि गांव के युवाओं को जैविक खेती के प्रति जागरूक कर सकें।

बायोगैस ने किया कार्यों को आसान:- प्रगतिशील युवा किसान मांगीलाल ने बताया कि छह महीने पहले उरमूल सीमांत समिति के बज्जू कलस्टर कोर्डिनेटर ओमप्रकाश पंवार से मुलाकात हुई, बातचीत के दौरान जैविक खेती व बायोगैस पर चर्चा होने लगी। इसी क्रम में उन्होंने बताया कि उरमूल सीमांत और फार्म इंडिया फाउंडेशन द्वारा 70% सब्सिडी पर किसानों को 2.5 घन मीटर का फ्लेक्सि बायोगैस लगवाया जा रहा है। इसके साथ ही डाइजेस्टर की 10 वर्ष की वारंटी भी प्रदान की जा रही है। इस तरह किसान ने मात्र 15000/- बायोगैस यूनिट लगवाने का निर्णय लिया।

खाना भी शुद्ध, पैसे की भी बचत: युवा किसान ने बताया कि बायोगैस से रसोई में ईंधन के रूप में शुद्ध गैस के साथ हर महीने 1,000 की बचत भी हो रही है, वहीँ दूसरी ओर सिलेंडर भरवाने और गैस सिलेंडर के फटने के डर से भी आज़ाद हैं। इतना ही नहीं बायोगैस से निकलने वाली स्लरी को वो अपने घर से दो किलोमीटर दूर स्थित अपने खेत में ट्रेक्टर के पीछे ड्रम भरकर ले जाते है और मोटर के माध्यम से फवारा द्वारा खेत में डालते हैं। इस प्रकार वह लगभग आठ हज़ार की बचत कर लेते हैं। कुल मिला कर बायोगैस से उनकी बीस हज़ार की बचत सालाना हो जा रही है। युवा किसान मांगीलाल ने बताया कि वो अपने तीन बीघा खेत में परिवार के लिए शुद्ध अनाज गेहूं का उत्पादन करते है और इस बार जैविक मूंगफली का उत्पादन भी करेंगे।

युवा किसान का उत्साह और निष्ठा उनके किसानी के क्षेत्र में नय प्रयोग काबिले तारीफ क़दम है। उन्होंने बायोगैस को सिर्फ गैस के रूप में नहीं देखा, बल्कि इससे निकलने वाली स्लरी को अपनी जमीन के लिए अमृत के रूप में भी देखा। इससे उन्हें ईंधन की समस्या से निजात मिली और उनकी खेती में भी अच्छे परिणाम देखने को मिले। मांगीलाल के जैविक खेती का शौक और उनकी मेहनत लगन दूसरे किसानों को भी एक उत्कृष्ट किसान बनने की दिशा में प्रेरित कर रही है।

मांगीलाल की यह कहानी हमें बताती है कि जब एक प्रगतिशील किसान सही दिशा में सोचता है और काम करता है तो वह सिर्फ अपने परिवार की नहीं बल्कि समाज और देश की समृद्धि के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान करता है।

 

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