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Friday, January 17, 2025
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मजदूर किसान शक्ति संगठन ने कृषि संकट और किसानों के संघर्ष के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की कड़ी निंदा की

मजदूर किसान शक्ति संगठन ने एक बयान जारी कर कृषि संकट और किसानों के संघर्ष के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की कड़ी निंदा की है। मजदूर किसान शक्ति संगठन ने कहा कि कई दशकों से कृषि क्षेत्र संकट में है। इसका लक्षण यह है कि एक कृषि परिवार खेती से औसतन सिर्फ रुपए 4,500 प्रति महीना कमा पाते हैं। इस संकट का समाधान निकालने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग (इसको आमतौर पर स्वामीनाथन समिति के नाम से जाना जाता है) का गठन 20 साल पहले किया गया था। उनके सुझावों को अभी तक पूरे तरीके से क्रियांवित नहीं किया गया है और हाल ही में किए गए प्रयास, जैसे किसानों की आय दुगना करना जिसका बहुत प्रचार किया गया, जुमला ही साबित हुए। ऐसी परिस्थिति में सरकार का रवैया कृषि संकट और किसान आंदोलन के प्रति निंदनीय है।

मजदूर किसान शक्ति संगठन ने कहा कि दिल्ली में विरोध करने या अपनी दुर्दशा पर सरकार के साथ बातचीत करने के लिए किसी भी मंच के बिना, किसान हताश करने वाले उपाय अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल, जिनका उम्र 70 वर्ष के ज्यादा हैं, एक महीने से आमरण अनशन पर हैं। मजदूर किसान शक्ति संगठन उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित है। किसान आंदोलन में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हजारों किसान कृषि संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। मजदूर किसान शक्ति संगठन ने मांग की है कि सरकार एक और किसान की मौत से पहले ही कार्रवाई करें।

विरोध का अधिकार: तीन कृषि कानून के लाने से पहले ही किसान, सरकार की कृषि नीति के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। पिछले दस साल से मौजूदा सरकार हमारे विरोध करने के मौलिक और संवैधानिक अधिकार को कमजोर करती आ रही है। तीन कृषि कानून का विरोध करते समय किसानों को दिल्ली के अंदर आने नहीं दिया गया। पिछले साल भर में, आंदोलन कर रहे किसान पैदल दिल्ली आना चाहते हैं लेकिन किसानों को पंजाब से हरियाणा के अंदर तक आने नहीं दिया गया है। सरकार का यह गैर-लोकतान्त्रिक कार्य आपत्ति जनक है।

कृषि संकट के समाधान के लिए सहभागी प्रक्रिया: कृषि संकट से समाधान के लिए किसान लंबे समय से अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य और ऋण मुक्ति की मांग कर रहे हैं। इसके लिए 2018 में बड़ी संख्या में दिल्ली आए थे। इन मांगों पर किसान संगठनों में आम सहमति होने के वाबजूद सरकार के कदम तीन कृषि कानून सरकार के रूप में विपरीत दिशा में था। उन तीन कानूनों में किसानों को बाजार में सुरक्षा देने के बजाय बाजार पर नियंत्रण कम किया। यह तीन कानून कोविड की तालाबंदी के समय अध्यादेश के रूप में लाए गए। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी सरकार ने किसानों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से कृषि संकट को हल करने का वादा पूरा नहीं किया। बल्कि, बिना कोई किसान-प्रतिनिधि के समिति द्वारा, विपरीत दिशा में वापस तीन कृषि कानून कानून अनुसार एक कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा के मसौदे के माध्यम से लाने का प्रयास कर रही है। मजदूर किसान शक्ति संगठन सरकार से आग्रह किया है कि वह कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाते समय  2014 की पूर्व-विधायी परामर्श नीति की भावना अनुसार किसानों को विश्वास में लेकर एक सहभागी, परामर्श प्रक्रिया अपनाएं।

कृषि में सुधार की दिशा: मजदूर किसान शक्ति संगठन का यह मानना है कि देशवासियों के खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कृषि उत्पाद खरीदना महत्वपूर्ण है। भारतीयों के सार्वभौमिक राशन और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, किसान आंदोलन की मांग अनुसार, मजदूर किसान शक्ति संगठन मानता है कि सरकार द्वारा विकेंद्रीकृत तरीके से और अधिक फसलों के लिए एमएसपी पर खरीद किया जाना चाहिए। मजदूर किसान शक्ति संगठन सरकार द्वारा ऐसे किसी भी उपाय का विरोध करता है जो पूर्वकथित प्रावधानों को कमजोर करता है या उनके खिलाफ जाता है।

मजदूर किसान शक्ति संगठन ने मांग की है कि सरकार कृषि क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे संकट को हल करने के लिए किसानों के साथ और उनको विश्वास में लेते हुए तत्काल और सहभागितापूर्ण परामर्श प्रक्रिया अपनाकर एक लोक नीति निर्माण करें।

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