-सूर्यकांत देवांगन, छत्तीसगढ़
बदलते वक्त के साथ अब महिलाओं की स्थिति भी बदल रही है। किसी जमाने में चूल्हा-चौका तक सीमित रहने वाली महिलाएं आधुनिक समाज में देश की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पदों को सुशोभित कर चुकी हैं और वर्तमान में राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर आईएएस-आईपीएस जैसे दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रही हैं। बात देश के ग्रामीण क्षेत्रों की करें तो गांवों में भी सरपंच, उप सरपंच के साथ ही पंचायत प्रणाली के अन्य पदों पर रहकर गांव की दशा और दिशा बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। फिर चाहे उनके हवाले गांव की सुरक्षा हो या फिर गांव के पुरुष वर्ग, जिन्हें नशे की गिरफ्त से आजादी दिलाने वाले चुनौतीपूर्ण कार्य हों। ऐसे ही महिला सशक्तीकरण की मिसाल इन दिनों छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला स्थित पिथौरा ब्लाॅक के ग्राम अरंड में देखने को मिल रही है।
लगभग 1800 की आबादी वाले इस गांव का माहौल सालभर पहले तक ऐसा था कि यहां की महिलाएं शाम होते ही घरों से बाहर निकलने से घबराती थीं। गली-मुहल्लों से लेकर खुले मैदान तक शराबियों का हुड़दंग होता था। कई घरों में खुलेआम शराब बनाई और बेची जा रही थी। पुरुष लोग घर का धान-चावल बेचकर रोज शराब पीते और अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ मारपीट करते। इसके अलावा गांव की गलियों में हो-हल्ला मचाना रोज की बात हो गई थी। इस वातावरण से गांव की छवि तो खराब हो ही रही थी साथ ही सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवा वर्ग पर पड़ रहा था। गांव के युवाओं का भी झुकाव भी धीरे-धीरे नशे की तरफ हो रहा था।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए चर्चित अरंड गांव में 25 बरस पहले बहु बनकर आई सरस्वती धु्रव तब से लेकर अब तक गांव के इस बिगड़ते हालात को देखते आ रही थी। एक दिन जब उन्होंने महसूस किया कि गांव में शराब बनाने तथा शराबियों के चलते हमारे बच्चे गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो उन्होंने स्वयं ही इसका समाधान खोजने की ठानी। गांव की अन्य महिलाओं का संगठन बनाकर इस समस्या को दूर करने का सुझाव दिया। जिस पर सभी महिलाओं ने भी अपनी सहमति देते हुए उनका समर्थन किया। इसके बाद 27 महिलाओं की टोली ने एक साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन के समक्ष अपनी समस्या के विरूद्ध संगठन बनाकर कार्य करने की बात रखी। इस तरह अरंड गांव में साल भर पहले जनवरी 2020 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बुढ़ानशाह के नाम पर महिला कमांडो समूह का गठन हुआ। तब से महिलाओं ने गांव में शराबबंदी को लेकर व्यापक स्तर पर मुहिम छेड़ दी है और महिला कमांडो बनकर गांव की निगरानी कर रही हैं। उनके इस प्रयास की गांव ही नहीं वरन क्षेत्र में भी सराहना की जा रही है। अब तो उनकी मेहनत के परिणाम भी दिखने लगे हैं। गली-मोहल्लों में हुड़दंग मचाने वाले शराबी और नशेड़ी नजर ही नहीं आते हैं। इससे गांव में अमन चैन का माहौन बन गया है।
शिक्षा के नाम पर केवल कक्षा छठवीं तक ही पढ़ी महिला कंमाडो की अध्यक्षा सरस्वती धु्रव बताती हैं कि शुरुआत में जब हम गांव में शराबबंदी के लिए घर-घर जाकर लोगों को समझा रहे थे तो हर दिन हमें कई लोगों से गाली-गलौच और अपशब्द सुनने को मिलता था। लोग हमारे बारे में तरह-तरह की बातें करते थे। कहते थे जब सरकार कुछ नहीं कर पा रही है तो तुम महिलाओं को क्या पड़ी है जो गांव को सुधारने चली हो। सरस्वती धु्रव ने आगे बताया कि हम जानते थे कि अगर कुछ अच्छा करने चलो तो शुरू में आलोचनाएं बहुत सुनने को मिलती है। इसलिए हम सभी महिलाएं सबको सुनकर अपने मन की करते रहे। लोगों के बुरा-भला कहने के बाद भी हमने अपना काम नहीं छोड़ा और नतीजा आज हमारे गांव में न तो कोई शराब बेचता है और न ही शराब बनाता है। किसी को शराब पीना भी होता है तो वह गांव के बाहर से पीकर आता है और घर में शांति से रहता है।
महिला कमांडो की उपाध्यक्ष नरुपा धु्रव और अन्य महिला सदस्यों ने बताया कि हम रोजाना अपने घर परिवार का कार्य खत्म करके शाम को 7 बजे गांव के चौराहे पर इक्ठठा हो जाते हैं। जिसके बाद हाथ में लाठी और टाॅर्च लेकर गांव की गलियों और मैदानी क्षेत्र में रात 10 बजे तक घूम-घूमकर निगरानी करते हैं। हम सभी ने गुलाबी रंग की साड़ी को अपना ड्रेस बनाया है ताकि लोग दूर से देखकर हमें पहचान सकें। वह कहते हैं कि कई बार हमारे समझाने के बावजूद भी कुछ लोग नहीं समझते हैं तो सबसे पहले पंचायत स्तर पर बैठक आयोजित करके उसका समाधान करने की कोशिश की जाती है और उनसे जुर्माना वसूला जाता है। इसके बाद भी कोई मामला आगे बढ़ जाता है तो पुलिस की सहायता लेते हैं। गांव में कच्ची शराब बनाकर बेचने और पिलाने पर पूरी तरह पाबंदी लगाई गई है। कई घरों में कच्ची शराब बनाते हुए हमने पकड़ा है और लगभग 10 लोगों पर अभी तक कार्यवाही भी कर चुके हैं।
‘अरंड’ में महिला कमांडो अपनी सेवाएं न केवल शाम-रात को देती हैं बल्कि गांव में सभी तरह के कार्यक्रम चाहे किसी के घर शादी-ब्याह या कोई जनप्रतिनिधि का आगमन हो, वहां भी उपस्थित रहकर शराबियों और हुड़दंगियों को संभालने का कार्य करती हैं। लाॅकडाउन के समय में भी महिला कमांडो की भूमिका गांव के लिए बहुत लाभकारी साबित हुई है। गांव में बाहर से लौट रहे मजदूरों को क्वारंटाइन में रखने तथा उनके लिए भोजन पानी की व्यवस्था भी इन्हीं महिला कमांडो के द्वारा बखूबी किया गया। महिला कमांडो के इस संगठन में वैसे तो कुल 27 महिलाएं कार्य करती हैं, लेकिन इन्होंने संगठन में संरक्षक के रूप में गांव के सरंपच और ग्राम प्रमुख सहित 11 पुरुषों को भी संगठन में शामिल किया है। इस प्रकार सभी लोग मिलकर इस पूरे अभियान का संचालन करते हैं।
ब्लाॅक मुख्यालय पिथौरा के थाना प्रभारी केशव कोसले कहते हैं कि यह आदिवासी क्षेत्र है। यहां शराबबंदी के लिए ऐसे तो कई संगठन बनते हैं लेकिन कुछ समय बाद सब ठप्प पड़ जाते हैं। अरंड एक ऐसा गांव है जहां महिला कमांडो का पहले तो गठन हुआ और अब वहां महिलाएं बहुत प्रभावी तौर पर कार्य भी कर रही हैं। उन्होंने बताया कि महिला कमांडो द्वारा जब कोई कार्रवाई के लिए पुलिस को अवगत कराया जाता है तो पुलिस उनको साथ लेकर संबंधित स्थान पर जाती है। वहां शराबबंदी के लिए जागरूक करना हो या अन्य कोई कार्य सब जगह पुलिस उन्हें सहायता प्रदान करती है।
गांव की महिलाओं के द्वारा किए जा रहे इस सराहनीय कार्य पर सरपंच देवराज सिंह ठाकुर कहते हैं कि जब से गांव में महिला कमांडो का गठन हुआ है तब से गांव में बहुत सुधार आ गया है। यह स्वतंत्रता सेनानी का गांव है और यहां शराबबंदी को लेकर इस तरह का कार्य किया जा रहा है इससे इसका महत्व और ज्यादा हो जाता है। गांव की विभिन्न परिस्थितियों को बचपन से देखते हुए जवान हुए युवा अजय पटेल ने बताया कि पहले और अब की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ गया है। साल भर पहले शराब बिक्री के लिए हमारे गांव की चर्चा होती थी, लेकिन अब गांव की चर्चा शराबबंदी के लिए हो रही है। गांव में रात को महिलाओं की आवाज शराबबंदी के नारों के साथ हर गली मोहल्ले में सुनाई देती है। हाथ में लाठी और टार्च लिए महिलाएं गांव का भ्रमण करती हैं और अवैध शराब बनाने वालों को पकड़कर कार्रवाई करती हैं।
‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बुढ़ानशाह महिला कमांडो‘ के द्वारा किए जा रहे प्रयासों की ख्याति अब क्षेत्र में आस-पास के गांवों तक भी पहुंचने लगी है। यही कारण है कि अरंड गांव की महिलाओं को देखकर पास के गांव बुंदेली, नयापारा, सुटेरी, छिंदौली, परसदा जैसे गांवों में भी अब महिला कमांडो दल का गठन किया जा चुका है और शराबबंदी की आवाजें बुलंद की जा रही हैं। नजदीक के गांव बुंदेली में गठित ‘मां महिला समिति’ की अध्यक्षा सुनीति चंद्राकर ने बताया कि हमारे गांव में 1800 मकान हैं और आबादी लगभग 6 हजार है। पहले यहां के अधिकांश घरों में अवैध शराब बनाया जाता था। हालात यह थे कि शराब बनाने के काम में महिलाएं, बच्चे और घर के बुजुर्ग भी शामिल थे। लेकिन जब से हमने यहां महिला कमांडो का गठन किया है, तब से पूरे गांव में शराब बनाने पर रोक लगा दी है। बुदेंली की सभी महिला कमांडो ने अपनी पहचान के लिए लाल साड़ी को चुना है, इसके पीछे की वजह पूछने पर समूह की महिलाएं कहती हैं कि लाल खतरे की निशानी होती है और हम शराबियों के लिए एक प्रकार से खतरा ही हैं।
महासमुंद जिले के कुछ गांवों में तो महिलाओं के जरिए धीरे-धीरे शराबबंदी हो रही है लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी आखिर कब लागू कर पाएगी, इसको लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं दिख रही है। जबकि सरकार ने अपने जनघोषणा पत्र में पूर्ण शराबबंदी का जिक्र किया था। सरकार की इस नीति को लेकर प्रमुख विपक्षी दल भी समय-समय पर सरकार को घेरती रही हैं। शराबबंदी को लेकर एक तरफ सरकार रणनीति तैयार कर रही है तो वहीं राज्य के लोग सबसे अधिक शराब पीने में जुटे हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 35 फीसदी से अधिक लोग शराब पीते हैं, जो इस मामले में दूसरे राज्यों से अव्वल है। छत्तीसगढ़ की आबादी 2.55 करोड़ है। यहां हर वर्ष शराब से सरकार को राजस्व लगभग 4500 से 4700 करोड़ तक होता है। इस कमाई को आबादी से भाग दें तो छत्तीसगढ़ में शराब की खपत प्रति व्यक्ति लगभग 1800 रुपए प्रतिदिन का है। आज की तारीख में राज्य में देशी शराब की 337 और विदेशी शराब की 313 दुकानें हैं जिनका संचालन राज्य सरकार ही करती है।
बहरहाल महिला कमांडो गांव की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के प्रोत्साहन से बना एक संगठन है जिसकी गूंज अब महासमुंद जिले के विभिन्न गांवों में शराबबंदी के रूप में सुनाई देने लगी है। एक गांव से शुरू हुए महिला कमांडो संगठन का फैलाव अन्य गांवों में भी होने लगा है। जरूरत इस बात की है कि शराबबंदी के लिए एकजुट हुई महिलाएं आगे भी इस सामाजिक बुराई के खिलाफ अपनी प्रभावी मुहिम जारी रखने के साथ साथ स्वरोजगार के जरिए आत्मनिर्भर भी बनें ताकि अरंड और बुंदेली जैसे सभी गांवों को राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिल सके। इसके लिए राज्य सरकार को भी गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि संगठन में रहकर महिलाएं विभिन्न कुटीर उद्योगों के माध्यम से रोजगार प्राप्त करती रहें और गांव को शराब तथा शराबियों से दूर रख सकें। (यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड 2020 के अंतर्गत लिखा गया है)