टीम भारत अपडेट। दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन राजस्थान, दलित अधिकार केंद्र जयपुर एवं बजट विश्लेषण एवं शोध केंद्र ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में 3 फरवरी 2024 को पिंकसिटी प्रेस क्लब जयपुर में प्रेस वार्ता आयोजित की गई। प्रेस वार्ता को सतीश कुमार एडवोकेट (निदेशक, दलित अधिकार केंद्र), चंदा लाल बैरवा एडवोकेट (राज्य समंवयक, दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन), नेसार अहमद (बजट अध्ययन एवं शोध केंद्र ट्रस्ट) सहित अन्य प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। इन सभी संगठनों की ओर से प्रेस वार्ता के बाद एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य जारी किया गया। वक्तव्य में कहा गया कि केंद्र सरकार ने दलित व आदिवासी समुदाय के लिए बजट जारी करने में इन समुदाय के लोगों की जनसंख्या के अनुपात में बजट जारी नहीं कर कम बजट जारी किया है।
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अंतरिम केंद्रीय बजट पेश किया जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन ‘‘सबका साथ-सबका विकास’’ को झूठलाता नजर आ रहा है। बजट के विस्तृत अवलोकन से स्पष्ट होता है कि समावेशी विकास और समता केवल एक घोषणा बन कर रह गया है और सामाजिक स्तर पर यह दलित आदिवासी समाज के आर्थिक अधिकारों के साथ-साथ धोखाधड़ी के समान है।
सत्य यह है कि दलित आदिवासी समाज हमेशा से ही बजट की वजह से निराश होते आए हैं और आज भी है, उनके हाथ निराशा ही लगी है। आर्थिक अधिकारों तक उनकी पहुंच हर वर्ष क्षीण हो जाती है और उन्हें सामाजिक न्याय व विकास से दूर कर दिया जाता है। हालांकि दलित आदिवासी बजट आवंटन में अभी वृद्वी हुई है किंतु वह दलित और आदिवासी समुदाय के सामाजिक आर्थिक न्याय के लिए प्रर्याप्त नहीं है।
दलित व आदिवासी समुदाय की तरफ यह मामूली सा आवंटन उनकी धारणा को और मजबूत करता है कि बजट जिसे आर्थिक सुधार के लिए एक रोडमेप के रूप में प्रचारित किया जाता है, वह भारत में दलित और आदिवासी समुदायों की तत्काल आवश्यकताओं और चिंताओं को संबोधित करने में विफल रहा है एवं मौजूदा असमानताओं को यथावत रखता है और सामाजिक न्याय और समावेशिता की प्रगति में बाधा डालता है। दलित और आदिवासी समुदाय इस तथ्य से भी व्यथित है कि केंद्र सरकार जाति के पूरे व्यख्यान को बदल कर दलितों के मुद्दों की उपेक्षा करने की कोशिश कर रही है। हाल ही में, वित्त मंत्री ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री चार जातियों में विश्वास करते हैः गरीब, युवा, महिलाएं और अन्नदाता (किसान)। यह न केवल शताब्दियों के संघर्षों को मिटाना है, बल्कि समावेशिता के विचार पर एक घाव करने का विनम्र प्रयास भी है।
वर्ष 2024 का कुल केंद्रीय बजट 5108780 करोड़ रुपए हैं जबकि अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल 165598 करोड़ रुपए आवंटित किया गया और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटन 121023 करोड़ रुपए हैं। इसमें से लक्षित धनराशि जो सीधे दलितों के कल्याण के लिए होगी वह 44282 करोड़ रुपए हैं और आदिवासियों के लिए 36212 करोड़ रुपए हैं।
सरकार के समावेशिता के वादों के बावजूद, बजट निर्णय लेने वाले निकायों में दलितों और आदिवासियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों की रूपरेखा नहीं बताता है। यह निरीक्षण इन समुदायों को उन नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान करने के अवसर से वंचित करता है जो उनके जीवन को प्रभावित करती है और प्रणाली गत बहिष्कार को कायम रखती है। एक तरफ दलितों के लिए नरेगा के क्रियांवयन के लिए बजट का आवंटन 10500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 13250 करोड़ रुपए हो गया है।
दलित और आदिवासी महिलाओं के कल्याण और सुरक्षा के लिए जेंडर बजट इन समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट जरूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने में विफल रहा है जिससे समावेशी विकास की प्रगति में बाधा उत्पन्न हुई है। दलित और आदिवासी महिलाओं की सुरक्षा के लिए 160 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है। राष्ट्रीय दलित मानव अधिकार आंदोलन दलित और आदिवासी महिलाओं की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने के साथ संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए पुनर्मूल्यांकन का आग्रह करता है। लिंग और जाति के प्रतिच्छेद को पहचानना और समाज के सबसे हाशिये वर्गों के उत्थान के लिए तदनुसार धन आवंटित करना अनिवार्य होना चाहिए।
दलित और आदिवासियों के बीच भूमिहीनता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है जो संसाधनों और आजीविका के अवसरों तक उनकी पहुंच को प्रभावित करता है। बजट व्यापक भूमि सुधारों की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करने में विफल रहा है और भूमि अधिकारों के मुद्दों को संबोधित करने और दलित और आदिवासियों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने में अपर्याप्त है जिससे उनकी आर्थिक भेदता और हाशिये पर योगदान हुआ है। भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लिए आवंटित निधि दलित और आदिवासियों के लिए भूमि अधिकारों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति के लिए धन आवंटन में वृद्वि हुई है, लेकिन पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए आवंटित बजट को कम कर दिया गया है जो दलितों और आदिवासियों के शिक्षा के अधिकार के लिए भविष्य में और भी अधिक चुनौतियां लाएगा।
हालांकि केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से धन आवंटन बढ़ाने का प्रयास किया है। जो निःसंदेह दलितों ओर आदिवासी समुदाय के लिए एक आशा की किरण है लेकिन दूसरी ओर कुछ बहुत महत्वपूर्ण बाते हैं जिन पर केंद्र सरकार को दलितों और आदिवासियों के आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए दोबारा देखना चाहिए।
बजट में कर दी कटौतीः-आदिवासियों के लिए यह 7350 करोड़ रुपए से बढ़कर 10355 करोड़ रुपए हो गया है। दूसरी ओर दलितों वेंचर कैपिटल के लिए आवंटन को 70 करोड़ रुपए से घटाकर 10 करोड़ रुपए कर दिया गया है जबकि आदिवासियों के लिए यह बजट पिछले वर्ष की तरह 30 करोड़ पर ही रुक गया है। इसी प्रकार राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम के लिए 10 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था लेकिन इस बार केवल 0.01 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है जो लगभग शून्य है। इसी तर्ज पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के लिए पिछले वर्ष 15 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था जो इस वर्ष घटकर 0.01 करोड़ रुपए रह गया है।
कैसे होगी न्याय प्रणाली सुनिश्चित-दलित समुदाय को प्रणालीगत चुनौतियों और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है जिन्हें प्रायः अपने अधिकारों और गरिमा को सुरक्षित रखने के लिए विधिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। वर्ष 2022 में दलितों और आदिवासियों के विरुद्व अत्याचारों की एक गंभीर लहर देखी गई है जो देश के विभिन्न हिस्सों में प्रकाश में आई है। पिछले वर्ष की तुलना में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले 13.12 प्रतिशत से बढ़कर 57582 मामले हो गए हैं जबकि यह संख्या पिछले वर्ष 50,900 थी। इसी प्रकार आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों में वृद्वि हुई है और वार्षिक संख्या 10,064 हो गई जबकि 2021 में यह 8,802 थी। इन चिंताजनक आंकडों के बावजूद राज्य दलितों और आदिवासियों के लिए न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करने में विफल रहा है जैसा कि अंतरिम बजट में उजागर होता है। न्याय प्रणाली के भीतर दलितों और आदिवासियों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए बजटीय आवंटन कम किया जाता है और इस वर्ष अत्याचार के मामलों में भी वृद्धि देखी गई है।
दलित-आदिवासी समुदाय के उचित कल्याण के लिए उचित कदम उठाएः-केंद्र सरकार को दलितों और आदिवासी समुदायों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों की पहचान करते हुए लक्षित बजटीय आवंटन के माध्यम से उन्हें संबोधित करने के लिए निम्नलिखित सक्रिय कदम उठाना अनिवार्य हैः-
- ज्यादा संख्या में योजनाएं होने के बावजूद उनके लिए किया गया आवंटन काफी कम है और कई अप्रासंगिक योजनाएं भी हैं, जहां आवंटन बहुत ज्यादा है, लेकिन दुर्भाग्य से, इन योजनाओं का समुदायों को शायद ही कोई लाभ होता है। इसलिए इस तरह की बड़ी-बड़ी गैर-लक्षित योजना को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
- पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति, छात्रावास, कौशल विकास योजनाओं जैसी सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए और हर सूरत में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लाभार्थियों को राशि समय पर मिले तथा राष्ट्रीय ओवरसीज योजना के लिए अधिक बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए।
- दलित महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत का आवंटन और प्रभावी कार्यांवयंन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कार्यांवयंन तंत्र के साथ दलित महिलाओं के लिए एक विशेष घटक योजना शुरू की जानी चाहिए।
- हाथ से मैला ढोने काम करने वाली महिलाओं के पुनर्वास के लिए योजनाओं को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। इस प्रथा को खत्म करने के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा सफाई के कार्य के मशीनीकरण के लिए शुरू की गई नमस्ते नामक योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे जुडे़ लाभ महिलाओं को भी दिए जाए।
- सभी स्कूलों और छात्रावासों को विशेष योग्यजन लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विशेष योग्यजन के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
- एससी और एसटी योजनाओं के कार्यांवयंन के लिए कानूनी ढांचे की कमी के कारण अधिकांश योजनाओं के कार्यांवयंन में कमियां देखी गई हैं। इसलिए एससीपी/टीएसपी कानून पारित करने की तत्काल आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय जलवायु बजट स्टेटमेंट प्रस्तुत किया जाए जिसके तहत जलवायु से जुडे़ पहलुओं को सी केंद्रीय-प्रायोजित और केंद्रीय-क्षेत्र योजनाओं में शामिल किया जाए और उनके लिए बजट तय किया जाए और इन सभी में एससी और एसटी के लिए बजट आरक्षित किया जाए (जैसे बिहार के ग्रीन बजट में बजट किया गया हैं)।
- क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों और जलवायु जोखिमों के जोखिम को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में एडब्ल्यूएससी और एडब्ल्यूएसटी के तहत जलवायु कार्यों के लिए बजट में वृद्वि करना।
- दलित महिलाओं, पुरुषों, बच्चों, विकलांग लोगों और क्वीर और ट्रांस व्यक्तियों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए अत्याचार निवारण अधिनियम के कार्यांवयंन के लिए आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए। जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा के किसी भी पीड़ित को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने के लिए स्पष्ट प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए किया गया मौजूदा आवंटन बिलकुल अपर्याप्त है। मामलों के त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए, और जाति और जातीयता-आधारित अत्याचारों पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे में बढ़ोतरी की जानी चाहिए।