-अनीस आर खान, नई दिल्ली
सुरेंद्र कुमार नागर फूलिया कलां, ब्लॉक व जिला शाहपुरा के निवासी एक प्रगतिशील किसान हैं। राजस्थान में जैविक खेती के कृषि तरीकों में बायोगैस अपनाकर खेती करना अपने आप में एक बड़ा बदलाव है। बढ़ती ईंधन लागत और खेत में भारी गीला गोबर डालने से होने वाली परेशानियों के कारण उन्होंने अपने खेत में उरमूल सीमांत और फार्म इंडिया फाउण्डेशन की सहायता से सब्सिडी पर बायोगैस संयंत्र लगवाया। मवेशियों के गोबर और फसल के अवशेषों का उपयोग करके वह बायोगैस के माध्यम से खाना बनाने के लिए ईंधन और जैविक खाद तैयार कर रहे हैं। इस बदलाव ने उनके पारंपरिक ईंधनों पर निर्भरता को कम किया और कचरा प्रबंधन के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान किया। बायोगैस से प्राप्त उच्च गुणवत्ता वाली एक जैविक खाद है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। बायोगैस से प्राप्त स्लरी से फंगससाइड, रस चुस्क किट एवं विभिन्न प्रकार की बीमारियों से अपनी फसल की रोकथाम करने के लिए भी विभिन्न प्रकार की जैविक दवाओं का निर्माण करके न सिर्फ उत्पादन बढ़ाया जाता है बल्कि फसल में होने वाली लागत भी घटाई जाती है।
नागर ने अपने खर्चों का कुशल प्रबंधन करते हुए बताया कि बायोगैस खर्चों के बाद से प्रति वर्ष लगभग 60,000 से 70,000 की बचत हो रही है। नागर ने बायोगैस लगाकर पशुपालन एवं कृषि में एक नई क्रांति ला दी है। नागर ने शाहपुरा ब्लॉक के फूलिया कलां में नाबार्ड के सहयोग से किसान उत्पादक संगठन का गठन किया है। इसमें शाहपुरा ब्लॉक के लगभग 1000 से अधिक किसान पशुपालक जुड़े हुए हैं।
उर्मूल सीमांत के परियोजना समन्वयक पुखराज जयपाल ने बताया कि थार रेगिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में अब तक 550 से अधिक बायोगैस संयंत्र किसानों के यहां स्थापित किए जा चुके हैं। हमारा लक्ष्य 2027 तक 5000 बायोगैस यूनिट तक किसानों को बढ़ाना है ताकि स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराया जा सके।