भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। 26 जनवरी 1950 को हम गणतंत्र बने। इस दिन हमने अपने आप से वादा करके अपने संविधान को लागू किया। आजादी मिल जाने से ही कोई देश गणतंत्र नहीं बन जाता। इंग्लैंड व जापान जैसे देशों में लोकतंत्र हैं पर वहां मुखिया एक राजा होता है जो वंश परंपरा से चलता है। ऐसे देश राजतंत्रात्मक लोकतंत्र कहलाते हैं।
हमारे यहां देश के मुखिया राष्ट्रपति हैं। उस पद पर हर पांच साल में चुनाव होता है। हमारे चुने गए प्रतिनिधि वोट से तय करते हैं कि कौन राष्ट्रपति बनेगा। गणतंत्र का मतलब है जनता की ताकत ही सबसे बड़ी है। जनता ही सबसे ऊपर है। ऐसे में तो हर निर्णय में जनता की भागीदारी होनी चाहिए। जब जनता मालिक है तो फिर संसद या विधानसभा में मनमानी से निर्णय क्यों लिए जा रहे हैं।
26 जनवरी का महत्व इस कारण है क्योंकि हमारा संविधान जनता को ताकत देता है। जनता की आवाज को दबाकर या उनके शांतिपूर्ण विरोध को दबाकर कोई सरकार मनमानी करे तो यह गणतंत्र का मजाक है। चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सत्ता पर काबिज होना ही जनतंत्र या गणतंत्र नहीं। हर कदम पर जनता की राय का सुनना ज्यादा जरूरी है।
गणतंत्र जनता व सरकार के रिश्तों पर ही टिका है। मतलब ये कि हर महत्वपूर्ण निर्णय या नीति पर जनता के बीच चर्चा होनी जरूरी है। जनता की सहमति से ही निर्णय होते हैं। ऐसे में सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन हो और सरकार सुनने के बजाए पुलिस बल का प्रयोग कर सूचना न पहंुचने देने के लिए नेट बंद कर दे। लोगों को जेल में डाल दे। यह सब गणतंत्र में नहीं किया जा सकता।
हमें समझना होगा कि संविधान बचेगा तो हम बचेंगे। अभिव्यक्ति की आजादी कुचल दी जाएगी तो हम गणतंत्र से तानाशाही की तरफ बढ़ जाएंगे। ऐसा न हो इसका संकल्प लेकर हमें आगे बढ़ना होगा। सहमति व असहमति का होना जरूरी है। अपनी बात को शांतिपूर्ण तरीके से रखना ही सच्चा लोकतंत्र है। जनता की यह ताकत बनी रहनी चाहिए। इसे कुचलना लोकतंत्र की हत्या है।