-डॉ. महेंद्र कुमार आनंद (एडवोकेट, राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर)
प्रस्तावना
लोकतंत्र की नींव स्वतंत्रता, पारदर्शिता, और जवाबदेही पर आधारित है। हालांकि, समाज में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग सार्वजनिक संस्थाओं में बड़े पदों पर बैठे व्यक्तियों से बिना बात के डरते हैं और उनके संस्थागत सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करने से भी डर के मारे बचते रहते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी उच्च पदस्थ हो, उसके संस्थागत सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करना न केवल हमारा अधिकार है बल्कि संस्था/समाज के जागरूक लोगों की जिम्मेदारी भी है।
बड़े पदों पर बैठे व्यक्तियों से डर
- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण
बड़े पदाधिकारियों का प्रभावशाली पद जिसको उनके व्यक्तित्व से जोड़ दिया जाता है और उस पद में निहित सत्ता का भय लोगों को उनसे सही सवाल करने या उनकी गलत निर्णयों की आलोचना करने से भी रोकता है। यह डर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबावों के कारण होता है, जहां लोगों को लगता है कि उनकी आवाज या तो सुनी ही नहीं जाएगी या भविष्य में वे किसी प्रतिशोध का भी शिकार हो सकते हैं। जैसा कि अधिकतर बड़े पद पर बैठे हुए लोग प्रायः बदले की भावना से करते भी हैं। बदले में की गई कोई भी कार्यवाही वैसे अनुचित ही होती है। समाधान हमेशा विचार विमर्श के द्वारा होना चाहिए।
- अधिकार और जिम्मेदारी की कमी
कई बार, लोगों को अपने मूलभूत अधिकार और जिम्मेदारियों के बारे में पूरी जानकारी भी नहीं होती। उन्हें लगता है कि बड़े पदाधिकारियों पर टिप्पणी करना असंवेदनशील या अनुचित या कोई अपराध है, जबकि वास्तव में यह सार्वजनिक संवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी सांस्थानिक मतभेदों से निकले हुए प्रष्न प्रायः नई संभावनाओं को जन्म देते हैं।
सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी का अधिकार
- पारदर्शिता और जवाबदेहीः किसी भी बड़े पदाधिकारी के
सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करना पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। जब आम लोग बड़े पदाधिकारियों के कार्यों पर टिप्पणी करते हैं, तो इससे उन पर जवाबदेही का दबाव बनता है और वे अपने कार्यों को और अधिक सावधानीपूर्वक करते हैं। अतः सामाजिक जीवन ने प्रष्नों का उठाना किसी का विरोध नहीं माना जाना चाहिए।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया
लोकतंत्र में, हर नागरिक को अपने प्रतिनिधियों और अधिकारियों के कार्यकलापों पर प्रश्न करने और टिप्पणी करने का अधिकार होता है। यह अधिकार सदस्यों/नागरिकों को उनके हितों की रक्षा करने और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है।
- सामाजिक जागरूकता
किसी भी सामाजिक संस्था मी सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करना सामाजिक जागरूकता बढ़ाने का एक माध्यम है। इससे लोग विभिन्न मुद्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं और अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर पाते हैं।
बड़े पदाधिकारियों की सार्वजनिक गतिविधियों पर टिप्पणी
- कानूनी सुरक्षा
कानूनी दृष्टिकोण से, बड़े पदाधिकारियों के सार्वजनिक कार्यकलापों पर की गई तथ्यात्मक और जिम्मेदार टिप्पणी मानहानि की श्रेणी में नहीं आती। जब तक टिप्पणी सत्य और साक्ष्य पर आधारित हो, यह कानूनी रूप से सुरक्षित होती है।
- नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व
नैतिक और सामाजिक दृष्टि से, बड़े पदाधिकारियों की सार्वजनिक गतिविधियों पर टिप्पणी करना समाज की जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी जनहित में कार्य करें और अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करें।
- संवाद और सुधार
सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करने से संवाद का वातावरण बनता है, जो सुधार और विकास के लिए आवश्यक है। यह न केवल अधिकारियों को अपनी नीतियों और क्रियाकलापों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव भी लाता है।
निष्कर्ष
किसी भी व्यक्ति के किसी भी संस्था में किए गए सार्वजनिक कार्यकलापों पर टिप्पणी करने का अधिकार समाज के प्रत्येक नागरिक को होता है, चाहे वह व्यक्ति कितना भी उच्च पद पर क्यों न हो। यह अधिकार लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और पारदर्शिता, जवाबदेही, और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देता है। हमें इस अधिकार का समझदारी से प्रयोग करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी टिप्पणियां सत्य, तथ्यात्मक और जिम्मेदार हों, ताकि समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके और सत्ता का दुरुपयोग रोका जा सके।