5.3 C
New York
Friday, March 29, 2024
Homeग्रामीण भारतस्तन कैंसर के खतरे से अनजान हैं ग्रामीण महिलाएं

स्तन कैंसर के खतरे से अनजान हैं ग्रामीण महिलाएं

 

-सौम्या ज्योत्स्ना (मुजफ्फरपुर, बिहार)

बिहार के एक ग्रामीण इलाके की रहने वाली कुसुमलता (बदला हुआ नाम) को स्तन कैंसर के कारण अपने स्तन हटवाने पड़े थे, क्योंकि उसकी जान पर बन आई थी। इस प्रक्रिया से उसकी जिंदगी तो बच गई लेकिन उसका जीवन और भी नरकीय हो गया। स्तनों के हटने के बाद उसके पति ने उसकी परवाह करना छोड़ दिया क्योंकि अब उसे अपनी पत्नी में प्यार नजर नहीं आता था। इतना ही नहीं मुसीबत की इस घड़ी में उसका साथ देने की बजाए ससुराल वालों ने भी जहां उसका साथ छोड़ दिया वहीं महिलाएं ही उसे ताना देने लगीं क्योंकि अब वह उनकी नजर में एक महिला नहीं रह गई थी। बिहार के दूसरे सबसे बड़े शहर मुजफ्फरपुर के ही ग्रामीण इलाके में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि उन्होंने स्तन कैंसर के बारे में सुना है कि यह महिलाओं को होने वाली सबसे भयंकर बीमारी है जिसमें स्तनों को हटवाना पड़ता है, जिसके बाद पति या शौहर दूर हो जाते हैं और जिंदगी बीमारी से कहीं अधिक बद्तर हो जाती है।

ग्रामीण इलाकों में स्तन कैंसर को लेकर जागरूकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाएं स्तनों से ही स्वयं को पूर्ण स्त्री मानती है। हालांकि स्तन कैंसर के बारे में जानकारी और इसकी शुरुआती जांच के सवाल पर ही वहां मौजूद महिलाएं शरमा गईं क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं था कि स्तनों के मुद्दे पर भी खुलकर बात होती है। इन क्षेत्रों में आज भी महिलाओं से जुड़ी बीमारियों या समस्याओं पर बात करना भी बुरा माना जाता है। यहां तक कि महिलाएं आपस में भी इन पर बात करने से परहेज करती हैं। यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा आज भी देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं से जुड़ी बीमारियां जानलेवा होती हैं। दरअसल महिलाओं को स्तन के शुरुआती जांच और लक्षण की जानकारी नहीं होती है। इस अभाव में वह किसी भी प्रकार के गांठ या अन्य लक्षणों को पहचान नहीं पाती हैं, जो आगे चलकर उनके लिए जान का खतरा तक बन जाता है। शुरुआती जांच और लक्ष्ण से जुड़े सवाल पर एक ग्रामीण महिला ने अपनी झिझक तोड़ते हुए बताया कि उसकी ननद के कांख के आसपास बगल में गांठों का बनना शुरू हुआ था, जिसे पहले सबने नजरअंदाज कर दिया। धीरे-धीरे गांठ बढ़ने लग गए और उसके स्तन कठोर हो गए। यहां तक कि उसमें से खून आने लगा। मगर इसके बावजूद किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया और घरेलू इलाज करते रहे। इसी लापरवाही के कारण ही आज उसकी ननद उसके साथ नहीं है।

स्तन की जांच को लेकर ग्रामीण महिलाओं के बीच अनेक भ्रांतियां भी हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यदि कोई पराया उनके अंगों को हाथ लगाकर देखेगा तो वह बदनाम हो जाएंगी। इसलिए जांच के लिए उन्हें किसी के पास जाने में भी असहजता महसूस होती है। यह केवल किसी एक कस्बे की स्थिति नहीं है। असल हकीकत के तरफ बढ़ने मात्र से ही हम सच्चाई के जितने करीब आएंगे दिल उतना ही दहल उठेगा।

पटना के प्रसिद्ध कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. अभिषेक आनंद के अनुसार इस बीमारी के प्रति ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता का अभाव बहुत ज्यादा है। ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए आने वाले रोगियों में ग्रामीण महिलाओं की संख्या अत्यंत कम है। प्रतिदिन अगर 10 महिला भी अगर जांच के लिए आतीं हैं, तो उसमें से केवल 2 महिलाएं ही ग्रामीण क्षेत्रों से होती हैं। ग्रामीण इलाके से आने वाली महिलाएं कैंसर के अंतिम स्टेज पर जांच के लिए आती हैं, जिस कारण उनके स्वस्थ होने का आंकड़ा बेहद कम होता है।

डॉ. आनंद के अनुसार करीब 90 प्रतिशत महिलाओं को स्वयं ब्रेस्ट की जांच करनी नहीं आती है। जिस कारण उन्हें अधिक दिक्कत उठानी पड़ जाती है। ग्रामीण महिलाओं द्वारा स्तनों की जांच नहीं करवाने का एक बड़ा कारण गांठों में दर्द का नहीं होना भी है, क्योंकि शुरुआती लक्षणों में गांठों का बनना शुरू होता है, जिसके दर्द रहित होने के कारण महिलाएं इन्हें सामान्य लक्षणों के तौर पर लेती हैं। धीरे-धीरे इन गांठों का फैलना शुरू होता है, जिससे यह ट्यूमर बन जाता है, अगर ट्यूमर को शुरुआती दौर में ही हटा दिया जाए, तो कैंसर को रोका जा सकता है।

भारत के आंकड़ों की बात करें तो पॉपुलेशन ब्रेस्ट कैंसर रजिस्ट्री के अनुसार भारत में हर साल करीब 1.44 लाख ब्रेस्ट कैंसर के नए मामले सामने आ रहे हैं। दरअसल इसके असल कारकों के बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आती है। हालांकि विशेषज्ञों का मत है कि जिन महिलाओं को मासिक धर्म जल्दी शुरू होता है और देर से खत्म होता है, उनमें ब्रेस्ट कैंसर की संभावना ज्यादा देखी जाती हैं।

कैंसर रिसर्च की इंटरनेशनल रिसर्च एजेंसी ग्लोबल केन में सामने आया है कि भारत में साल 2012 में लगभग 1,44,937 महिलाएं स्तन कैंसर के जांच के लिए सामने आई थीं। वहीं, उसी साल लगभग 70,218 महिलाओं ने स्तन कैंसर के कारण दम तोड़ दिया। इस रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 2 महिलाओं की मृत्यु स्तन कैंसर से हो रही है। ब्रेस्ट कैंसर के मामले साल 2025 तक 4,27,273 तक होने का अनुमान लगाया गया है। ऐसी परिस्थिती को कम करने के लिए ग्रामीण महिलाओं में स्तन कैंसर के प्रति जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि महिलाएं शुरुआती जांच करवाने स्वयं आगे आएं। कई ग्रामीण महिलाएं आर्थिक चिंता के कारण भी अपनी बीमारी को छुपाना चाहती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने इलाज करवाया तो उनके काफी पैसे खर्च हो जाएंगे और परिवार को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ जाएगी।

हालांकि अब देश में कुछ ऐसे संस्थान हैं, जहां कम खर्च में कैंसर का इलाज किया जाता है। इसके अलावा केंद्र सरकार के साथ साथ कई राज्य सरकारें भी कैंसर के मरीजों को इलाज के लिए सहायता राशि उपलब्ध करवाती है। केंद्र की ओर से जहां आयुष्मान भारत योजना के तहत मदद दी जाती है वहीं बिहार में कैंसर के मरीजों को “मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष” से 80 हजार से एक लाख रुपए तक की मदद की जाती है।

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि स्तन कैंसर में स्तन केवल उसी अवस्था में हटाया जाता है, जब कैंसर अंतिम स्टेज में होता है। हालांकि जागरूकता की कमी के कारण ग्रामीण महिलाओं को परेशानी उठानी पड़ती है। लेकिन लगातार हो रहे रिसर्च और वैज्ञानिक खोज के बाद अब ऐसे तकनीक आ गए हैं, जिनसे कैंसर के इलाज को आसान बनाया गया है। टार्गेटेड थेरेपी, हार्मोनल थेरेपी और इम्युनो थेरेपी में नई-नई दवाइयां उपलब्ध हैं, जिससे कैंसर के इलाज को अब कष्ट रहित रूप दिया गया है। इसके अलावा कुछ बचाव के भी तरीके हैं, जिससे स्तन कैंसर से बचा जा सकता है। जैसे- 40-45 की उम्र पार करते ही नियमित तौर पर मैमोग्राफी करवाना, सही समय पर बच्चों का होना, स्तनपान कराना, मोटापे पर नियंत्रण रखना। वहीं शरीर की कोशिकाओं में BRCA म्युटेशन होने पर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए नियमित तौर पर स्वयं ब्रेस्ट की जांच करते रहना जरुरी है क्योंकि इससे ही कोशिकाओं में हुए बदलावों पर नजर रखा जा सकता है।

बहरहाल, जागरूकता ही स्तन कैंसर से एकमात्र बचाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को वर्जनाओं के विरुद्ध स्वयं आगे आना होगा ताकि उन्हें स्वस्थ जीवन मिल सके। एक ओर जहां हमारा समाज महिलाओं के अंतर्वस्त्र को बाहर सूखते देख असहज हो जाता है, ऐसे में महिलाओं के स्तनों को लेकर सोच का अंदाजा आसानी से किया जा सकता है। लेकिन घूंघट के साथ-साथ शर्म को पीछे छोड़ते हुए महिलाओं को अपने लिए आगे आना होगा क्योंकि स्वयं के स्वास्थ्य के साथ लापरवाही भारी साबित हो सकती है। परिवार वालों को भी मानसिक रूप से महिलाओं को हिम्मत देना चाहिए क्योंकि महिलाएं ही परिवार की नींव होती हैं।

Bharat Update
Bharat Update
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments