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Monday, March 20, 2023
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सरकार आलोचनाओं और सच से डर क्यों रही है?

 

बाबूलाल नागा

पिछले दिनों ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के दिल्ली और मुंबई के दफ्तरों में आयकर विभाग की अचानक हुई सर्वे यानी छापे की कार्यवाही हुई। इसको लेकर कई वैश्विक मीडिया संस्थाओं और मानवाधिकार संगठनों ने निंदा करते हुए कहा है कि डराने की नीयत से यह कार्रवाई की गई है और यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला अपमान है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ट्वीट किया “ये छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर अपमान हैं।” ब्रिटेन स्थित मानवाधिकार संगठन ‘साउथ एशिया सॉलिडैरिटी ग्रुप‘ ने इसे “स्पष्ट रूप से बदले की कार्रवाई” करार दिया। न्यूयॉर्क स्थित स्वतंत्र गैर-लाभकारी संस्था कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने भारत सरकार से पत्रकारों का उत्पीड़न रोकने का आग्रह किया। सीपीजे के एशिया कार्यक्रम के समंवयक बेह ली यी ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना वाले एक वृत्तचित्र के मद्देनजर बीबीसी के भारत कार्यालयों पर छापा मारने से डराने की बू आती है।” पेरिस में स्थित संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने ट्वीट किया, “नरेंद्र मोदी के बारे में वृत्तचित्र की सेंसरशिप के तीन सप्ताह बाद भारत में बीबीसी के कार्यालयों पर आयकर अधिकारियों की छापेमारी अपमानजनक प्रतिशोध जाहिर होता है। हम किसी भी आलोचना को दबाने के भारत सरकार के इन प्रयासों की निंदा करते है।”

भारत में भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, डिजिपब जैसे मीडिया संगठनों ने भी इसे पत्रकारिता संस्थानों को डराने-धमकाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग बताया है। गिल्ड ने एक बयान में कहा कि यह सत्ता की आलोचना करने वाले समाचार संगठनों को डराने और परेशान करने के लिए सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के चलन को लेकर व्यथित है। नेशनल एलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनएजे) और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने भी ‘तलाशियों’ और ‘सर्वेक्षणों’ पर चिंता व्यक्त करते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के साथ सहमति जताते हुए एक बयान जारी किया है। एनएजे और डीयूजे ने कहा कि यह ‘अघोषित प्रेस सेंसरशिप का नया युग है और सभी प्रकार के प्रतिरोध को खत्म करने के मकसद से स्वतंत्र सोच के सभी रूपों और स्वतंत्र पत्रकारिता पर अंकुश लगाए जा रहे हैं। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक और डराने वाला है और इससे और अधिक खतरनाक इरादों का भी संकेत मिलता है।‘

मालूम हो कि ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) वर्ल्ड सर्विस टेलीविजन ब्रिटिश सरकार की संस्था है। यह 40 भाषाओं में खबरें प्रसारित करता है। ब्रिटेन की संसद ग्रांट के जरिए इसकी फंडिंग करती है। इसका मैनेजमेंट फॉरेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफिस के जरिये होता है। यह डिजिटल, कल्चर, मीडिया और स्पोर्ट्स विभाग के तहत काम करती है। बीबीसी को एक रॉयल चार्टर के तहत साल 1927 में शुरू किया गया था। भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में बीबीसी के दफ्तर है। बीबीसी के कार्यालयों में आयकर विभाग की यह कार्रवाई बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री, जिसे लेकर भारत में खासा विवाद हुआ था, के प्रसारण के कुछ ही सप्ताह बाद हुई है। बीबीसी ने ‘इंडियाः द मोदी क्वेश्चन’ शीर्षक से 2002 में हुए गुजरात दंगों और प्रधानमंत्री मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार की है। बीबीसी का दावा है कि यह डॉक्यूमेंट्री गुजरात दंगों के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करती है। इस डॉक्यूमेंट्री के स्क्रीनिंग को लेकर दिल्ली के जेएनयू, जामिया, डीयू सहित कई शैक्षणिक संस्थानों में जमकर विवाद हुआ था। डॉक्यूमेंट्री को बैन करते हुए मोदी सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था, वहीं बीबीसी ने कहा था कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।

बहरहाल, सरकार की इन गतिविधियों से साफ हो गया है कि अब सरकार आलोचक मीडिया का गला घोंटने पर उतर आई है और मीडिया की आवाज को दबाने की लगातार कोशिश कर रही है। सरकार में प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ को दबाने का, सच को रोकने का काम शुरू से ही किया जा रहा है, जो सरासर गलत है। एक के बाद एक लगातार मीडिया संस्थानों पर हो रही इन कार्यवाहियों से साफ है कि जो मीडिया संस्थाएं सरकार की नीतियों का विरोध करेगी, सरकार राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से ऐसी छापेमारी वाली कार्यवाहियां कर उनको परेशान करेगी। ऐसे में संविधान में मीडिया संस्थानों को जो चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है, उसे बचाकर रख पाना चुनौती है। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)

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